भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ0 राजेंद्र प्रसाद के ग्रेटग्रैंडसन ग्रीनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड 10 मोस्ट एजुकेटेड लोगों में स्थान रखने वालों में से एक डॉक्टर अशोक कहते हैं कि मैं बहुत दिनों से देख रहा हूं। भारत रत्न अवार्ड का सत्यानाश करने पड़े हुए पॉलिटिकल क्लास के लोगों के हाथों से अधिकार ले लेना चाहिए। अवार्ड के संयोजक अवार्ड के साथ जस्टिस कर ही नहीं सकते। दुनिया के टॉप अवार्ड लाइव टाइम में दिए जाते हैं या पहले डिसाइड कर लिया जाता है लेकिन इसका जिम्मेदार कांग्रेस ही है। महामना मदन मोहन मालवीय की मृत्यु 1946 में हुई थी तब ब्रिटिश हुकूमत था और तब भारत रत्न की कोई बात ही नहीं थी लेकिन उनको भारत रत्न मरणोपरांत दिया गया वर्तमान सरकार किसान के हित की बात करती है लेकिन उद्योगपतियों के हित में काम करती है। कांग्रेस सरकार में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने एम0एस0 स्वामीनाथन आयोग का गठन किया था जिसने ष्ट-2 प्लस 50 का फार्मूला दिया था।
वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन करते हैं कि एन0सी0आर0बी0 के आंकड़े के अनुसार 2014 से 2022 तक 1 लाख 4 सौ 74 किसनों ने आत्महत्या की यानी प्रतिदिन 30 किसानों ने आत्महत्या की किसानों को एम0एस0पी0 देने की बात स्वामीनाथन ने ही की थी। तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह को एक लेटर लिखकर कहा था। किसानों को एम0एस0पी0 मिलना चाहिए। वर्तमान में जो शंभू बॉर्डर और सिंधु बॉर्डर पर स्थिति बनी हुई है। उसको देखते हुए स्वामीनाथन और चौधरी चरण सिंह भारत रत्न पुरस्कार को स्वीकार करते क्या? नहीं करते चौधरी चरण सिंह एक किसान नेता नहीं, बल्कि एक विचारधारा का नाम है। चौधरी चरण सिंह को इसलिए नहीं याद किया जाए कि वे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा में अपने बूते पर विधायक चुनवा सकते थे, बल्कि इसलिए याद किया जाएगा कि उन्होंने समाज के उस तपके के लोगों को आवाज दी जो शोषित थे जिसकी कोई लावी नहीं थी। इसके लिए उन्हें समाज के उच्च वर्गों के भारी विरोध का सामना करना पड़ां समस्त मूल्य के बावजूद चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीति के असली चौधरी थे। किसान नेता हरपाल सिंह एक वाकया बताते हैं।
सन् 1977 ई0 में जब जनता पार्टी सत्ता में आई तो लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने कहा कि चौधरी साहब एक बहुत बड़े किसान नेता है। इनको ही मौका मिलना चाहिए। कहने का मतलब कि प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को ही बनना चाहिए तब जनसंघ के लोगों ने इसका सख्त विरोध किया और वे सब बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनना चाहते थे और जनसंघ के लोगों ने यह भी कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम लोग पार्टी तोड़ देंगे। लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने कहा कि मुझे कोई एतराज नहीं है, बल्कि यह कहते हुए इनकार कर दिया कि जिस व्यक्ति के