खुद को सुधारें, जमाने को नहीं
अनुभव बतलाता है कि हम लोग सबसे
ज़्यादा धोखा अपनी अच्छाई से खाते हैं,
हम सामने वाले को बिलकुल वैसा
ही मान लेते हैं, जैसा वह दिखता है।
क्योंकि हम यह नही जान पाते हैं,
और ना ही यह महसूस कर पाते हैं,
कि दुनिया में लोग तो रावण से भी
ज़्यादा अपने चेहरे छिपाये रहते हैं।
जब भारी बारिस होती है तब हमें
जीवन की चुनौतियों याद आती हैं,
और तब हम कम बारिस की विनती
करते भी हैं और नहीं भी करते हैं।
परंतु अपने सिर पर एक मजबूत
छत या छाते का प्रबंध कर लेते हैं,
यह चुनौतियों से डटकर निपटने
की एक अच्छी मनोवृत्ति होती है।
किसी इंसान की ख़ुशी पैसों पर नहीं,
परिस्थितियों पर ही निर्भर करती है,
एक बच्चा गुब्बारा पाकर ख़ुश होता है,
वहीं दूसरा उसे बेच कर ख़ुश होता है।
किसी राह पर चलते चलते अगर
किसी की कोई भी बात बुरी लगे,
तो दूसरों को बताने से पहले एक
बार उसे जरूर बता देना चाहिये।
आदित्य बदलना उसे है जमाने को नहीं,
ज़माना तो बुराइयाँ खोजता फिरता है,
किसी की भलाइयों में उसकी रुचि नहीं,
इसलिये खुद को सुधारें जमाने को नहीं।
कर्नल आदिशंकर मिश्र
जनपद लखनऊ