जौनपुर। साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था कोशिश की मासिक काव्य गोष्ठी बाबू रामेश्वर प्रसाद सिंह हाल रासमंडल में समाजसेविका डा. विमला सिंह की अध्यक्षता में हुई। सरस्वती वंदना के पश्चात नंद लाल समीर की रचना– कड़ाई केतनो होय शासन में/नरमी आवत नहीं दुशासन में/बचके रहना अब अपनों से भी/खंजर हौ सबके लिबासन में। व्यवस्था पर चोट कर गई। ओ.पी. खरे की रचना— पेट जिससे ही भरे पकवान होता है– गरीबों की बदहाली बता गई। इसके बाद अंसार जौनपुरी का शेर— तोड़ पाया न कोई रिश्तये जंजीरे वफा/अब भी बाकी मेरे उल्फत का भरम है, कम है– खूब पसंद किया गया। अशोक मिश्र का गीत– माँ ने दीपक बारा होगा।
इस दिवाली/अंधियारा फुफकारा होगा। इस दिवाली/कुछ मुंडेर पर कुछ चौबारे कुछ आँचल में/छुप-छुप आँसू ढ़ारा होगा इस दिवाली। मानवीय संवेदना के क्षरण को इंगित कर गया। गिरीश कुमार गिरीश का मुक्तक– जरा सोचो अगर दुनिया में ये रिश्ते नहीं होते/कई टुकड़ों में बटकर दिल के ये हिस्से नहीं होते/ये आँसू, दर्द, गम, आहें मुहब्बत की निशानी हैं/कभी जिंदा कहानी ये हँसी किस्से नहीं होते। दिलों के मिलने बिछुडने की दास्तान कह गये।
जनार्दन प्रसाद अष्ठाना का गीत– चाँद चाँदनी के संग रमता और कमल संग पानी/राम करें ऐसी हो जाये सबकी प्रेम कहानी। प्रेम को उदात्त भाव दे गया। आसिफ फरूखाबादी का शेर– मजहब के नाम पर लोगों को मत बाँटो/ एकता का संदेश दे गया। अनिल उपाध्याय का लोक भाषा में गीत– तू हऊ माई/बेटवा हई हम तोहरे भरोसा बाटै/विद्या कसम। भाषा का ठाट-बाट परोस गया। प्रो. आरएन सिंह ने जब कहा– आज नहीं तो कल निकलेगा/हर मुश्किल का हल निकलेगा। आशा का संचार कर गया। गोष्ठी में संजय सेठ अध्यक्ष जेब्रा की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही। आभार ज्ञापन प्रो. आरएन सिंह ने किया और संचालन अशोक मिश्र ने किया।