प्रस्ताव इमरजेंसी के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर बाबू जगजीवन राम ने की थी, से हम लोग ने 19 महीना जेल काट कर आए हैं और दूसरी बात बाबू जगजीवन राम बाद में जनता पार्टी में आए हैं। उनको हम लोग कैसे प्रधानमंत्री बना दे, उस समय जेपी पटना में थे। जेपी ने कहा कि ठीक है। मैं दिल्ली जा रहा हूं। बाद में बताऊंगा। जेपी दिल्ली आये। जय प्रकाश नारायण, चंद्रशेखर सहित अन्य नेताओं से बात की तब चौधरी चरण सिंह ने जय प्रकाश नारायण को एक लेटर लिखे और उन्हीं के पहल पर एक रास्ता निकाला गया। ठीक है। पार्टी नहीं टूटनी चाहिए। मुरार जी देसाई को प्रधानमंत्री बना दीजिए। जब मुरार देसाई प्रधानमंत्री बन गए तब यही जनसंघ के लोगों ने गांव-गांव, गली-गली दलित बस्तियों में यह प्रचार किया कि हम लोग तो बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनना चाहते थे लेकिन चौथी चरण सिंह ने कहा कि पैर की जूती पैर में ही रहेगी और दलितों और जाटों में बहुत बड़ा नेरेटिव फैलाया जिसका प्रभाव यह हुआ कि दलितों और जाटो इतनी बड़ी खाई पैदा हुई कि दलित और जाट कभी एक नहीं हो पाये। किसान नेता चौधरी हरपाल सिंह आगे कहते हैं कि चौधरी चरण सिंह मेरठ में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत में एक पार्टी जनसंघ है जिसके घोषणा पत्र में 3 शब्दों का एक शब्द किसान नहीं है। जनसंघ के लोगों ने चौधरी चरण सिंह को समाप्त करने की पूरी कोशिश की अगर यह कहा जाए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के आईडियोलॉजी के वास्तविक सूत्रधार लाल कृष्ण आडवाणी हैं तो इससे बहुत लोग असहमत नहीं होंगे।
सन् 1984 में राजनीतिक रूप से हाशिए पर चली गई। भारतीय जनता पार्टी को बाबरी मस्जिद के विध्वंस और रामजन्म भूमि आंदोलन के जरिए आडवाणी पहले बीजेपी को भारतीय राजनीतिक के केंद्र बिंदु पर पहुंचाया। अंतत: 1998 में सत्ता का स्वाद भी चखवाया। आडवाणी को ईश्वर ने सब कुछ दिया लेकिन दो पद नहीं मिला पहली बात वे प्रधानमंत्री बनना चाहते थे जोकि नहीं बन पाए उन्होंने सोचा चलिए पीएम नहीं बन पाया तो प्रेसिडेंट के पद से तो नवाजा ही जाऊंगा 2019 में उनका टिकट ही नहीं काटा गया, बल्कि पश्चिम बंगाल का चुनाव देखते हुए 2019 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न तक मिल गया। इनके साथ नाना जी देशमुख और भूपेन हजारिका को भी मिला पत्रकार अभिषार शर्मा कहते हैं कि 2024 में हिंदू प्रतीक के रूप में आडवाणी को भारत रत्न दिया गया। ठीक है। आडवाणी बहुत बड़े हिंदू का प्रतीक है और हिंदू के प्रतीक के रूप में उनको 2024 में भारत रत्न पुरस्कार दिया गया। अगर ऐसा ही है तो बहुत बड़े समाजवादी नेता रहे जॉर्ज फर्नांडीज का 1990 में दिया गया भाषण का आज तक खंडन क्यों नहीं किये? जॉर्ज फर्नांडीज ने एक भाषण में कहा था कि सामाजिक आर्थिक शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जाति के लोगों को 27 प्रतिशत आरक्षण मंडल आयोग की रिपोर्ट 7 अगस्त 1990 को संसद में हम लोगों ने पेश किया तो इस ऐलान के 48 घंटे बाद आडवाणी ने खुद मुझसे कहा कि