Monday, April 29, 2024
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बत्तख मियां की चाय…

अगर कोई मुझ पर बहुत पास से गोली चलाता है और मैं मुस्कुराते हुये दिलों में राम नाम लेते हुये उन गोलियों का सामना करता हूं तो मैं बधाई का हकदार हूं: गांधी जी
जो व्यक्ति मौत से डरता है, उसे मौत बार-बार डराती है। जो व्यक्ति मौत की डर से परे हैं। जैसे (गांधी जी) उसे मौत एक बार आती है। पूत के पांव पालने में नजर आता है। गांधी जी को ब्रिटिश सरकार भारतीय राजनीति मे सक्रिय होने से पहले पहचान ली थी। गांधी जी के ऊपर एक नहीं, दो नहीं, बल्कि कुल मिलाकर 6 बार जानलेवा हमला हुआ है। घटना 1917 चंपारण जिले की है। गांधी जी मोतिहारी में थे। सभी नील मालिकों के मालिक इर्विन गांधी जी को वार्ता करने के लिए बुलाया और सोचा कि अगर गांधी जी को बातचीत के दौरान खाने-पीने की चीजों में जहर मिलकर दे दिया जाए” और ऐसा जहर जो बाद में असर करें तो हम लोग के ऊपर कोई आंच नहीं आएगी। इस व्यक्ति ने अंग्रेजों के नाक में दम कर रखा है”। सारी बात बतख मियां अंसारी (खानसामा) को समझाई गई। बतख मियां चाय का “ट्रे’ लेकर जाएंगे। बत्तख मियां अंसारी किसी कारण बस या डर बस मना नहीं कर पाए और चाय का ट्रे लेकर गांधी जी के पास गए लेकिन बतख मियां अंसारी की हिम्मत नहीं हुई कि चाय का ट्रे गांधी जी के सामने रख दें और बतख मियां अंसारी खड़े रहे। जब गांधी जी बत्तख मियां की तरफ सिर उठाकर देखा तो बतख मियां अंसारी रोने लगे जिससे सारा भेद खुल गया। बतख मियां अंसारी पकड़े गए। उनको जेल हो गई। जमीनें नीलाम हो गईं। उनका परिवार बिखर गया।
बीबीसी हिंदी के वरिष्ठ संवाददाता मधुकर उपाध्याय ने बताया कि इस घटना का जिक्र गांधी जी की जीवनी में कहीं नहीं मिलती। चंपारण का सबसे बड़ा प्रमाणिक इतिहास माना जाने वाला बाबू राजेंद्र प्रसाद की किताब में कहीं नहीं मिलती। 1957 में जब बाबू राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति थे। उनको नरकटियागंज जाना था। वह एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे तो देखा कि दूर एक व्यक्ति खड़ा है तो बाबू राजेंद्र प्रसाद पहचान गए और मंच से ही आवाज लगाई। बतख भाई कैसे हो और बतख मियां अंसारी को स्टेज पर बुलाया। 1917 की घटना लोगों को बतायी और उनको अपने साथ दिल्ली लाए। बाद में बत्तख मियां के लड़के जान मियां अंसारी को सॉरी भाई। राष्ट्रपति भवन में बुलाकर रखे और साथ में एक लेटर बिहार सरकार को लिखे, क्योंकि इनकी जमीनें ब्रिटिश सरकार द्वारा जप्त कर ली गई थीं। इनको 35 एकड़ जमीन दी जाय। बतख मियां को 62 साल बीत जाने के बाद भी जमीन नहीं मिली। 1917 में ही और एक नील मलिक ने कहा कि अगर गांधी जी मुझे अकेले मिल जाए तो उसको गोली मार दूंगा। अगली सुबह गांधी जी अपनी छड़ी लिए हुए अंग्रेज की कोठी पर पहुंच गए। गांधी जी ने चौकीदार से कहा कि अपने मालिक से बता दो, मैं आ गया हूं और अकेला भी हूं। कोठी का दरवाजा नहीं खुला। गांधी जी जब अपनी बहुचर्चित किताब “हिंद स्वराज” 1909 मे लिख रहे थे। पोरबंदर और राजकोट के आस—पास एक कहावत प्रचलित थी। मियां और महादेव में नहीं बन सकती थी। “बन ही नहीं सकती। गांधी जी को समझ में नहीं आती थी कि यह कहावत किस आधार पर बनी है और क्यों कही जाती है। गांधी जी को यह बात अच्छा नहीं लगता था।
