क्या आप अविवाहित हैं?
प्रतियोगी परीक्षा पास होते ही…
विवाह के नए प्रस्ताव आने लगे थे
गाहे-बगाहे दरवाज़े पर,
लोग दस्तक भी देने लगे थे…
क्या कहूँ…?.. मां-बाप तो…
कभी हँसकर टाल देते थे… पर…!
अब तो.. बच्चे शर्माने लगे थे…
पत्नी के मन में अनायास ही
उठते आँधी-तूफ़ान-बवण्डर…!
घर पर यह स्थिति नई देखकर…
पानी पिलाती वह दाँत पीस कर,
बैठ जाती.. अक्सर माथा पीटकर,
घरवाले तो अमूमन खुश ही थे,
ऐसे देखुआर देखकर….
जो पहले कभी नहीं आए थे,
हमारे दरवाजे पर भूलकर…
मिठाई, नमकीन… या फिर…!
चाय-पानी में… क्या जाता था…
पर हूटर लगी लाल-नीली बत्ती,
दरवाजे पर आने में…!
बड़ा ही मजा आता था…
घरवालों के लिए यह बड़ी बात थी
साथ ही.. गाँव वालों के लिए भी,
हूटर-बत्ती… अनोखी सौगात थी…
वास्तविकता जान कर …!
लौट जाते थे सभी देखुआर,
पाकर मेरे ही…बच्चों से सत्कार…
यह क्या और क्यों हो रहा था…?
सोचने पर मैं विवश था …
यह सफलता की पूछ हो रही थी,
या फिर.. हो रहा.. कोई मज़ाक था
आखिर…! इतनी नाजायज पूछ,
सभ्य समाज में क्यों बढ़ गई थी…
सफलता से क्या समाज की,
परिभाषा बदल गई थी…
विषय यह भी रहा कि… समाज में
मैं अविवाहित…
कैसे घोषित हो गया था….
देखुआरों के भुनभुनाते हुए…या..
मन ही मन किसी को गरियाते हुए
परेशान हो… वापस लौट जाने पर
कारण जानने की हुई जिज्ञासा…
सहसा याद आया मुझे…!
कारण एक धुँधला सा….
इंटरव्यू प्रपत्र में कॉलम एक था..!
क्या आप अविवाहित हैं..?
उत्तर में मैंने… “नहीं” भरा था…
शायद..!… कलर्क ने नादानी में,
कुछ वाहवाई में… या फिर…
कुछ रुपयों की कमाई में…
भूलवश… और जल्दबाजी में…!
अविवाहित को विवाहित पढ़कर,
अविवाहितों की लिस्ट बनाई थी..
और मित्रों… हमारे समाज में तो..
सफल व्यक्ति की ही पूछ है,
इज़्ज़त है.. सफल की ही लूट है..!
इसी कारण… बस इसी कारण…
मेरे दरवाजे पर… उन दिनों…
खूब भीड़ आई थी…
भूल सारी कलर्क की थी… पर..!
देखुआरों की व्यर्थ हुई मिठाई थी,
इधर परिवार मेरा भी गाँव-देश में,
इनके-उनके निशाने पर था….
दूसरा विवाह करेंगें ससुरे क्या…?
इस अंदेशे को लेकर,
इन लोगों की नजर में,
मेरा घर अब… कमीने का घर था..
क्या बताऊँ मित्रों…?
इस बात को लेकर,
समाज की नजरों से गिर जाने का
हम लोगों को भी बहुत डर था…!
समाज की नजरों से गिर जाने का
हम लोगों को भी बहुत डर था…!
रचनाकार—— जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद कासगंज।