Monday, April 29, 2024
No menu items!

आंखों पर पट्टी बांधे तुम

आंखों पर पट्टी बांधे तुम
दीप जलाना चाह रहे हो,
कुछ घायल बेबस लोगों को
दूर भगाना चाह रहे हो,
दीपों के इस पर्व को देखो
आपस में क्या मेल है ,
माटी के दीपों को देखो
कैसा विधि का खेल है
सहज गरीबी झलक रही है,
गांव, गली, गलियारे से
लेन-देन पर दुनिया ठहरी,
लक्ष्मी बिकी बाजारों में
एक दीप से जले रोशनी
घर के हर परिवारों में
दया पात्र बनकर जीवन में
कुछ मुस्काना सीख लिया है
बाजारों की रौनक देखी
मुस्काते क्या ख्वाब रहे
आंखों में कुछ नरमी देखी
उसमें ही कुछ भाव थे
कदम तुम्हारा बढ़ जाता
मानवता कुछ कहती थी
मां का सपना पूरा होता
वह भी तो कुछ कहती थी
आज गरीबी सहम रही है
उसकी क्या लाचारी थी
ज्योति जलेगी जब हर घर में
वहीं दिवाली हो जाएगी
जीवन में कुछ ठान लिया
तो पूरा उसको कर लेना
अपने घर की चमक बढ़ाकर
औरों को चमका देना
प्रभु की कृपा अगर बरसी हो
तब तुम औरों पर बरसा देना।।
देवी प्रसाद शर्मा ‘प्रभात’
तेजस टूडे आजमगढ़।
मो.नं. 7008310396

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

Most Popular