गांधी जी के अधिकतर दोस्त मुसलमान थे। उनका एक बचपन का दोस्त मुसलमान शेख मेहताब थे जो बचपन में गांधी जी के साथ खेलते थे। गांधी जी को मीट पहली बार शेख मेहताब ने खिलाए थे और साल भर खिलाते रहे। जब गांधी जी को पहली नौकरी लगी तो पहली नौकरी देने वाले दक्षिण अफ्रीका में दादा अब्दुल्ला थे। मार्च में दांडी यात्रा के दौरान गांधी जी तय किया कि इस आंदोलन में अगर मुझको गिरफ्तार किया गया तो इस आंदोलन का नेतृत्व तैयब्जी करेंगे। जब गांधी जी को गिरफ्तार कर आगा खान पैलेस में रखा गया गया तो इस आंदोलन का नेतृत्व तैयब्जी ने किया। गांधी जी को यह बात हमेशा सालता रहा कि यह कहावत क्यों बनी? 1915 में कुंभ मेला हरिद्वार में लगा था। गांधी जी कुंभ मेले में जा रहे थे जब सहारनपुर में ट्रेन रुकी तो गांधी जी ने देखा लोग पसीने से तर बदर प्यार से गला सूख रहा है। पानी नहीं है। अगर कोई मुसलमान पानी पिलाने वाला है तो उसके हाथ से पानी नहीं पीते थे। हिंदू पानी पिलाने वाले का इंतजार करते थे। जान भले ही चली जाय। गांधी जी कहते थे कि अगर डाक्टर मुसलमान है तो उसके हाथ से दवा लेकर खा लेंगे लेकिन पानी नहीं पियेंगे। समस्या समाज में है। नोवा खाली के दंगे में जिस एरिया में गांधी जी जाते थे। वहां दंगे रुक जाते थे। गांधी जी जैसे मौत को जीत लिया हो। 1934 में गांधी जी को एक आयोजन में जाना था। दो गाड़ियां एक जैसी आई एक में आयोजक थे और दूसरी गाड़ी में कस्तूरबा गांधी और बापू जी बैठे थे। एक रेलवे क्रॉसिंग पर आयोजक की गाड़ी आगे निकल गई और गांधी जी की कार रेलवे क्रॉसिंग बंद होने के कारण वही रुक गई। आयोजक की गाड़ी में एक जोर का धमाका हुआ। गाड़ी की परखर्च उड़ गये।
1944 में पंचगनी में प्रदर्शन के दौरान एक युवक गांधी जी को मारने के लिए चाकू लेकर दौड़ा और पकड़ लिया गया। 1944 में ही मोहम्मद अली जिन्ना और गांधी जी की वार्ता होने वाली थी। इस वार्ता से मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा के लोग नाराज थे। उस वार्ता के दौरान भी गांधी जी पर हमला हुआ। वहां भी गांधी जी बाल बाल बचे 1946 में जिस ट्रेन से गांधी जी जा रहे थे, उसकी पटरिया उखाड़ दी गई और ट्रेन पलट गई। कलकत्ते में गांधी जी की मुलाकात वायसराय लॉर्ड वेवल से हुई तो गांधी जी ने कहा कि जिस हाल में हम लोग हैं, हम लोग को छोड़कर आप चले जाइए। हम लोग अपनी समस्याएं और फैसले स्वयं हल कर लेंगे, क्योंकि आप के रहते आजादी नहीं मिल सकती। जब तक आप लोग भारत में रहेंगे, आप लोग आग में घी डालने काम करते रहेंगे। आप लोग के रहते हिंदू—मुस्लिम एकता हो ही नहीं सकती। आजाद हिंद फौज के सिपाही जब जेल लाल किले में बंद थे तो गांधी जी उनसे मिलने गए गांधी जी ने देखा कि जो बात उन्होंने कोलकाता में वायसराय वेबल से जो बात कही थी कि आप लोगों के रहते एकता नहीं हो सकती। कितनी सच थी। लोगों ने बताया कि जब चाय वाला आता है तो वह आवाज देता है। हिंदू चाय तैयार है और मुस्लिम चाय अभी आने वाली है। गांधी जी ने पूछा आप लोग करते क्या हैं? सिपाहियों ने कहा कि हम लोगों में कोई भेदभाव नहीं है। यह सरकार का आदेश है। हिंदू चाय अलग बने और मुस्लिम चाय अलग बने। गांधी जी ने सुभाष चंद्र बोस के काम करने के ढंग की फौजी के गठन के जरिए आजादी हासिल करने की कोशिश की। कई बार आलोचना की थी लेकिन लाल किले से लौटने के बाद गांधी जी ने साफ-साफ शब्दों में कहा कि नेता जी सुभाष चंद्र बोस एक नेशनलिस्ट राष्ट्रवादी नेता हैं। उनका सबसे बड़ा योगदान एक पूरी तंजीम खड़ा करना और उनमें छुआछूत और हिंदू मुस्लिम का भेद मिटा देना। इसके लिए मैं उनको सलाम करता हूं।
हरी लाल यादव
सिटी रेलवे स्टेशन, जौनपुर
मो.नं. 9452215225

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