Sunday, April 28, 2024
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यूपी में गांधी परिवार का ‘सूर्यास्त’ देश की राजनीति के लिये शुभ संकेत नहीं

अजय कुमार, लखनऊ
जवाहर लाल नेहरू, फिरोज खान (पति इंदिरा गांधी), इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी यह वह नाम हैं जिन्होंने समय-समय पर उत्तर प्रदेश से लोकसभा चुनाव जीत कर देश-विदेश तक में अपनी धाक जमाई थी। इनमें से 3 नेताओं नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनने तक का सौभाग्य मिला था लेकिन यह अतीत की बात है, कभी गांधी परिवार की सियासत का ‘सूर्याेदय’ यूपी से ही होता था परंतु अब इसी यूपी में गांधी परिवार की सियासत का ‘सूर्यास्त‘ हो चुका है। खास बात यह रही कि यह नेता कई बार चुनाव जीते तो एक-दो बार हारे भी लेकिन यूपी की सियासत से किसी ने पलायन नहीं किया। यह दिग्गज कांग्रेसी घूम—फिर करके यूपी से ही चुनाव लड़ते रहे। हाॅ राहुल गांधी जरूर इसमें अपवाद हैं जिन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में अमेठी संसदीय सीट से मिली हार के बाद यूपी से न केवल तौबा कर ली, बल्कि केरल की वाॅयनाड संसदीय सीट को अपना नया ठिकाना बना लिया। उधर सोनिया गांधी ने स्वास्थ्य कारणों से रायबरेली से लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है। जिस उत्तर प्रदेश में कभी गांधी परिवार का सूर्यास्त नहीं होता था, वहीं प्रदेश अब कांग्रेस और गांधी परिवार मुक्त हो गया है।
खैर! तमाम किन्तु-परंतुओं के बीच इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि राजनीति संभावनाओं का खेल है, कल क्या होगा? इसको लेकर बड़े से बड़े राजनीतिक पंडित भी किसी तरह की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि नेताओं का चाल चरित्र और चेहरा समय और जरूरत के हिसाब से बदलता रहता है। नेतागण अपनी सहूलियत के हिसाब से अपने वोटरों और जनता से संबंध बनाते बिगाड़ते हैं। इसकी सबसे ताजा मिसाल हैं सोनिया गांधी जिन्होंने बड़ी बेरुखी के साथ रायबरेली से अपना मुंह मोड़ लिया। इसी तरह का व्यवहार 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली हार के पश्चात राहुल गाँधी ने अमेठी के जनता के साथ किया था। राहुल अमेठी छोड़कर केरल के वाॅयनाड चले गये हैं। यही अब 5 साल के बाद सोनिया गांधी रायबरेली की जनता के साथ कर रही हैं। 2019 में अमेठी से चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी ने अमेठी की जनता से नाता तोड़ लिया था जबकि इससे पहले वह अमेठी की जनता के लिये जीने-मरने की कसमें खाया करते थे। 2019 में मिली हार के बाद राहुल ने अमेठी आना तो दूर, इसका नाम ही लेना छोड़ दिया है। यही काम अब सोनिया गांधी ने किया है। सोनिया गांधी स्वास्थ्य कारणों से रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ रही हैं। इस बात का किसी को गिला नहीं है। गिला इस बात का है कि कम से कम एक बार सोनिया गांधी यहां आकर अपने फैसले से रायबरेली की वोटरों को अवगत तो करा देतीं। आखिर कई लोकसभा चुनावों में यहां की जनता ने सोनिया गांधी के लिए बड़े-बड़े नेताओं को हार का स्वाद चखने से परहेज नहीं किया था। आज उन्हीं सोनिया गांधी ने रायबरेली की जनता को एकदम से बेगाना कर दिया, इसीलिए यह संभावना जताई जा रही है कि प्रियंका गांधी भी रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ेंगी। यदि प्रियंका के यहाँ से चुनाव लड़ने की संभावना होती तो सोनिया गांधी रायबरेली की जनता के साथ कतई ऐसा व्यवहार नहीं करती। हालांकि अपनी गलती का अहसास होते ही सोनिया गांधी ने एक मार्मिक पत्र रायबरेली की जनता के नाम लिखा जरूर है लेकिन इसमें स्पष्टता नहीं दिखाई देती है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि सोनिया गांधी खराब स्वास्थ्य के कारण राजनीति से संन्यास ले लेती तो उनकी बात समझ में आती लेकिन हकीकत यह है कि अबकी बार रायबरेली से चुनाव जीतने को लेकर सोनिया गांधी डरी हुई थीं। उन्हें लगता था कि रायबरेली से इस बार वह चुनाव हार जाएंगी। वरना वह पिछली कई बार की तरह इस बार भी यहां नामांकन करके चली जाती और रायबरेली की जनता उन्हें पहले की तरह जिता देती। एक बात और यदि सोनिया गांधी यह समझती हैं कि राज्यसभा बीमार लोगों के लिए बना है तो यह उनकी गलत सोच है।
