Sunday, April 28, 2024
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अमेरिका! (नज्म)

दुनिया की गहराई रोज नापता है अमेरिका,
दूसरों की सीमा में भी झाँकता है अमेरिका।
कहता है हवाओं से मेरे मुताबिक तुम चलो,
दूसरों के ताबूत में कील ठोंकता है अमेरिका।

पूरी कायनात में है वो झगड़ा की जड़,
खुद को साफ-पाक बताता है अमेरिका।
हर रितु में टेस्ट करता है ताजी मिसाइलों को,
पलटकर दूसरों से सवाल पूछता है अमेरिका।

खौफ़ के साये में साँस ले रही है दुनिया,
फूल को भी काँटा बना देता है अमेरिका।
लोग खुलकर चाँदनी में सो नहीं सकते,
दूर से ही चाँद को मुँह चिढ़ाता है अमेरिका।

उसकी जमीं पे न बहे एक बूँद भी लहू कहीं,
इसका पूरा ध्यान देखो रखता है अमेरिका।
जिस काम को करना चाहिए यू.एन ओ.को,
उस काम को क्यों लपक लेता है अमेरिका।

स्वभाव से है आक्रामक औ विजय का है प्यासा,
अंतहीन युद्ध में बिचौलिया बनता है अमेरिका।
विनाशकारी नुकसान का सामना करता आया,
कड़वा फल भी तो वही भोगता है अमेरिका।

लिबिया,सीरिया , इराक, अफगानिस्तान में देखा,
दूसरे देशों में अपनी राख उठाता है अमेरिका।
युद्ध होने से घटती है जीडीपी, रोजगार, निवेश,
सुकून की साँस नहीं लेने देता है अमेरिका।

जोखिम भरा काम अमन-शान्ति को आकार देना,
यूएनओ में क्यों नहीं साँस भरता है अमेरिका।
बम धमाकों से काँप रही है रुह फिजाओं की,
कितनी ज़मीन नित्य वो फाड़ता है अमेरिका।

रामकेश एम. यादव, मुम्बई
(कवि व लेखक)

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