Monday, April 29, 2024
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काशी में होता है पाताल लोक के नागकूप का दर्शन

सुरेश गांधी
नाग पंचमी की अनोखी मान्यताएं काशी में आज भी जीवंत हैं। मान्यताओं और परंपराओं के इस मेले में आज भी बड़ी संख्या में आस्थावानों का जमघट होता है। मान्यतय है कि यह कुंआ पाताल लोक से जुड़ा है। इस कुए को नागों का घर भी कहा जाता है। श्रद्धालुओं की मानें तो तक्षक नाग इसी कुएं में निवास करते है। दावा है कि यहां के दर्शन मात्र से ही काल सर्प दोष ठीक हो जाता है। अकाल मृत्यु का कारण खत्म हो जाता है।
वाराणसी के जैतपुर में स्थित नाग कुएं में विराजमान है नागेश्वर महादेव। श्रद्धालु यहां आकर नागेश्वर महादेव को दूध, लावा और तुलसी की माला से पूजा करते हैं, क्योंकि शेषनाग को तुलसी बहुत प्रिय है। खासकर नाग पंचमी के दिन पास पड़ोस ही नहीं देशभर से श्रद्धालु आते हैं। कूप में विराजमान नागेश्वर महादेव के दर्शन करते है। कहते है जिस किसी भी व्यक्ति को स्वप्न में बार-बार सर्प या नाग देवता के दर्शन होते हैं, इस कुंड का जल घर में छिड़काव करने से इन दोषों से मुक्ति मिल जाती है। मान्यता है कि नागपंचमी के दिन दर्शन करने व नाग नागिन का जोड़ा चढ़ाने से काल सर्पदोष दूर हो जाता है। यहां के कुंए का पानी 43 दिन लगातार मंसा मां को चढ़ाने से उसके सारे दुख-दर्द कट जाते है। नागकुंड में दर्शन करने वालों की सुबह से ही कतार लग जाती है। मंदिर और कुंआ हज़ारों साल पुराना है। इस कुएं का वर्णन शास्त्रों में भी किया गया है। इसे ‘करकोटक नाग तीर्थ’ के नाम से जाना जाता है। इस नाग कुंड को नाग लोक का दरवाजा बताया जाता है। इसी स्थान पर महर्षि पतंजलि ने पतंजलि सूत्र तथा व्याकरणाचार्य पाणिनी ने महाभाष्य की रचना की थी।मंदिर के पुजारी का कहना है कि एक बार नागराज तक्षक वाराणसी संस्कृत की शिक्षा लेने आयें लेकिन उन्हें गरुण देव से भय था जिसकी वजह से वह बालक रूप में बनारस आएं। गरूण देव को इस बात का पता चल गया कि तक्षक बनारस में है और उन्होंने उस पर हमला कर दिया। हालांकि अपने गुरू का प्रभाव होने के नाते गरुण देव को तक्षक नाग को अभय दान देना पड़ा। कहते हैं कि इस नागकूप पर महर्षि पतंजलि ने तपस्या की थी। महर्षि पतंजलि के इस तपोस्थली का उल्लेख स्कंद पुराण में है। महर्षि पतंजलि शेषावतार भी माने जाते हैं। नाग पंचमी पर हर साल उनकी जयंती इस स्थान पर मनाई जाती है। जयंती पर नागकुआं पर शास्त्रार्थ का आयोजन होता है। मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन स्वयं महर्षि पतंजलि सर्प रूप में आते हैं और बगल में नाग कूपेश्वर भगवान की परिक्रमा करते हैं। इसके बाद शास्त्रार्थ में बैठते हैं और शास्त्रार्थ में शामिल विद्वानों और बटुकों पर कृपा भी बरसाते हैं। इस अनादि परंपरा को जीवंत पर्व के दिन बनाया जाता हैनागकूप के बारे में कहा जाता है कि पाताल लोक जाने का रास्ता है। इस कूप के अंदर सात कूप है। इस कुंए की गहराई 100 फीट है। सिर्फ नागपंचमी के मौके पर ही दर्शन होता हैं। शास्त्रार्थ परंपरा युगों पुरानी वैदिक कालीन परंपरा से जुड़ी है। महर्षि पतंजलि की जैतपुरा में नागकूप में स्थापना मानी जाती है। पतंजलि की परंपरा शास्त्रार्थ की रही है। इस लिहाज से नागकूप में परंपरा का मान रखते हुए प्रतिवर्ष परंपराओं का अनुपालन किया जाता है। प्रतिवर्ष इसका निर्वहन नागकूप क्षेत्र में आज भी किया जाता है। माना जाता है कि पूरी दुनिया में केवल 3 ही जगह कालसर्प दोष की पूजा होती है, उनमें यह नाग कुआं पहले स्थान पर है। कुआं के अंदर शिवलिंग हमेशा पानी में डूबा रहता है। नागपंचमी के दिन होने वाले मेले से पहले पंप द्वारा कुएं का सारा पानी बाहर निकाला जाता है। उसके बाद उसमें जो शिवलिंग स्थापित है उसका श्रृंगार व पूजा-पाठ करके वापस रख दिया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद अपने आप एक घंटे में कुआं वापस भर जाता है। पानी आने का रहस्य आज भी बना है।कूप निर्माण को लेकर बताया जाता है, इसका जीर्णोद्धार संवत एक में किसी राजा ने करवाया था। इस हिसाब से इसका समयकाल लगभग 2074 साल पुराना है। महर्षि पतंजलि ने यहीं पर अपने गुरु पाणिनि के साथ कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की जिसमें महाभाष्य, चरक संहिता, पतंजलि योग दर्शन प्रमुख हैं। महर्षि पतंजलि शेषावतार थे, इसलिए वे पर्दे की आड़ से अपने सभी शिष्यों को एक साथ सभी विषय पढ़ाते थे। किसी को भी पर्दा हटाने की परमिशन नहीं थी। इस कूप में पानी कहां से आता है यह रहस्य आज भी बरकरार है। अंदर कूप की दीवारों से पानी आता रहता है। सफाई के लिए दो-दो पम्पों का सहारा लेना पड़ता है। इसके चारों तरफ सीढ़िया हैं। नीचे कूप के चबूतरे तक पहुंचने के लिए दक्षिण से 40 सीढ़ियां, पश्चिम से 37, उत्तर और पूरब की ओर दीवार से लगी 60-60 सीढ़ियां हैं। इसके आलावा कूप में शिवलिंग तक उतरने लिए 15 सीढ़ियां हैं। कूप में दक्षिण दिशा ऊंची है, जिसमें 40 सीढ़ियां हैं जो प्रमाणित करती है यह कूप पूरी तरह वास्तुविधि से बना है।

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