बहरहाल, रायबरेली की जनता को जिस तरह से सोनिया ने ठेंगा दिखाया है, उसके बाद यदि प्रियंका यहां से चुनाव लड़ती भी है तो उनके लिए चुनाव जितना मुश्किल नहीं तो आसान भी नहीं होगा। प्रियंका वाड्रा के लिए मुश्किल इसलिए भी खड़ी हो सकती है, क्योंकि लंबे समय से वह रायबरेली से किनारा किए हुए हैं जबकि वह 2019 से पहले अपनी मां के संसदीय क्षेत्र रायबरेली आया-जाया करती थी। हो सकता है कि आज सोनिया ने रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा सार्वजनिक रूप से की हो लेकिन प्रियंका को इस बात का पहले से पता हो, इसीलिए उन्होंने 2019 के बाद यहां से दूरी बना ली हो।
गौरतलब है कि सोनिया गांधी ने 14 फरवरी 2024 को जब राज्यसभा के लिए राजस्थान के जयपुर पहुंचकर पर्चा दाखिल किया था तभी साफ हो गया था कि वे इस बार के लोकसभा चुनाव में नहीं उतरेंगी। रायबरेली कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। यहां से सोनिया गांधी से पहले फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी भी चुनाव लड़ चुकी थीं। सोनिया गांधी 2019 में यहाँ से 5वीं बार लोकसभा चुनाव जीती थीं। 2019 के चुनाव के दौरान सोनिया गांधी ने घोषणा की थी कि अगला लोकसभा चुनाव वे नहीं लडेंगी लेकिन तब कहा गया था कि अक्सर सीनियार नेता ऐसी बातें वोटरों पर मनोवैज्ञानिक दबाव डलाने के लिये करते हैं। सोनिया गांधी की रायबरेली से जुड़ाव की बात की जाये तो कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद वर्ष 1999 में सोनिया गांधी पहली बार रायबरेली से चुनाव जीती थीं। सोनिया गांधी के रायबरेली सीट से हटने के बाद प्रियंका गांधी को लेकर दावा किया जा रहा था कि प्रियंका लोकसभा चुनाव में रायबरेली से उतरेंगी। हालांकि अब इसको लेकर चर्चा पर विराम कांगे्रस द्वारा ही लगा दिया गया है। कांग्रेस नेताओं की तरफ से बयान दिया जाने लगा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा रायबरेली से 2024 के चुनाव में नहीं उतरेंगी। गांधी परिवार और कांग्रेस को लगता है कि कहीं प्रियंका वाड्रा का भी हाल राहुल जैसा ना हो जाय। जैसे अमेठी की जनता ने राहुल को ठुकरा दिया था, वैसे ही रायबरेली की जनता प्रियंका को ठुकरा दे। यहां से राहुल 2004 से चुनाव जीतते आ रहे थे लेकिन 2019 में उन्हें बीजेपी की स्मृति ईरानी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद से राहुल गांधी गिने-चुने मौकों पर ही अमेठी पहुंचे हैं।
कांग्रेस इस बार विपक्षी गठबंधन के सहारे यूपी के चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में है जबकि जमीनी स्तर पर पार्टी का संगठन काफी कमजोर है। याद दिला दें कि प्रियंका को यूपी विधान सभा चुनाव 2022 के दौरान प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था। ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं, नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरी प्रियंका ने यूपी की राजनीति में अपनी छाप छोड़ने की काफी कोशिश की थी लेकिन इसमें वह सफल नहीं हो पाई। प्रियंका को इस चुनाव में कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी।पार्टी को 2017 के विधानसभा चुनाव में मात्र दो सीटों पर जीत मिली। राष्ट्रीय पार्टी का तमगा प्राप्त कांग्रेस से अधिक सीटें तो क्षेत्रीय पार्टी अपना दल (सोने लाल), राष्ट्रीय लोकदल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने जीत ली थीं। प्रियंका पार्टी का वोट प्रतिशत भी बढ़ाने में कामयाब नहीं हो सकीं। कुल मिलाकर यदि गांधी परिवार ने यूपी से दूरी बनाई है तो इसकी प्रमुख वजह यही है कि उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार के लिए अब कोई सेफ सीट नहीं बची है। इसी के चलते करीब 70 सालों के बाद यूपी कांग्रेस और गांधी परिवारविहीन हो गया है।

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