तुलसी-जीवन वृत्त
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(मानस माहात्म्य भाग-11)
शिव गिरिजा सन जो कहेउ कथा अपर अवतार।
सत्यकेतु कैकय नृपति तेज विभूषित चार।।
नाम प्रतापभानु बड़ धरम सील गुणवान।
लघु सुत अरिमर्दन भयउ बल बुधि तेज निधान।।
राज नृप दीन्हें जेठ सुत जो प्रताप भानु
नारि संग नृपति गवन बन कीन्हों है।
बेद रीति धर्मनीति पालक प्रतापभानु
भुजबल सप्त द्वीप बस करि लीन्हो है।
सचिव धरमरूचि शुक्र सम ज्ञानी धीर
सेन चतुरंग देखि नृप बल चीन्हो है।
कामधेनु सम सुखी धरती आनन्द भई
बिश्व बस्य नृप सब दण्ड छाड़ि दीन्हो है।
बहु जाग जेहिं श्रुति शास्त्र वर्णित नृपति बार सहस किये।
नित धर्म रत श्रेयस जगत बहु दान विप्रन्ह को दिये।
बहु कूप बापी बाटिका सर सुर भवन निर्मित नये।
द्विज धेनु सुर सम्मान सब फल कामना कछु नहि हिये।।
बाजि साजि नृप बन करइ अहेर हेतु
सघन विपिन विन्ध्य मृग वध कीन्हे हैं।
घोर घोनघोर बन दीख है बराह एक
तनु पीन दन्त बहि रौद्र रूप चीन्हे हैं।
नीलगिरि शिखर समान देखि सूकर को
नृप हाँकि हय गति पीछे चलि दीन्हे है।
सैन्धव निरखि भागि चला है मारुत बेग
देखिके बराह नृप धनु सर लीन्हे है।।
सूकर तकि नृप बार बहु कीन्हेउ सर सन्धान।
छल करि प्रकटत दुरत पुनि गमन विवर भय मान।
रचनाकार—— डाॅ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार