Monday, April 29, 2024
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यदु पुत्रों के कुल में चक्रवर्ती सम्राट भगवान कार्तवीर्यार्जुन हुये हैं अवतरित

ध्रुवचन्द जायसवाल
चन्द्रवंशी राजाओं के पूर्वजों में शास्त्रों के अनुसार महाराजा यदु सहित 5 राजर्षि शिरोमणि हुए इनके वंशजों से यह सारी पृथ्वी पर उसी प्रकार व्याप्त है। जैसे सूर्य की किरणें पृथ्वी पर व्याप्त होती है। राजर्षि यदु महाराजा का समस्त राजर्षियों द्वारा सम्मानित है।
तस्य वंशे महाराज पच्ञ राजर्षिसत्तमाः।
यैर्व्याप्ता पृथ्वी सरला सूर्यस्येव गभस्तिभिः।।47
यदोस्तु श्रृणु राजर्षेर्वंशं राजर्षिसत्कृतम।
यंत्र नारायणो जज्ञे हरिर्वृण्णिकुलोव्दहः।।48
हरिवंश पुराण महाभारत खिलभाग के भाग के पृष्ठ संख्या 158 से 163 पर विस्तार से वर्णन किया गया है।
बभूवुस्तु यादों: पुत्रा: पच्ञ देवसुतोपमा:।
सहस्रद: पयोदच्श्र क्रोष्टा नीलोऽञ्जिकस्तथा।।1
सहस्रदस्य दायादास्त्रय: परमधार्मिका:।
हैहयच्श्र हयच्श्रौव राजन वेणहयस्तथा।।2
महाराजा यदु के 5 पुत्र सहस्त्रजीत, क्रोष्टु, पयोद, नींल, अञ्ञिक हुए। महाराजा सहस्त्रजीत से हैहयवंश वर्तमान में हैहयवंश-कलवार, कलाल कलार से सैकड़ों उपनामों से पहचान है। क्रोष्टु से यदुवंश शाखा चला वर्तमान में यादव, ग्वाल आदि नामों से पहचान है।
महाराजा यदु के छोटे भाई तुर्वसु दोनों में घनिष्ठता अधिक थी। वैसे तो पांचों भाइयों में मेल-जोल काफी अच्छा रहा और शासन भी शानदार रहा। यहां महाराज तुर्वसु के संदर्भ में ऋग्वेद में युद्ध के समय स्वतंत्र रूप से उल्लेख है। श्री हरिवंश पुराण के अनुसार अध्याय 62 के मतानुसार दक्षिण के चोल, पांण्डय आदि केरल राज्य के राजा तुर्वसु कुल-वंश से थे। एक प्रसंग में यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण है। अथर्ववेद के पृथिवी सूक्त में लिखा है कि महाराजा ययाति के एक पुत्र तुर्वसु के वंशज पश्चिम की ओर गये थे। सम्भवतः सैन्धव लोग (सिन्धु घाटी सभ्यता वाले काल 2500 से 1500 ई पूर्व) तुर्वसु को अपना पूर्वज मानते थे। उनमें से कुछ वहीं बस गए कुछ सूदूर द‌क्षिण केरल चोल पाण्डय और कूल्य (समुद्री तटवर्ती) इलाके में बस गये। पुराणों में तुर्वसु का वंशज कहा है।
तुर्वसो: पोरवं वंशे प्रविवेश पुरा किल।
पाण्डयश्च केरलश्चौव चोल: कुल्यास्तथेव।
तेषां जनपदा:स्फीता: पाण्ड् याश्चोला: सकेरला:।।
उक्त लेख श्री राजराजेश्वर कार्तवीर्यार्जुन पुराण में विस्तार से वर्णन किया गया है।
तमिल भाषा का ही एक रूप ब्राहुई भाषा है जो सिन्धु देश में आज तक बची रह गई है। ब्राहुई का भाषा रूप सिन्धु देश में कैसे बचा रह गया, इसकी व्याख्या आज तक इस प्रकार से की गई है कि प्राचीन तमिल निवासी सैन्धव लोगों से संबंधित थे। दक्षिण पंथ के लोगों में मातृदेवी और रूद्रशिव पूजा मान्यता की प्रधानता है। जैसी सैन्धव जाति में थी। एक अन्य समानता तमिल और सैन्धव लोगों में यह है कि दोनों अधोवस्त्र या धोती तहमद के रूप में बांधते हैं। दक्षिण भारत के समस्त प्रदेश में यह प्रथा आज तक है। इसके अतिरिक्त पश्चिम एशिया में सैमेटीक जाति के लोग प्राचीन काल से ही आज तक बिना कच्छ के धोती पहनते हैं किन्तु ऋग्वेद के अनुसार तुर्वसु से यवन पैदा हुए। काबुल में जो पठान जाति रहती है। वह प्रतिष्ठानपुर झूसी वर्तमान प्रयागराज इलाहाबाद की रहने वाले चंद्रवंशी क्षत्रिय जाति के हैं।
