Saturday, May 18, 2024
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बिटिया मेरी लड़ती है मुझसे रोज झगड़ती है

बिटिया मेरी लड़ती है मुझसे रोज झगड़ती है
जिस दिन वह चुप रहकर नयी शरारत करती है,
उस दिन मेरी हालत कुछ अजीब सी रहती है।
जीवन में सब मिल जाता है एक जरूरत पड़ती है,
मेरी लाडो बिटिया मुझसे अपने पन से लड़ती है।
रोज थका मैं घर जब आऊं उसके कितने नखरे है,
मौन साध चुप हो जाता हूं कितने मुझ पर पहरें है।
उसकी किलकारी अठखेली हम पर कितनी भारी है,
हर सवाल का दे जवाब वह मेरी राजदुलारी है।
चिकनी चुपड़ी बातों से करती सबसे यारी है,
कभी शिकायत मां की करके मेरी बनती प्यारी है।
मेरी कहानी मां से कहती दुनिया उसकी न्यारी है,
उसके बिना अधूरा जीवन लगता सुखी क्यारी है।
चप्पल, जूते, उसके कपड़े संस्कार से बुने हुए,
मर्यादित भाषा में रहकर अपनेपन से चुने हुए।
खाने की जिद कभी न करती बाजारों से रहती दूर,
मेरी प्यारी बेटी मुझको कभी नहीं करती मजबूर।
शिक्षा उसकी एक सहेली उससे गहरा नाता है,
पढ़ना लिखना जीवन उसका उसको वही सुहाता है।
रूठ गई यदि मेरी बेटी मन बार बार घबराता है,
उसके पास पहुंच कर खुद मन उसको समझाता है।
उसकी आंखों में जब आंसू कभी निकल कर आते हैं,
जाने क्यों मेरे भी आंसू छुप कर ही आ जाते हैं।
मेरी बिटिया बड़ी हो रही दूर कैसे यह जाएगी,
कुछ समाज के ताने बांनो से यह ढ़ल पाएगी।
उसकी हर मुस्कान हमें हर बार हिदायत देती है,
मां की ममता बनी रहे वह नहीं शिकायत देती है।
कभी-कभी जब घर से बाहर बिटिया मेरी जाती है,
होता है जब लेट उसे तो जां पर मेरी बन आती है।
इस समाज के सजग परीक्षक इतना हमें बता देना,
कोख में जब पलती है बेटी उसे तुरंत अपना लेना।
बेटा-बेटी का फर्क डालकर मानवता क्यों छोड़ रहे,
दोनों की परवरिश सही है मां की ममता जोड़ रहे।
जाति, धर्म और दहेज प्रथा की रीति नहीं पुरानी है,
बेटी बेटा में फर्क डालना मानवता की कहानी है।
पाल रहे घर में जो बच्चा उसका भी इक सपना है,
मानस के पन्नों को पलटों हर बच्चा सब अपना है।
बिटिया कितनी दर्द दे रही है आज विदाई है उसकी,
आंखों में अरमान सजा पर आज जुदाई है उसकी।
दुनिया के लोगों सुन लो सब याद बहुत दिलाते हो,
विदा हो गई जब बिटिया तब आंसू बहुत छिपाते हो।
देवी प्रसाद शर्मा ‘प्रभात’
ब्यूरो चीफ— तेजस टूडे
जनपद आजमगढ़, मो.नं. 7008310396

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