Monday, April 29, 2024
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13 साल से सठियां रहे हैं डा. गदेला

  • देश की आजादी का असली आनन्द बचपन में ही उठाया

चीन के एक दार्शनिक थे। नाम उनका था कन्फ्यूशिएस। वे कहते थे कि मनुष्य के आस—पास का माहौल उत्साह से भरा होना चाहिए। कोई व्यक्ति तब तक विद्वान नहीं हो सकता जब तक उसका संसार ज्ञानी, मनोरंजक, आनंददायी लोगों से खाली है। आज हमारे जौनपुर जो सिराजे हिंद के नाम से जानी जाती है, यहां भी इस तरह की शख्सियत है जिसका नाम है डॉ. राम सिंगार शुक्ल ऊर्फ गदेला। हम लोग मात्र गदेला गुरू कहकर ही काम चला लेते हैं। गदेला जी जहां भी उपस्थित रहते हैं, उनके ज्ञान, मनोरंजन और आनंद की त्रिवेणी बहती रहती है।
7 अक्तूबर 1950 को उनको पृथ्वी पर आने की आजादी मिली। हम यह कह सकते हैं कि 26 जनवरी 1950 को जब संविधान प्रभावी हुआ। उसके 9 महीने बाद गदेला जी का अवतरण हुआ। यानी यह भारत के नागरिक संवैधानिक रूप से बनकर ही आए। दूसरे शब्दों में यानी व्यंग्य में इन्हें संविधान पुत्र भी कहा जा सकता है। देश की आजादी में अगर खुली हवा में सांस लेने का किसी को मौका मिला तो वह है गदेला जी का बचपन। आखिर क्यूं न हो? इनके पिता जिला मुख्यालय से सटे अहमदपुर पोस्ट जफराबाद के स्व. जयदेव शुक्ल जो सामान्य कृषक परिवार से थे। इसके बावजूद देशभक्ति का जुनून उनके पास था। इसी के चलते स्वतंत्रता आंदोलन में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आजादी का बिगुल उन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से फूंका था। उन्होंने रणभेरी नामक समाचार पत्र निकालकर अंग्रेजों को भारत छोड़ो के लिए चेताया तो उन्हें जेल की सलाखों में डाल दिया गया। इसके बाद इनकी माता चमेली शुक्ला को 6 माह ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत करने के आरोप में जेल की सजा मिली।
गदेला जी अब 73 के हो गये। मतलब गदेला जी को सठियायें 13 साल हो गये। कहा जाता है कि 60 की उम्र के बाद आदमी सठियाने लगता है। मतलब उसकी सोच और तजुर्बे में अंतर आने लगता है, मगर गदेला जी आज भी बाल रंगकर अच्छे कपड़ों के साथ कहीं मिलते हैं तो आज के नवजवानों को भी चक्कर आने लगता हैं। वैसे तो हर जन्मदिन तो उम्र का एक साल कम करता जाता है, मगर लोगों की दुआएं उसे बढ़ाती ही रहती हैं। गदेला के जीवन और व्यवहार में जौनपुर की इमरती, अवध की तहजीब और बनारस का रस भी दिखता है। अपने से छोटे व्यक्ति को भी कभी छोटे होने का अहसास नहीं कराना उनकी आत्मीयता है। यहीं उनकी खासियत है। काम कोई भी लेकर उनके पास आया हो, उनके शब्दकोश में न शब्द तो है ही नहीं।
1974 में स्नातकोत्तर की शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी से उत्तीर्ण करने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी विषय से पीएच.डी. उपाधि वर्ष 1986 में प्राप्त की। डॉ शुक्ला को इतनी आसानी से नहीं समझा जा सकता है। जिस तरह से राणा प्रताप का शौर्य समझाने के लिए आपको अकबर का इतिहास बताना जरूरी है, उसी तरह गदेला को समझने के लिए इनकी पत्रकारिता के पन्ने को दर-परत पलटना जरूरी है। आपने पत्रकारिता जगत में 1977 में दैनिक जयदेश समाचार पत्र वाराणसी से अपनी यात्रा शुरू की। 8 अक्टूबर 1978 को जौनपुर से प्रकाशित हिंदी दैनिक तरुणमित्र के प्रथम अंक से जिला संवाददाता वर्तमान समय तक उत्तर प्रदेश सरकार से मान्यता प्राप्त पत्रकार के रूप में सेवारत हैं। 26 वर्ष तक लगातार दैनिक कवि के रूप में दैनिक तरुणमित्र के व्यंग्य कालम ‘कहो मियां’ में व्यंग्य लेखन का कार्य किया जो बहुत सराहा गया। लोग अखबार बाद में पढ़ते थे। कहो मियां पहले पढ़ते थे।
वर्तमान में पत्रकारिता की साथ रोटी और आजादी नमक काव्य पुस्तक लेखन का कार्य लगभग पूर्ण है जो जल्द ही प्रकाशित होगा। गदेला जी को मैंने पत्रकारिता के संत रामदेव के रूप में देखा। अखबार की दुनिया का एक मलंग साधु जो धूनी रमाए किसी भी समाचार पत्र को जौनपुर जिले में खड़ा करने की ताकत अपने बल पर रखता हो, उनके साधुत्व में एक शिशु सी सरलता भी है जो उन्हें लोगों से हटकर रखती है। उनकी आँखों में आत्मविश्वास के साथ करुणा-स्नेह की गंगा थी। उम्र के सत्तर के दशक पार करने के कारण जिले में उनकी अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और सामाजिक हस्तियों के बीच गंभीर और ठोस पकड़ है। उनके अद्भुत स्पर्श से आज के पत्रकारों को लुकाठी हाथ में लेकर सच कहने और सच के लिए किसी से लड़ने की हिम्मत तथा ताकत मिलती है। वह जिले में वरिष्ठ पत्रकार की वजह से नहीं, बल्कि अपनी सरलता, सहजता, अक्खड़ता और फक्कड़ता के कारण पहचान बनाए हैं। गदेला जी न्यूरो की बीमारी से त्रस्त होने के बाद भी महत्वपूर्ण कार्यक्रम और लोगों से संबंध बनाने में आज भी जिले के हर गांव, कस्बे को नापने की ललक रखते हैं। बीमारी के बावजूद प्रतिबद्धता की कलम और संकल्पों की अटैची लिये हमेशा यात्रा के लिए तैयार रहते हैं राम सिंगार शुक्ल।
लेखक
डा. सुनील कुमार
वरिष्ठ पत्रकार/असिस्टेंट प्रोफसर जनसंचार विभाग
मीडिया प्रभारी वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर।

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