महाराजा ययाति के पुत्र महाराजा द्रहयु का स्वतंत्र उल्लेख ऋग्वेद मंडल 8 सूक्त 10 में एवं महाराज पुरु एवं महाराज द्रहयु दोनों का एक साथ उल्लेख ऋग्वेद के मंडल 6 सूक्त 46 में किया गया है। महाभारत में गांधारों का उल्लेख है जिन्हें पुराणों में द्रहयु कुलोउत्पन्न माना है। गांधारों का राज्य सिन्धु घाटी के उस पार था पंजाब में भी चंन्द्रवंशियों का राज्य स्थापित हो गए हैं, इसका वर्णन आगे किया जायेगा।
यहां यह वर्णन इसलिए जरूरी हो गया था कि चंद्रवंशी समाज के लोग किन्ही कारणों से अलग अलग हो गए या बड़े साजिश के तहत अलग-अलग कर दिया गया है जिससे यह एक न हो सके लेकिन उनकी पहचान आज भी एक-दूसरे का साथ देने का धार्मिक ग्रंथों एवं पुराणों में वर्णित हैं।
महाराजा यदु के पुत्रों ने ही हैहयवंश और यदुवंशी की स्थापना की हैहयवंश और यदुवंश पुराणों, धार्मिक ग्रंथों के इतिहास में प्रसिद्ध है। महाराजा यदु ने अपने पराक्रम से दक्षिण से उत्तर, पच्श्रिमोत्तर एवं पूर्वोत्तर तक भारत में एक बड़े साम्राज्य की स्थापना की इस वंश पर बड़े-बड़े और पराक्रमी राजा हुए जिनकी यश सारे संसार में व्याप्त हुई *पुराणों में तो इनकी गाथाएं भरी पड़ी हैं। देवर्षि नारद जी इनके गुणों का गुणगान करते थकते नहीं थे।
महाराजा यदु निर्भीक बुद्धिमान और कुशल शासक, विकट परिस्थितियों में भी वह कभी घबराए नहीं। उनके वंशजों में अनेक अत्यंत तेजस्वी प्रतापी और महान सम्राटों के निर्माता हुए हैहयवंश एवं यदुवंश का विस्तार किया। महाराजा यदु के बल पौरुष और पराक्रम से आकर्षित होकर देवराज इंद्र भी समय-समय पर उन्हें अपनी सहायता के लिए आमंत्रित करते रहे। महाराजा यदु ने चंबल बेतवा केन नदी की घाटियों में राज्य स्थापित किया था। कालांतर में उनके वंशज एक शाखा हैहयों की है। दूसरा यदुवंश की एक शाखा हुई और वहां नर्मदा के प्रांतों पर बस गई।
महिष्मन्त नामक महाराजा हैहय बड़े प्रतापी महाराजा हुए। उन्होंने मांधाता नगरी पर अधिकार करके महिष्मति नामक नगर बसाया। काशी को उनके पुत्र भद्र ने जीत लिया था। दक्षिण के राक्षसों ने बड़ा उपद्रव मचा रखा था। क्षेमक राक्षस ने काशी के राजा देवदास को हराकर अपना अधिकार जमा लिया। इन्हीं राक्षसों ने गुजरात की राजधानी कुशस्थली को उनके सेनापति ने सामंतों से छीन लिया किंतु यह स्थित बहुत दिनों तक नहीं रह सकी और अंततः हैहयों के राजाओं ने उन्हें परास्त कर दिया था।
उक्त लेख श्री राजराजेश्वर कार्तवीर्यार्जुन पुराण, श्रीहरिवंश पुराण एवं अन्य पुराणों के मतानुसार संकलित किया है।
उक्त लेख पुराणों एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अपने पूर्वजों के गौरवपूर्ण शासन काल का संक्षिप्त इतिहास से अवगत कराने का प्रयास किया गया है। कुछ प्रकरण छूट गया है तो अवगत करा दें अगले अंक में वर्णन किया जायेगा। स्वजातीय बंधुओं विशेषकर युवाओं एवं महिलाओं मे शासन करने का अपने पूर्वजों से प्रेरणा लेकर स्वयं अपने पौरुष के बल पर सत्ता में भागीदारी लेने के लिए आगे बढ़े तथा सत्ता में भागीदार बने।
(लेखक अखिल भारतीय जायसवाल सर्व वर्गीय महासभा के प्रदेश अध्यक्ष हैं।)

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