शहीदों की यादों को जिन्दा रखने वाली शिलापट्ट से धुंधली होतीं यादें
अधिकारियों की क्या बात करें साहब! यहां तो पत्थर भी शहीदों के नाम भूल जाते हैं
विनोद कुमार
केराकत, जौनपुर। देश के आन—बान—शान पर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले अमर शहीदों के लिए जगदम्बा प्रसाद मिश्र ने एक कविता लिखी जिसमे एक पंक्ति “शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले। वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा” रहीं जिसे आज देश का हर बच्चा जानता है। इन्हीं गीतों व कविताओं के माध्यम से आज के जवानों में भी वीर रस का उत्सर्जन होता रहा है। आज भी अमर शहीद जवानों के गांवों में उन्हें याद रखने के लिए पत्थर की शिलाओं पर उनका नाम अंकित कर यह बताया व जताया जाता है कि हम उन्हें नहीं भूलेंगे जबकि कहीं—कहीं अधिकारियों की लापरवाही कहें या मनमानी ऐसे शिलाएं जो शहीदों के नाम को अमर बनाती है, उनके रख रखाव पर ध्यान नहीं देते जिससे अमर जवानों के नाम शिलाओं पर गैरजिम्मेदाराना तरीके से धूमिल हो जाते हैं।
हम बात कर रहे हैं भौरा ग्राम के शहीद संजय सिंह जिन्होंने अपने देश के लिए अमर बलिदान दिया। उनके पैतृक आवास की तरफ जाने वाले रोड पर लगा शिलापट्ट प्रशाशन की दुर्दशा बयाँ कर रहा है जिसकी सुध ही प्रशासन ले रहा और न ही जनप्रतिनिधि। अमर शहीदों के बलिदान का हमारा देश कैसे सम्मान करता है, इसका जीता जागता उदाहरण है। बड़ा सवाल क्या यह अनदेखी देशहित में है? आखिर जिम्मेदार अधिकारियों का ध्यान उपेक्षित पड़े शिलापट्ट की तरफ क्यों नहीं जाता है?
सीएम आफिस के फोन अटेंडर को नहीं पता पम्पोर हमले में शहीद जवानों की जानकारी
सीएम आफिस पर फोन कर शहीदों के सम्मान के लिए किये गये वायदों की याद दिलाने पर फोन अटेंडर को घटने की जानकारी का ना होना, बड़े ही शर्म की बात है। शहीद के शहादत के 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी वादों के न पूरा होने की बात बताने पर उन्होंने कहा कि आप अपने क्षेत्रीय विधायक, सांसद या फिर जिलाधिकारी को अवगत करायें। क्या शहीद के प्रति सीएम कार्यालय में बैठे उन अधिकारियों का फर्ज नहीं बनता कि उपेक्षित शहीद परिवार की मदद करें। एक तरफ सरकार शहीद परिवार को लेकर बड़े बड़े वादे करती नजर आती है तो वहीं कार्यालय ने बैठे अधिकारियों द्वारा शहीद के विषय में जानकारी न होना। कहीं न कहीं सवाल खड़ा करता है कि क्या ऐसे गैरजिम्मेदार लोगों को ऐसे पद पर बैठाना उचित है? जिनको शहीद परिवार की मदद करने के बजाय जनप्रतिनिधि व अधिकारियों का हवाला देकर केवल खानापूर्ति करते हैं।