Monday, April 29, 2024
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किसान आन्दोलन की आग में घी डालते मोदी विरोधी

अजय कुमार
अन्नदाता की अब सोच बदलने लगी है। वह एक तरफ जमीन पर फसल उगाकर परिवार का पालन-पोषण करता है तो दूसरी ओर सरकार से किस तरह से क्या और कैसे हासिल किया जा सकता है, इस पर भी सोचने लगा है। भले ही इसके लिये उसकी छवि पर इसका असर पड़ रहा हो। खासकर चुनाव के समय किसानों के आंदोलन की एक नई दबाव वाली परम्परा बन रही है, जो देश के विकास और शांति व्यवस्था के लिये काफी खतरनाक है। किसानों के पिछली बार के आंदोलन को कौन भूल सकता है, जब कथित किसानों ने दिल्ली में तांडव किया था। उनके आंदोलन की बागडोर खालिस्तान समर्थकों ने संभाल रखी थी तो विपक्षी दलों के नेता आंदोलित किसानों को उकसाने का काम कर रहे थे। ताकि बीजेपी को चुनावी नुकसान पहुंचाया जा सके.इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। कांग्रेस और उसके गांधी परिवार से लेकर आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल, बिहार में तेजस्वी यादव, यूपी में अखिलेश यादव जैसे नेता करीब-करीब हर राज्य में किसानों को अपनी सियासत का खिलौना बनाने में लगे हैं, जबकि हकीकत यह है कि किसानों की बेतुकी मांगों को मोदी ही नहीं कोई भी पीएम या किसी भी दल की सरकार नहीं पूरी कर सकती है। संयुक्त किसान मोर्चा और भारतीय किसान यूनियन भी इस आंदोलन से दूरी बनाये हुए है लेकिन राकेश टिकैत यह जरूर कह रहे हैं कि उनका संगठन आंदोलनकारियों के साथ खड़ा है।
बहरहाल, मोदी सरकार जानती थी कि पूरे देश से अगल पंजाब और हरियाणा के मुट्ठी भर किसान अपने निजी हितों को साधने के लिए समय-समय पर ऐसे आंदोलन चलाते रहते हैं, जिनके तार खालिस्तान समर्थक और देश विरोधी तत्वों से भी जुड़े दिखाई देते हैं। दो वर्ष पूर्व किसानों की हठधर्मी के कारण ही मोदी सरकार को नया कृषि कानून वापस लेना पड़ गया था, क्योंकि नये कृषि कानून की आड़ में कुछ देश विरोधी शक्तियां और टुकड़े-टुकड़े गैंग देश को दुनिया में बदनाम करना चाहते थे.तब साल भर से अधिक किसान आंदोलन चला था। यही सब अब भी हो रहा है, लेकिन इस बार केन्द्र सरकार चैकन्नी थी, किसानों को दिल्ली बार्डर से पहले ही रोकने के लिये पूरे इंतजाम कर लिये गये थे।
यूपी में सपा प्रमुख अखिलेश भी यही काम कर रहे हैं, जबकि वह जानते हैं कि इस किसान आंदोलन से किसानों का कुछ लेना-देना ही नहीं है। आंदोलनकारी किसानों के साथ कोई भी बढ़ा किसान संगठन नहीं खड़ा है। अखिलेश कहते हैं एक ओर केंद्र सरकार ने किसानों के मसीहा चैधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा की। वहीं दूसरी तरफ किसानों पर बल प्रयोग कर उन्हें उत्पीड़ित कर रही है। किसानों के नाम पर भाजपा की छल प्रपंच की राजनीति दो-मुंही नीति अस्वीकार्य है। किसान अपनी परेशानियों की चर्चा न कर सकें, इसलिए दिल्ली की सीमा पर अवरोध खड़े किए जा रहे हैं। बार्डर सील कर सीमेंट के बैरिकेड लगा दिए गए हैं। किसानों के रास्ते में कीलें ठोक दी गई हैं। किसानों को अपनी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जाने से रोकना पूरी तरह अलोकतांत्रिक और संविधान विरोधी है।
पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार भी कहीं न कहीं किसानों के आंदोलन को हवा दे रही है इसीलिए पंजाब सरकार ने किसी भी किसान को दिल्ली कूच से नहीं रोका। बहरहाल, अखिलेश यादव की बात की जाये तो उन्हें लगता है कि भाजपा का चरित्र कम विरोधाभासी नहीं है। एक ओर केंद्र सरकार ने किसानों के मसीहा चैधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा की। वहीं दूसरी तरफ किसानों पर बल प्रयोग कर उन्हें उत्पीड़ित कर रही है। किसानों के नाम पर भाजपा की छल प्रपंच की राजनीति दो-मुंही नीति अस्वीकार्य है। अखिलेश ने कहा कि किसान आंदोलित है। भाजपा सरकार ने अपने पूरे कार्यकाल में किसानों को सिर्फ छलने और धोखा देने का ही काम किया है। भाजपा जोर जबरदस्ती से उनकी आवाज कुचलने का इरादा कर रही है। केंद्र सरकार तक अपनी मांगें पहुंचाने के लिए किसान दिल्ली जाना चाहते हैं, परंतु भाजपा सरकार उनको सुनना नहीं चाहती है। सरकार का आचरण लोकतंत्र विरोधी है।
सवाल यह है कि किसी राजनैतिक पार्टी का नेतृत्व इतना परिपक्त कैसे हो सकता है जो अपनी राजनीति को चमकाने के लिये सही-गलत का भी आकलन नहीं कर पाता हैं।। किसानों ने जो मांगे रखी हैं, उसमें सबसे बड़ी मांग एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) है। किसान चाहते हैं कि उन्हें अपनी फसल बाजार में बेचने की जरूरत नहीं पड़े, केन्द्र सरकार उसकी फसल को खरीद कर उसे एमएसपी दे दे। यह असंभव है। कोई सरकार कैसे किसानों की पूरी फसल खरीदने में अपना पैसा झोंक सकती है। आखिर सरकार को और भी विकास के काम करने होते हैं। देश की सुरक्षा के लिये मिलेट्री के आधुनिकीकरण पर पैसा खर्चा करना होता है। अपनी सामाजिक योजनाओं को पूरा करने के लिये पैसा चाहिए होता है। इसी तरह की कई बेतुकी मांगे किसान कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि वर्ष 2021-22 में जिस किसी भी किसान पर मुकदमा हुआ था उसे रद्द किया जाए। पूर्व आंदोलन में जिन किसान की मौत हुई थी उनके परिवार को मुआवजा देने की मांग, पूर्व आंदोलन में जिन किसान की मौत हुई थी उनके परिवार के एक सदस्य को नौकरी। सरकारी और गैर सरकारी कर्ज माफ हो। 60 वर्ष से अधिक के किसानों को 10 हजार रुपये पेंशन। कृषि वस्तुओं, दूध उत्पादों, फलों, सब्जियों और मांस पर आयात शुल्क कम किया जाए। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश लागू की जाएं। इसी तरह से कीटनाशक, बीज व उर्वरक अधिनियम में संशोधन के अलावा इसी तरह की और भी किसानों की कई मांगे हैं।
उधर, उत्तर प्रदेश के बॉर्डरों जिनमें गाजीपुर, चिल्ला, अप्सरा व भोपुरा शामिल हैं वहां लगभग एक हजार पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया गया है। सभी बॉर्डर पर बैरिकेड लगाए गए हैं। हालांकि केवल एक लेन वाहनों के लिए खोली गई है। वहीं सिंघु बॉर्डर पर भी भारी संख्या में पुलिस फोर्स तैनात है। रोड पर बैरिकेड लगाए गए हैं। औचंदी, लामपुर व सबौली बॉर्डर पर पुलिस व अर्ध सैनिक बलों की संख्या में इजाफा किया गया है। जबकि रिपोर्ट्स बताती हैं कि टीकरी बॉर्डर पर पुलिस की कड़ी नजर है। जानकारी के अनुसार दिल्ली से जुड़े हरियाणा के बॉर्डरों पर अधिक संख्या में किसान मौजूद हैं।

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