समय का चक्र घूमता रहता है एक सा नहीं रहता। पिछले दशक से समय में तेजी से परिवर्तन हुआ है। इसकी नब्ज़ हर कोई नहीं पहचान पाता। प्रत्येक आम आदमी के पास इसका अभाव है। बड़े-बड़े उपन्यास और ग्रंथ पढ़ना मुश्किल-सा लगता है। मानव मन धन के पीछे एक कुशल खिलाड़ी की तरह दौड़ रहा है, वह सब कुछ पा लेना चाहता है।
ऐसे में जन्म होता है लघुकथा का जो कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाती है। पाठक भी इसे रुचिपूर्वक पड़ता है। प्रसिद्ध कवयित्री एवं लेखिका अंजू खरबंदा ने सुधी पाठकों के कर कमलों में सौंपी है ‘उजली होती भोर’ जो सुंदर व सार्थक लघुकथाओं का संकलन है। इस देश के जाने-माने प्रकाशक इंडिया नेट बुक्स प्राइवेट लिमिटेड नोएडा ने प्रकाशित किया है।
भावनामयी अंजू खरबंदा ने जिंदगी ने में काफी दंश झेले हैं जिनका प्रभाव उनके लघु कथा संग्रह में स्पष्ट रूप से दिखता है। उनके दर्द का रूपांतरण पात्रों में समा गया और कहीं न कहीं उनमें एकाकर हो गया। बचपन में माँ का असमय गुजर जाना उन्हें हतप्रभ कर देता है। कवि डॉ महेश दिवाकर लिखते है- दुःख सतत इतना मिला है, है नहीं तन में हृदय, अब पत्थर की एक शिला है। पुस्तक की भूमिका लिखी है वरिष्ठ साहित्यकार व समीक्षक बैंक अधिकारी डॉ जितेन्द्र ‘जीतू’ जी ने।
पुस्तक में प्रकाशित लघु कथा ‘गुबरैला’ समाज का घिनौना सच उजागर किया गया है तथा समाज को बेनकाब किया है लेखिका की तेज कलमधार ने! लच्छू से लक्ष्मीदास बन रोग शैया पर पड़े हैं, करोड़ों के मालिक है परन्तु आज लोगों के लिए एक तमाशा है। उनको देखने आए लोग चाय नाश्ता करके चले जाते हैं, उनके प्रति कोई संवेदना नहीं हम दर्दी नहीं। कठपुतलियां, मुखिया, वामा, कर्ज, बुलावा, प्रेम पगे रिश्ते लघुकथाएं समाज का संदेश वाहक है जो स्वयं में सिंधु समेटे हुए हैं। पुस्तक की भाषा शैली का स्वाद अलग ही है। शायद अंजू खरबंदा पूर्व जन्म में मधुमक्खी रही होंगी जो भाषा शैली में इतनी मिठास व मधुरता सरसता रखती है। पुस्तक की छपाई अति उत्तम है। सुश्री खरबंदा ने जिंदगी में असीम वेदनाएं झेली है। संघर्षों से पिट पिटकर जीना सीखा है। अनंत दर्दों ने ही उनकी ‘उजली होती भोर’ को पैदा किया है, जन्म दिया है। ये लघुकथाएं नहीं उनके संतापों का जखीरा है, उनकी संतति सम है, उनकी भावनाओं में ‘एक दिशा है, एक आंदोलन है।’
अंजू एक का नाम है एक साधिका का नाम है, एक राधिका नाम है, एक जाप का नाम है। आकाश में चमचमाता चंदा अंजू खरबंदा ही है। पाठकों में ‘दिल्ली का दिल’ उपनाम से प्रसिद्ध अंजू खरबंदा के योगदान को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। हिंदी साहित्य की अनन्य सेविका अंजू खरबंदा की पुस्तक ‘उजली होती भोर’ देश के पुस्तकालयों के लिए आवश्यक है, यह पुस्तकालयों के लिए एक धरोहर है। कुछ लघुकथाएं ऐसी है जिन पर धारावाहिक आदि का भी निर्माण किया जा सकता है। जैसे हैप्पी होम, गुबरैला मुखिया, प्रेम पगे रिश्ते, कठपुतलियां वामा, कर्ज़, बुलावा आदि। अंत में यह कहना परम आवश्यक है कि ‘उजली होती भोर’ हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है। यह देश के पुस्तकालयों के लिए आवश्यक है बच्चे इसे पढ़ें, आगे बढ़े यही देश का भविष्य है।
समीक्षक: अजय शर्मा यात्री
समाज के घिनौने नकाब को बेनकाब करती लघुकथा संग्रह ‘उजली होती भोर’
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