Monday, April 29, 2024
No menu items!

ठण्ड से अधिक होता है ब्रेन हैमरेज का खतरा: डा. हरिनाथ

  • नियमित रूप से करें व्यायाम और प्राणायाम
  • श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय में संगोष्ठी आयोजित

शुभांशू जायसवाल
जौनपुर। इस समय पैरालिसिस (लकवा) का अटैक ज्यादा हो रहा है। ऐसे में यह जानना बहुत जरूरी है कि लकवा क्या होता है, कैसे होता है, इसके बचाव क्या हैं? पैरालिसिस को आम तौर पर लकवा, पक्षाघात, अधरंग, ब्रेन अटैक या ब्रेन स्ट्रोक के नाम से भी जाना जाता है। हमारे देश में हर साल 15-16 लाख लोग इसकी चपेट में आते हैं। सही जानकारी न होने या समय पर इलाज न मिलने से इनमें से एक तिहाई लोगों की मौत हो जाती है जबकि करीब एक तिहाई लोग अपंग हो जाते हैं। करीब एक तिहाई लोग वक्त पर सही इलाज मिलने से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं। उक्त बातें उक्त बातें नगर के नईगंज में स्थित श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय पर सोमवार को आयोजित संगोष्ठी में न्यूरो साइकियाट्रिस्ट डा. हरिनाथ यादव ने कही।
उन्होंने बताया कि दिमाग हमारे शरीर का सबसे अहम हिस्सा है और पैरालिसिस का सीधा संबंध दिमाग से है। दरअसल शरीर के सभी अंगों और कामकाज का नियंत्रण दिमाग से होता है। जब दिमाग की खून की नलियों में कोई खराबी आ जाती है तो ब्रेन स्ट्रोक होता है जो पैरालिसिस की वजह बनता है। डा. यादव ने कहा कि दिल से दिमाग तक चार मुख्य नलियों से खून जाता है। दो गर्दन में आगे से और दो पीछे से। अंदर जाकर ये पतली-पतली नलियों में बंट जाती हैं, ताकि दिमाग के हर हिस्से में खून पहुंच सके। इसे हम पाइपलाइन के उदाहरण से भी समझ सकते हैं। घरों में पानी पहुंचाने वाली पाइपलाइन में कोई खराबी आएगी तो वह अमूमन दो नतीजे हो सकते हैं। पानी के दबाव के कारण या तो पाइप फट जाएगा या फिर लीक करेगा। इसी तरह दिमाग तक खून ले जाने वाली आर्टरी में अगर खराबी आएगी तो वह या तो फट जाएगी या फिर लीक करेगी।
ब्रेन हेमरेज और स्ट्रोक में फर्क के बारे में उन्होंने बताया कि ब्रेन हेमरेज में खून की नली दिमाग के अंदर या बाहर फट जाती है। अगर अचानक या बहुत तेज सिरदर्द होता है या उलटी आ जाय, बेहोशी छाने लगे तो हेमरेज होने की आशंका ज्यादा होती है। ब्रेन हेमरेज से भी पैरालिसिस होता है। इसमें दिमाग से बाहर खून निकल जाता है और इसे हटाने के लिए सर्जरी की जाती है और क्लाट को हटाया जाता है। अगर किसी भी रुकावट की वजह से दिमाग को खून की सप्लाई में कोई रुकावट आ जाए तो उसे स्ट्रोक कहते हैं। स्ट्रोक और हेमरेज, दोनों से पैरालिसिस हो सकता है। यह कैसे होता है, के बारे में उन्होंने बताया कि चाहे हेमरेज हो या स्ट्रोक, दिमाग का प्रभावित हिस्सा काम करना बंद कर देता है। दिमाग में बना क्लाट आस-पास के हिस्से को दबाकर निष्क्रिय कर देता है जिससे वह काम करना बंद कर देता है। ऐसे में उस हिस्से का जो भी काम है, उस पर असर पड़ता है। हाथ-पांव चलने बंद हो सकते हैं। दिखने, बोलने, खाना निगलने या बात समझने में मुश्किल आ सकती है। अगर दिमाग का बड़ा हिस्सा प्रभावित हो तो स्ट्रोक जानलेवा भी साबित हो सकता है। पैरालिसिस अचानक होता है। अक्सर पीड़ित रात में खाना खाकर ठीक-ठाक सोने जाता है। सुबह उठता है तो पता चलता है कि हाथ-पांव नहीं चल रहा। खड़े होने की कोशिश करता है तो गिर जाता है। कई बार दिन में ही काम करते या खड़े-खड़े या बैठे-बैठे अचानक पैरालिसिस हो जाता है। हेमरेज अक्सर तेज सिरदर्द और उलटी से शुरू होता है। फिर शरीर का कोई अंग काम करना बंद कर देता है और बेहोशी आने लगती है।
वजह के बारे में उन्होंने बताया कि हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, स्मोकिंग, दिल की बीमारी, मोटापा, बुढ़ापा है। किसको ज्यादा खतरा है, के बारे में बताया कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों को खतरा ज्यादा है। बीमारी की फैमिली हिस्ट्री है तो 40-45 साल की उम्र में जांच के जरिए पता लगाना चाहिए कि हमें बीमारी का खतरा है या नहीं। उम्र बढ़ने पर इसका खतरा बढ़ जाता है। हालांकि हमारे देश में युवा मरीज ज्यादा हैं। यहां आम तौर पर 55-60 साल की उम्र में खतरा बढ़ना शुरू हो जाता है जबकि पश्चिमी देशों में इसकी चपेट में आने की औसत उम्र 70-75 साल है। इसकी वजह जिनेटिक और खराब लाइफ स्टाइल है।
