Monday, April 29, 2024
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अम्न! (नज्म)

अम्न! (नज्म)

आए दिन जंग का बाजार सजाया जा रहा है,
सच्चाई कुछ और है कुछ और बताया जा रहा है।
होती मुलाकात दुनिया वालों की अम्न के लिए,
मगर रोज नया ज्वालामुखी धधकाया जा रहा है।

देखिये, जंग से अम्न के रास्ते तो खुलते नहीं,
कितनों को रोज मौत की नींद सुलाया जा रहा है।
खूँ की नदी बहाने से क्या खामोश हो जाएँगे लोग,
बस वक़्त का सिंहासन हिलाया जा रहा है।

अगर खूबसूरत रहती ये दुनिया तो क्या बात होती,
मगर नफरत का जाल बिछाया जा रहा है।
तोड़ दो दुनियावालों ऐसे विध्वंसक जाल को,
क्यों अपने उन उसूलों को मिटाया जा रहा है।

हार-जीत से ऊपर उठो, दुनिया को बाँटने वालों,
किसी के हिस्से का सूरज डुबाया जा रहा है।
नहाओ उस रोशनी से तुम भी और मैं भी,
मग़र मेरा आसमान ही उड़ाया जा रहा है।

पियो इल्म का जाम कि दुनिया में अम्न लौटे,
क्यों रोज बम का शजर लगाया जा रहा है।
ये दौलत, ये शोहरत, न टिकी है, न टिकेगी,
जेहन में गलत ख्वाब क्यों लाया जा रहा है।

मत नष्ट करो इस कायनात की खूबसूरती को तुम,
पल-पल कुदरत का नूर घटाया जा रहा है।
धंस रही है तेरी आँखों में क्यों किसी की तरक्की,
आज चाँद-तारों को भी रुलाया जा रहा है।

रामकेश एम. यादव, मुम्बई
(कवि व लेखक)

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