Sunday, April 28, 2024
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हक—अधिकार के लिये सभी को एक साथ आकर उठानी होगी आवाज़: बचाऊ राम

  • छितौना गांव में महिला जन संवाद यात्रा का हुआ आयोजन
  • “हमार माटी, हमार स्वाभिमान, हमार अस्मिता, हमार अधिकार” में महिलाओं ने सुनायी पीड़ा


विनोद कुमार
केराकत, जौनपुर। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर बुधवार को ग्राम छितौना में दिशा फाउंडेशन कबीर पीस सेंटर के साथ ही ग्लोबल कैंपेनिंग दलित वूमेन एवं तारा एजुकेशनल ट्रस्ट ने संयुक्त रूप से “हमार माटी, हमार स्वाभिमान, हमार अस्मिता, हमार अधिकार” विषय महिला जन संवाद यात्रा का पहला पड़ाव संपन्न हुआ। इस दौरान कई गांवों की महिलाएं शामिल हुईं जिसमें शामिल महिलाओं ने अपने जीवन के अनेक पहलुओं पर चर्चा किया। इस दौरान पूनम ने बताया कि समाज में जिसके पास धन और संपत्ति है, वही सब कुछ करता है और निर्णय भी वहीं करता हैं। महिलाएं सिर्फ पुरुषों की सेवक भर हैं। साधना यादव ने कहा कि गांव की महिलाएं सबसे ज्यादा श्रम करती है। सही तौर पर देखा जाए तो खेती किसानी से लेकर घर आंगन तक सबसे अधिक लगाव यदि किसी का है तो वह महिला ही हैं जो घर में सबसे अधिक श्रम करती है लेकिन उसके श्रम का कोई मोल नहीं होता हैं।शोभना स्मृति ने कहा कि संविधान ने जो भी अधिकार दिये, वह भी हमसे छिना जा रहा है। खासकर महिलाओं के ऊपर हर तरफ से हमले किए जा रहे, सावित्री बाई फुले से शुरू हुआ। महिलाओं के हक की लड़ाई आज पूरे भारत में फैल गया है। हम दुनिया में बराबरी और अमन—चैन की स्थापना तभी कर सकते हैं। जब हमें बराबरी का अधिकार मिल जायेगा।
वहीं बुजुर्ग महिला मीरा देवी ने कहा कि 70 साल से हम यही माटी में अपन जीवन खपा देहली लेकिन अभी तक मेरे पास कुछ भी नहीं हैं। जो जमीन जयादात है, वह सब बेटों और पति के ही नाम से है। मैंने उनमें ही अपनी खुशी और सुख देखती रही लेकिन कोई जीवन का सुख और खुशी नहीं मिली।
कामरेड बचाऊ राम ने कहा कि समाज जैसे जातियों, धर्मों, संप्रदायों में बंटा है। ठीक उसी प्रकार से महिलाएं भी बटी हुई हैं। इसी बंटवारे की वजह से शोषण भी मौजूद है। समाज में विशेषकर जितने भी श्रम और निर्माण करने वाले है, वह चाहे महिला हो चाहे पुरुष, वह किसी भी जाति व धर्म के हों भाषा, क्षेत्र के हों, सभी को एक साथ आकर अपने हकों और अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी पड़ेगी।
संतोष पांडेय ने संविधान पर बढ़ते खतरे की ओर इशारा करते हुए कहा कि हम अपने जनप्रतिनिधियों से सवाल भी नहीं पूछ पाते हैं, वे 5 साल के बाद ही दिखाई देते हैं।
आकांक्षा ने महिलाओं से जुड़ी कविता सुनाया अध्यक्षता कर रहीं सामाजिक कार्यकर्ता नीरा आर्या ने संविधान में महिलाओं के अधिकारों पर बात करते हुए कहा कि समाज में सबसे खराब स्थिति महिलाओं की हैं। महिलाएं घर से बाहर तक सभी जिम्मेदारियां निभाती हैं। इसके बाद भी महिलाएं अपेक्षित रहती हैं। उन्हें कोई समान भी लेना हो तो वह महिला पति और बेटे की अनुमति के बैगर नहीं ले सकती हैं जबकि संविधान ने सभी को बराबरी का अधिकार दिया है।
कार्यक्रम का संचालन सविता ने किया। इस अवसर पर पूनम, अंबिका, चंद्रकला, सुषमा, करिश्मा, रजिया, सीमा, लाल प्रकाश राही, लीला मौर्य, मंजू, सारदा, सीता, दयाराम, कैलाश, रामजीत समेत सैकड़ों महिलाओं, दर्जनों पुरुष, युवा मौजूद रहे।

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