खतरे को कैसे कम किया जा सकता है, पर डा. यादव ने बताया कि बचाव के लिए हमें 20-25 साल की उम्र से ही सावधानियां बरतनी चाहिए। अगर हार्ट की बीमारी है तो उसकी उचित जांच और इलाज कराएं। 20-25 साल की उम्र से ही नियमित रूप से ब्लड प्रेशर चेक कराएं। चिकित्सक की सलाह पर खाने में परहेज करें और एक्सरसाइज बढ़ायें। अगर आपका ब्लड प्रेशर 120-80 है तो अच्छा है। ज्यादा है तो 135-85 से कम लाना लक्ष्य होना चाहिए। अगर ब्लड प्रेशर की कोई दवा लेते हैं तो उसे नियमित रूप से लें। ब्लड प्रेशर ठीक जो जाए, तब भी चिकित्सक की सलाह पर दवा लेते रहें, वरना यह फिर बढ़ जाएगा। चिकित्सक से बिना पूछे न कोई दवा लें, न ही बंद करें। 35-40 साल की उम्र के बाद साल में एक बार शुगर और कालेस्ट्राल की जांच जरूर कराएं। अगर बढ़ा हुआ हो तो चिकित्सक की सलाह से दवा लें और परहेज करें। वजन कंट्रोल में रखें। 18 से कम और 25 से ज्यादा बॉडी मास इंडेक्स यानी बीएमआई न हो। कोई बीमारी न हो तो भी 40 की उम्र के बाद ज्यादा नमक और फैट वाली चीजें कम खायें। उन्होंने बताया कि एक्सरसाइज बहुत जरूरी है। नियमित रूप से एक्सरसाइज और प्राणायाम करें। रोजाना कम-से-कम 3 से 4 किमी ब्रिस्क वॉक करें। 10 मिनट में एक किलोमीटर की रफ्तार से 30-40 मिनट रोज चलें। आधा घंटा प्राणायाम और ध्यान जरूर करें। इनसे मन शांत रहता है। ठंड में खासकर जनवरी में इसका खतरा ज्यादा होता है। ऐसा अक्सर एक्सरसाइज में कमी के कारण होता है। ऐसे में घर पर ही सही, एक्सरसाइज जरूर करें।
इलाज कैसे होता है, पर डा. यादव ने कहा कि सबसे पहले मरीज का सीटी स्कैन किया जाता है। जरूरत पड़ने पर एमआरआई भी करते हैं। इसके अलावा, ड्राप्लर टेस्ट, सीटी एंजियोग्राफी, हार्ट इको, ईसीजी, शुगर, थायरॉयड आदि जांच करते हैं। खून की नली में अगर ब्लाकेज है तो स्टंट लगाकर उसे खोलते हैं। इसके बाद लगातार मरीज को निगरानी में रखा जाता है। अगर मरीज को कम नुकसान हुआ है तो अस्पताल से जल्दी छुट्टी मिल जाती है। आम तौर पर इलाज के तीन महीने में नतीजे सामने आने लगते हैं। हालांकि कई बार रिकवरी में दो-तीन साल का समय भी लग जाता है। स्ट्रोक के बाद फिजियोथेरपी बहुत अहम है। अगर मरीज फिजियोथेरपी की एक्सरसाइज खुद सही से नहीं कर पा रहा हो तो परिवार को इसमें मदद करना चाहिए। मरीज की हालत धीरे-धीरे ही सुधरती है। ऐसे में परिवार वालों को सब्र रखना चाहिए। दिन में दो-तीन बार मालिश करें। यह फिजियोथेरपी का ही एक हिस्सा है। इससे खून का दौरा बढ़ता है। गहरी सांस, ओम का उच्चारण, अनुलोम-विलोम (नाड़ीशोधन) प्राणायाम और भ्रामरी प्राणायाम से पैरालिसिस में फायदा होता है। मरीज को इन्हें रोजाना करना चाहिए। बेहतर है कि मरीज को एयर मेट्रेस पर रखें। इसमें प्रेशर अपनेआप कम-ज्यादा होता है। अगर यूरीन की पाइप लगी है तो उसकी साफ-सफाई बहुत जरूरी है। मरीज को तब तक मुंह से खाना न दें जब तक कि डाक्टर न कहें। अगर कोई बिस्तर से उठ नहीं सकता तो उसे लगातार एक ही स्थिति में न लिटाकर रखें। उसे हर 2-3 घंटे में करवट बदलवा देनी चाहिए। सारे प्रेशर पाइंट्स (कुहनी, घुटने आदि) को सपोर्ट दें ताकि उन पर लगातार दबाव न रहे। जिस तरफ पैरालिसिस हुआ है, उस ओर के हिस्से को चलाते रहें। ऐसा दिन में कम से कम 3-4 बार करें, वरना मसल्स में अकड़न हो जाती है।
मिथ्स और फैक्ट्स पर चर्चा करते हुये उन्होंने बताया कि आम चर्चा है कि कबूतर खाने या उसका शोरबा पीने से यह ठीक हो जाता है जबकि ऐसी कोई बात नहीं है। मेडिकल हिस्ट्री में ऐसा कोई सबूत नहीं है। डाक्टर इसे फिजूल बताते हैं। पैरालिसिस का कोई इलाज नहीं है, पर उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं है। पैरालिसिस का इलाज मुमकिन है। बशर्ते मरीज को जल्द से जल्द सही इलाज मिल जाय। इस अवसर पर श्रीमती प्रतिमा यादव, डा. सुशील यादव, लालजी यादव, विकास, राधेश्याम, उमानाथ, सूरजसहित तमाम लोग उपस्थित रहे।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

Most Popular