Monday, April 29, 2024
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पवित्र ग्रन्थ पर टिप्पणी करने वाले के खिलाफ कार्यवाही हो: अजय पाण्डेय

टिप्पणीकर्ता व शासन—प्रशासन नहीं चेते तो आन्दोलन करेगा अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दू परिषदजौनपुर। अन्तरराष्ट्रीय हिन्दू परिषद के जिलाध्यक्ष अजय पाण्डेय ने प्रेस को जारी बयान में कहा कि तुलसीदास द्वारा सनातन आस्था केंद्र के रूप में सबसे बड़ा मानस ग्रंथ रामचरित्र मानस है जिसका लेखन 5000 वर्ष पूर्व महाज्ञानी विद्यत सन्त तुलसीदास जी ने लिखा। इसके प्रत्येक दोहा में एक एक साबर मंत्र स्थापित है। इस पर बिना सिर—पैर वाली टिप्पणी करके कुछ छुटभैये नेता सस्ती लोकप्रियता हासिल करना चाहते हैं। ऐसा ही कुछ पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता कर रहे हैं जिनका वजूद राजनीतिक क्षेत्र से लगभग समाप्त हो गयी है। श्री पाण्डेय ने कहा कि सवाल उठता है कि धार्मिक सनातन हिंदू धर्म मूर्ति पूजक के विरोध में स्वामी प्रसाद आज से नहीं, बल्कि पिछले कई दशकों से टिप्पणी करते आ रहे हैं। यह अपने आपको बहुत ही बुद्धिजीवी साबित करते हुये देवी—देवता सहित ग्रंथ व पुराणों पर गलत टिप्पणी करते हैं। उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि सनातन धर्म ग्रंथ, जीवन, मार्गदर्शिका के रूप में है। जिस बुद्ध की बात आज सनातन धर्म विरोधी सरकार या लोग करते हैं, उन्हें बताने और जानने की आवश्यकता है कि हिंदू धर्म की मार्गदर्शिका, संस्कार, संस्कृति को जन्म देने वाले विष्णु पुराण में महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु के 11वें रूप के रूप में स्थापित किया गया है परंतु स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं ने देवी, देवता, चार वेद, 18 पुराण, 21 उपनिषदों के बारे में अतिश्योक्ति टिप्पणी करने से बाज नहीं आते। जिलाध्यक्ष ने कहा कि ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। ऐसी टिप्पणी करने वाले नेताओं पर निश्चित रूप से न्यायिक दंडात्मक कार्यवाही होनी चाहिए। जिस रामचरितमानस के लिए अतिश्योक्ति टिप्पणी की जा रही है एवं जलाया जा रहा है, उसके लिए अंतराष्ट्रीय हिंदू परिषद सहित पूरा सनातन धर्म को मानने वाले व सभी सनातनी स्वामी प्रसाद मौर्या राजनीति स्टंट पर आने से पूर्व स्वयं एवं उनके माता-पिता सनातनी हिंदुत्व आस्थावान थे कि नहीं? इन्हें स्पष्ट करना चाहिए। यदि यह स्पष्ट नहीं कर सकते हैं तो इनके ऊपर कड़े कानून के नियम इनकी सभी मान्यताओं को रद्द कर देना चाहिए। इस लोकतांत्रिक देश में इनका पूर्णता बहिष्कार होना चाहिये जिससे फिर कोई दूसरा स्वामी प्रसाद मौर्य न बने जो हमारे सनातन संस्कृति पर कुठाराघात करने की हिम्मत कर सके।

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