आपने हमारे सामने कोई विकल्प नहीं रखा। हमारे सामने अब एक ही रास्ता है। हम मंदिर मस्जिद को लेकर लोगों के सामने जाने का काम करें। फर्नांडीज आगे कहते हैं कि अगर मंडल आयोग की सिफारिश लागू नहीं होती तो जो राम भक्ति आज हम लोगों देखने को मिल रही है और जिस ढंग से मिल रही है वह नहीं मिलती। आडवाणी जी को पता था कि इसका विरोध होगा और मेरे रथ को रोका जाएगा। अभिसार शर्मा आगे कहते हैं कि अगर आडवाणी के रथ यात्रा पर एक नजर डाले तो पता लगेगा जहां-जहां आडवाणी का रथ गया, वहां—वहां दंगे हुए (इंदौर में 7 हैदराबाद में 30 रांची में 12 कर्नलगंज में 37 लखनऊ में तीन मेरठ में 7 जयपुर में 47 बिजनौर में 58) सैकड़ों लोग मारे गए। इससे दो बात साफ हो जाती है कि पहला राम से कोई लेना-देना नहीं और दूसरा ओबीसी के विरोध में रथ यात्रा निकाली गई थी। अगर आडवाणी हिंदू के इतने बड़े हितेषी थे तो 1990 में बहुत बड़ी तादात में कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ था, उस समय गवर्नर जगमोहन लाल थे। जब इतनी तादाद में कश्मीरी पंडित मारे जा रहे थे तो आडवाणी ने कश्मीरी पंडितों के पक्ष में कोई बयान क्यों नहीं दिये। क्या आडवाणी को एक रथ यात्रा कश्मीर की तरफ नहीं निकालनी चाहिए थी, क्या उस मुद्दे पर समर्थन वापस लिया जाना चाहिए था? प्रभु रामचंद्र के मंदिर उद्घाटन में इकबाल अंसारी को निमंत्रण मिला लेकिन लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार इन सब लोगों का कितना सम्मान हुआ सबने देखा।
कमाने वाला खाएगा, लूटने वाला जाएगा, नया जमाना आएगा, यह नारा जननायक कर्पूरी ठाकुर का है। लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं दलित चिंतक रविकांत कहते हैं कि जब कर्पूरी ठाकुर आरक्षण लागू किए तो सबसे ज्यादा विरोध जनसंघ और एबीपी के लोगों ने किया। सबसे ज्यादा गंदा नारा इन्हीं लोगों के द्वारा लगाया गया। कर्पूरी कर कपूरा कुर्सी छोड़ पकड़ अस्तुरा कुछ नारे ऐसे हैं जो कहने में शर्म लगती है। वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिन्हा कहते हैं कि कर्पूरी ठाकुर का साथ उस समय सोशलिस्ट पार्टी के लोगों ने दिया और मंडल का सबसे ज्यादा विरोध जनसंघ और एबीपी की लोगों ने किया। प्रो. रविकांत आगे कहते हैं कि कर्पूरी ठाकुर को 1979 में मुख्यमंत्री का पद छोडऩा पड़ा तो क्या कारण था। एबीपी का क्या रोल था। उस समय जनसंघ की क्या भूमिका थी। एक नेपाली महिला का क्या मामला था? कर्पूरी ठाकुर की चरित्र की हत्या कर दी गई। उसके बाद से कर्पूरी ठाकुर का स्थान कोई नहीं ले पाया जो उनकी वाजिब जगह बनती थी। विनय सीतापति अपनी किताब ऑफ लायन में लिखते हैं कि नरसिम्हा राव इस हद तक रिटायर्ड मोड में चले गए थे कि उन्होंने दिल्ली के मशहूर इंटरनेशनल सेंटर की सदस्यता के लिए एक आवेदन कर दिया था, ताकि अगर भविष्य में दिल्ली आए तो उन्हें रहने की कोई दिक्कत ना हो। नरसिम्हा राव राजनीतिक उबर खाबर रास्ते से ठोकरे खाते हुए सर्वोच्च पद पर पहुंचे थे। इस पद को पाने के लिए नरसिम्हा राव ने किसी राजनीतिक पैराशूट का सहारा नहीं लिया था। राव का कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा योगदान था। डा. मनमोहन सिंह की खोज सीतापति आगे कहते हैं।
