Sunday, April 28, 2024
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भाजपा परिवारवाद का बाहर से आयात भी करती है…

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित उसके संगठनों द्वारा यह प्रचार किया जाता है कि नेहरू के मुकाबले लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ज्यादा काबिल थे और प्रधानमंत्री पटेल को ही बनना चाहिए था। 2 अक्टूबर 1950 को नागपुर में एक महिला केंद्र का उद्घाटन करने गए पटेल ने अपने भाषण में कहा था कि अब चूंकि महात्मा हमारे बीच नहीं हैं। अब नेहरू ही हमारे नेता हैं। बापू ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था और इसकी घोषणा भी की थी। अब बापू के सिपाहियों का कर्तव्य है कि वे उनके निर्देशों का पालन करें और मैं गैरवफादार सिपाही नहीं हूं। सरदार पटेल के भाषण से ऐसा नहीं लगता कि उनको किसी बात का मलाल था। यह बात नहीं है कि नेहरू पटेल के बीच मतभेद नहीं थे लेकिन मनभेद की कोई गुंजाइश नहीं थी कि नेहरू और पटेल दोनों गांधी जी के शिष्य थे और यह फैसला गांधी जी का ही था कि नेहरू प्रधानमंत्री के रूप में देश की कमान संभाले।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित अन्य संगठनों का आरोप एवं दावा इतना झूठा है, इसका दूसरा उदाहरण सरदार पटेल के सारे भाषण और पत्रों को 10 खंडों में संकलित है। अहमदाबाद के नवजीवन प्रेस में छपी वॉल्यूम 7 के अनुसार आर.एस.एस. पर प्रतिबंध लगाया गया था। प्रतिबंध हटाने के लिए सदाशिव गोलवलकर ने एक पत्र लिखा था। उसी के बारे में सरदार एक पत्र द्वारा नेहरू को बता रहे हैं कि मैं गोलवलकर से साफ-साफ कह दिया हूं कि आपको अपना पूरा आउटलुक बदलना पड़ेगा। इस तरह से बदलना पड़ेगा कि आर.एस.एस. वही कार्रवाई करें जो देश की शांति और भाईचारे के लिए खतरा न हो और आगे लिखते हैं। मैंने उनका ध्यान इस ओर दिलाया कि आर.एस.एस. के लोगों की गुप्त गतिविधियों की रिपोर्ट लगातार हमको मिल रही है।
पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद चंद्र भार्गव भारत सरकार गृह मंत्री (सरदार पटेल) को एक पत्र द्वारा कह रहे हैं कि भारत सरकार द्वारा बनाई गई नीति के तहत अपने राज्य में हमने आर.एस.एस. को एक गैरकानूनी संगठन घोषित कर दिया है। आरएसएस के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर दिया है। एक-दो दिन में सभी कार्यकर्ता गिरफ्तार कर लिए जाएंगे। राम बहादुर बद्री दास जो पंजाब में आर.एस.एस. के हेड थे, ने इस्तीफा दे दिया था। यह सब वे सरदार पटेल लिख रहे हैं जिसको आर.एस.एस. बार-बार अपना कहने कोशिश करती है। आर.एस.एस. सहित उनके संगठन के लोगों द्वारा एक प्रचार यह भी किया जाता है कि नेहरू वंश ने राज किया जबकि पटेल के परिजनों को भुला दिया गया।
हकीकत यह है कि नेहरू जीते जी अपनी एकमात्र संतान इंदिरा को संसद का मुंह देखने नहीं दिया। मंत्री की तो बात क्या? वह नेहरू के सहायक के रूप में ही सक्रिय रहीं। 1959 को दिल्ली अधिवेशन में वे कांग्रेस के अध्यक्ष जरूर चुनी गयीं लेकिन 1960 में इस पद पर नीलम संजय रेड्डी आ गये थे। 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को राज्यसभा भेजा। इस तरह वह पहली बार सांसद नेहरू के मौत के बाद बनीं। राज्यसभा की इस गूंगी गुड़िया को कांग्रेस के दिग्गजों ने प्रधानमंत्री बनाया था, न कि नेहरू ने 1950 में लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की मौत के बाद नेहरू उनके बच्चों के लिए लगातार चिंतित रहे।
मणिबेन पटेल सरदार पटेल के लिए उसी तरह थी जिस तरह नेहरू के लिए इंदिरा गांधी। 1952 के पहले आम चुनाव में मीरा बेन को नेहरू ने ही कांग्रेस का टिकट दिलवाया। वे दक्षिण कैरा लोकसभा सीट से सांसद बनीं। 1957 के आम चुनाव में वे आनंद लोकसभा क्षेत्र से चुनी गईं। 1964 में उन्हें कांग्रेस ने राज्यसभा भेजा। 1953 से 1956 के बीच गुजरात कांग्रेस कमेटी की सचिव और 1957 से 1964 के बीच अध्यक्ष रहीं। इस तरह मणिबेन को कांग्रेस में पूरा मान—सम्मान मिला। यही नहीं, नेहरू के समय ही सरदार पटेल के बेटे दाहिया भाई पटेल को भी लोकसभा का टिकट मिला। वह 1957 से 1962 में लोकसभा के लिए चुने गये। 1973 तक अपनी मौत तक राज्यसभा सदस्य रहे। यानी एक समय ऐसा भी था जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के बेटा और बेटी ही एक साथ राज्यसभा और फिर लोकसभा में थे। भाई—बहन के लिए ऐसा संयोग वंशवादी नेहरू ने ही निर्मित किया था जिन्होंने अपनी बेटी इंदिरा गांधी को अपने जीते जी कांग्रेस का टिकट मिलने नहीं दिया।
भारतीय जनता पार्टी अक्सर अपने भाषण में दूसरे पार्टी पर वंशवादी पार्टी होने का आरोप लगाती है। देखा जाय तो भाजपा में भी वंशवाद है। इसके अलावा वह बाहर से आयात भी करती है। अगर वर्तमान में एक नजर डाले तो अनुराग ठाकुर के पिता प्रेम कुमार धूमल हिमाचल प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष और नोएडा के विधायक हैं। क्या राजनाथ सिंह परिवारवाद के खिलाफ लड़ने के लिए अपने बेटे का टिकट कटवायेंगे? वाणिज्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री एवं वस्त्र मंत्रालय के पदभार संभाल रहे पीयूष गोयल के पिता वेद प्रकाश गोयल वाजपेई सरकार में पोत परिवहन केंद्रीय मंत्री थे। पीयूष गोयल की मां चंद्रकांता गोयल 3 बार माटुंगा से विधायक थीं। क्या पीयूष गोयल अपने विभिन्न मंत्रालय से इस्तीफा देंगे? पीयूष गोयल किस तर्क से कह रहे हैं कि परिवारवाद भारत छोड़ेगा?
