Sunday, April 28, 2024
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रंग तरंग: कला एवं शिक्षा का संगम

कला साहित्य एवं संगीत ही है जहां समाज, संस्कार, संस्कृति एवं सुकून का सुंदर संयोजन देखने को मिलता है, जहां कल्पनाओं को अथाह तक पहुंचने की आजादी होती है‌। जहां सम्प्रेषण के साथ एक यात्रा पर होता है पाठक, श्रोता या दर्शक, जहां की यात्रा सभी को मनमोहन, मनभावन तथा आज के इस अशांति भरे जीवन में एक उम्मीद की भांति नजर आती है। इन्हीं तमाम विशेषताओं पर गौर करते हुए भारतीय शिक्षा पद्धति के नई शिक्षा नीति में बदलाव की बयार बही है जहां कला समेकित शिक्षा पर विशेष जोर है। जहां बच्चों को कला से जुड़ने और कला के माध्यम से अध्ययन को और आसान एवं ज्ञानवर्धक बनाने की बात है। एस.सी.ई.आर.टी. नई दिल्ली ने तो एक अभिनव प्रयोग ही कर डाला जो आने वाले समय में शिक्षा जगत में मील का पत्थर साबित होगी। दिल्ली शिक्षा निदेशालय सहित पूरे भारत से विशेष कलाकारों को आमंत्रित कर अपने बच्चों को उनके कलाकृतियों एवं सृजन प्रक्रिया से अवगत कराते हुए बच्चों को सीखने का पूरा मौका दे रही है। कलाकार जो अलग-अलग जगह से अलग अलग माध्यमों के साथ उपस्थित हुए हैं बड़े ही बारीकी के साथ बच्चों को सिखा रहे हैं और बच्चे पूरे मनोयोग से कला और उसके प्रक्रिया के साथ जुड़ भी रहे हैं। एस.सी.ई.आर.टी. नई दिल्ली के सभी डायट से बच्चों की उपस्थिति और उनके सीखने की उत्सुकता को देखते हुए भविष्य के प्रति आस्वस्त हुआ जा सकता है।
रंग तरंग नाम से से चल रहे इस प्रोजेक्ट का ये दूसरा संस्करण है जिसमें कुल 56 कलाकारों को जोड़ा गया है जो लाइव डेमोंस्ट्रेशन के माध्यम से बच्चों के साथ जुड़ रहे हैं। संयोजक विमल कुमार जी एवं डाॅ. विक्रम कुमार के सपनों को पंख लगते हुए यहां देखा जा सकता है जहां एस.सी.ई.आर.टी. नई दिल्ली द्वारा इस सपने को साकार करने का बेड़ा उठाया गया है। एस.सी.ई.आर.टी. शिक्षा जगत में हमेशा से अभिनव प्रयोग करती रही है जिसका फायदा शिक्षा जगत से जुड़े लोगों विशेषतः बच्चों को मिलता भी रहा है।
एक समय था जब बच्चे कला वर्ग, विज्ञान वर्ग या फिर वाणिज्य वर्ग से बाहर ही नहीं निकल पाते थे कारण उन्हें और क्षेत्रों की जानकारी ही नहीं होती थी। विद्यालयों में भी कला शिक्षा के नाम पर फूल, पत्ती, कबूतर या फिर साड़ी का किनारा ही चलता रहा। कला शिक्षा हमेशा से दरकिनार ही रही पर आज जब दुनिया विज्ञान में विशेष प्रगति कर रही है कला एक आवश्यकता बन कर उभरी है और बच्चों के सामने एक खुला आकाश मिल गया है जहां वो बिना किसी दवाब के बहुत कुछ सीख सकते हैं और समाज को सही दिशा प्रदान कर सकते हैं। कला के माध्यम से और भी विषयों को आसान एवं आसानी से समझने योग्य बनाया जा रहा है जो अभिव्यक्ति के आजादी के साथ ही बच्चों के मन से जुड़ा हुआ होगा जहां बच्चे अपनी बात बेहिचक रंगों रेखाओं आदि के माध्यम से कह सकेंगे और आसानी से चीजों को सीख भी सकेंगे।
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए शिक्षा सचिव अशोक कुमार जी इस कार्यक्रम के माध्यम से शिक्षा जगत में बहुत बड़े बदलाव के साथ ही बच्चों के भविष्य को लेकर भी उम्मीद की बात कही जो निश्चित रूप से देखने को मिल रही है और यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इसका व्यापक असर आने वाले समय में देखने को मिलेगा।
डाॅ. रीता शर्मा निदेशक एस.सी.ई.आर.टी. भी नई शिक्षा नीति के तहत हो रहे इस प्रोजेक्ट को बच्चों एवं उनके भविष्य हेतु उपयोगी मानती हैं। ज्वाइंट डायरेक्टर डाॅ. नाहर सिंह भी इस कार्यक्रम के माध्यम से शिक्षा जगत में अभूतपूर्व बदलाव की बात करते हैं और खुशी व्यक्त करते हुए कहते हैं कि हम जिस भी परिवेश में रहते हैं उसी को ऑव्जर्व करते हैं। उसी से सीखने का प्रयास करते हैं और कुछ वैसा ही नये फाॅर्म में समाज को वापस करते हैं जिस हेतु कला एक परिपक्व माध्यम है और इसकी आवश्यकता आज निश्चित तौर है।
पंकज तिवारी
कवि, कलाकार एवं कला समीक्षक, नई दिल्ली।

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