1991 का ऐतिहासिक बजट पेश करने से पहले जब मनमोहन सिंह इसका मसौदा लेकर राव के पास गए तो नरसिम्हा राव उनसे खास प्रभावित नहीं हुए। उनके मुंह से निकला। यही मुझे चाहिए था तो मैं आपको क्यों चुना। मैं राजनीतिक के लिए हूं। आपको जो अच्छा लगे, वह करिए। उस बजट का विरोध सबसे अधिक कांग्रेस में हुआ था। मजे की बात यह है कि इस बजट में जवाहर लाल नेहरू इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की नीतियों को वह पलट रहे थे। नरसिम्हा राव की सबसे बड़ी किरकिरी तब हुई जब 6 दिसंबर 1992 को विवादित बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। अंदर और बाहर दोनों जगह विरोध हुआ लेकिन कैबिनेट के बैठक में किसी ने कल्याण सिंह की सरकार गिरना नहीं। चाहे राव सुप्रीम कोर्ट गये। कोर्ट ने भी कुछ नहीं किया। सीतापति कहते हैं कि एक सीनियर पत्रकार ने मुझसे कहा था कि जब बाबरी मस्जिद गिर रही थी तब नरसिंह का पूजा कर रहे थे, जब उस पत्रकार से पूछा गया कि आप वहां थे? उन्होंने कहा कि मैं वहां नहीं था। मुझसे बहुत बड़े समाजवादी नेता मधुलिहे कहे जब बाबरी मस्जिद गिर रही थी तब नरसिम्हा राव पूजा कर रहे थे। जब मधु लिमहे से पूछा गया तो लम्हे कहे कि मेरा एक सोर्स है। सोनिया गांधी की पसंद पर नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने थे। इस घटना से उन लोगों काफी दूरी बढ़ गई।
1996 में जब अटल बिहारी वाजपेई की 13 दिन के सरकार बनी थी तब नरसिम्हा राव का समर्थन लेने के लिए वाजपेई ने कोशिश की थी। नरसिम्हा राव के मित्र और राजनीतिक सलाहकार रहे एन0के0 शर्मा कहते हैं कि अटल बिहारी वाजपेई की तरफ से यह प्रस्ताव था कि नरसिम्हा राव के ऊपर जो 3 कैसे हैं। सेंन किट लख्खू भाई पाठक यह सब कैसे निरस्त हो जाएंगे और 1997 में नरसिम्हा राव को भारत का राष्ट्रपति बना दिया जाएगा। एनके शर्मा से नरसिम्हा राव ने कहा कि जिस पार्टी ने मुझे मुख्यमंत्री शिक्षा मंत्री जनरल सेक्रेटरी विदेश मंत्री गृह मंत्री और 5 साल तक प्रधानमंत्री रहा और आज कांग्रेस का अध्यक्ष हूं। मैं अपने हित के साथ समझौता कैसे कर लूं? 2004 में जब नरसिम्हा राव की मृत्यु हुई तब अटल बिहारी वाजपेई भावुक होकर कहा था। राव इज द फादर ऑफ द न्यूक्लियर प्रोग्राम वहां मौजूद सब लोग चौंक गये। संध्या बेला स्वयं उनकी पार्टी ने उनसे किनारा कर लिया। नरसिम्हा राव बहुत ही एकाकी और अपमानित होकर इस दुनिया से विदा हुए न सिर्फ उनका अंतिम संस्कार नई दिल्ली में होने दिया गया, बल्कि उनके पार्थिव शरीर को भी कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड के अंदर नहीं आने दिया गया। शायद कुछ समय बाद ही इतिहास उनका सही मूल्यांकन कर पाये।
हरी लाल यादव
सिटी स्टेशन जौनपुर
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भारत रत्न पुरस्कार देने का अधिकार पॉलिटिशियन से ले लेना चाहिये: डा. अशोक प्रसाद
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