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के पिता देवेंद्र प्रधान वाजपेई सरकार में परिवहन मंत्री एवं कृषि राज्य मंत्री थे। पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरण रिजीजू के पिता रिचिंग थरूर अरुणाचल के पहले प्रोटोन स्पीकर थे। नगर विमान मंत्री ज्योतित्य राजे सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया नागरिक उड्डयन मंत्री हुआ करते थे। जब यह सब मंत्री परिवारवाद पर भाषण सुनते होंगे तो कैसा लगता होगा क्या? भाजपा बताएगी कि यह सब किस कोटे से मंत्री बने हैं? अगर भाजपा के परिवारवाद की सूची देखेंगे तो इसके मंत्री परिवारवाद पर दिए गए भाषण से लंबी हो जाएगी। क्या प्रधानमंत्री महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से सकते हैं कि आप परिवारवादी हैं। आपके बेटे लोकसभा के सांसद है। रामविलास पासवान की पार्टी छोड़कर आई तो सभी लोग उनके ही परिवार के लोग थे। अब चिराग पासवान एनडीए में हैं। वसुंधरा राजे सिंधिया और उनके बेटे दुष्यंत सिंह के बारे में कोई नहीं बोलता। दुष्यंत सिंह का टिकट इस बार कटेगा? सोने लाल पटेल व उनकी बेटी वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री हैं। क्या वे परिवारवाद से अलग हैं? अब ओम प्रकाश राजभर की पार्टी बीजेपी में आ गई है। क्या संजय निषाद अलग किए जाएंगे?
अजीत पवार एवं नारायण राड़े इसके उदाहरण हैं। इसमें से भी कई उदाहरण मिल जाएंगे। मध्य प्रदेश में विजयवर्गीय भाजपा के महासचिव हैं। 6 बार इंदौर की दूसरी सीट से विधायक हैं। उनके बेटे आकाश विधायक हैं। उत्तर प्रदेश के 2022 के विधानसभा चुनाव के समय आरपीएन सिंह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आये इनके पिता चंद्र प्रताप नारायण सिंह पडरौना से सांसद हैं। इंदिरा गांधी की सरकार में राज्य रक्षा मंत्री सुनील जाखड़ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए और पंजाब भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष हैं। इनके पिता बलराम जाखड़ लोकसभा स्पीकर थे और केंद्रीय मंत्री भी थे। पश्चिम बंगाल में अधिकारी परिवार और वहां जम गया। भाजपा परिवादवार को बुराई मानती है तो भाजपा में क्यों लाई है? नीरज शेखर क्या खिलाफ तख्ती लेकर घूमेंगे कि परिवारवाद भारत छोड़ोगा? भारतीय जनता पार्टी परिवारवाद का मुद्दा बोकस मुद्दा है।
ऐसा नहीं लगता कि 2024 तक कोई मुद्दा स्टैण्ड कर पायेगा। एन.आर.सी./यू.सी.सी. कॉमन सिविल कोर्ट एक देश-एक चुनाव का क्या हुआ। लगभग साढ़े नौ साल बीजेपी महिला आरक्षण विधेयक पर चुप रही। 18 सितम्बर 2023 को एक विशेष सत्र बुलाकर महिला आरक्षण विधेयक को पास किया। जनगणना डिलिमिटेशन का ऐसा पेंच पस गया है कि यह 2034 तक नहीं लागू होने की संभावना है। उस पर भी राहुल गांधी का 90 सचिवों में से केवल 3 ओबीसी का मुद्दा उठाकर महिला आरक्षण विधेयक पर बीजेपी को बैक फुट पर ला दिया।
हरी लाल यादव
सिटी स्टेशन, जौनपुर।
मो.नं. 9452215225

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