Monday, April 29, 2024
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आज की पीढ़ी के लिये प्रेरणास्रोत है डा. सलाहुद्दीन

गुम होते जा रहे शिराज-ए-हिन्द के इतिहास पर जताया अफसोस
सरकार व जनप्रतिनिधि ध्यान दें तो विकसित होगा हमारा जौनपुर
हाजी जियाउद्दीन
जौनपुर। मनुष्य के जीवन में चढ़ाव-उतार होना एक प्रक्रिया है। यह समय और परिस्थितियों के अनुसार होता रहता है लेकिन इसी बीच इंसान कुछ करना चाह रहा है तो वह कर गुजरेगा, परिस्थितियों कैसी भी वह अपना अवसर तलाश ही लेगा। बशर्ते उसके पास हौसला होना चाहिए। यही हौसला और सोच सफलता की सीढ़ियों पर चढ़कर समाज में एक मुकाम हासिल करता है। समाज उसको पलकों पर बैठाता है जिससे वह समाज के नई पौध के लिए एक मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत होते हैं। इन्हीं प्रेरणास्रोत में से एक हैं डॉ. सलाउद्दीन जिनके जीवन संघर्ष पर यह लाइन सटीक बैठती है जो अर्श से फर्श तक पहुँचकर पूर्वांचल विश्वविद्यालय में लिपिक के पद पर कार्यरत है।
बता दें कि इनका जन्म 24 दिसम्बर 1966 को शहर जौनपुर के मोहल्ला पहाड़ खां सराय में हुआ। इनकी माता का नाम अफसरी खातून तथा पिता का नाम मोहम्मद कासिम था। बचपन मे ही इनके सिर से मां का साया उठ गया था। इनके दादा अब्दुदर्रहमान राजा हरपाल सिंह इण्टर कालेज सिंगरामऊ तथा दादी खत्तुननिशा राजा हरपाल सिंह डिग्री कालेज सिंगरामऊ में चतुर्थ श्रेणी कर्मी के पद पर कार्यरत थे। माता के निधन के बाद इनकी पालन-पोषण का कार्य दादी ने किया। इनके नाना हुसैन खाँ ‘हुसैनी’ राजकीय महिला कालेज जौनपुर में संगीत के शिक्षक थे। सलाउद्दीन जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव सिंगरामऊ से शुरू हुई। यहाँ से इण्टर तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद टी0डी0 कालेज जौनपुर में बी0ए0 में दाखिला लिया। इसी दौरान 4 दिसम्बर 1987 को पूर्वान्चल विश्वविद्यालय जौनपुर में इन्हें चपरासी की नौकरी मिल गयी। पढ़ाई में लगन इतनी थी कि नौकरी लग जाने के बाद भी उच्च शिक्षा के मेहनत करते रहे।
नौकरी के दौरान ही बी0ए0 एवं एम0ए0 की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इतिहास विषय से शोध करने का निर्णय लिया और डाॅ0 ओंकार नाथ उपाध्याय विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग, गोविन्द बल्लभ पन्त पी0जी0 कालेज प्रतापगंज के निर्देशन में ‘‘शर्की कालीन स्थापत्य कला’’ शीर्षक पर शोध प्रस्ताव वीर बहादुर सिंह पूर्वान्चल विश्वविद्यालय में जमा किया। सन् 1997 में शोध प्रबन्ध पूरा कर विश्वविद्यालय में जमा किया। इसी वर्ष विश्वविद्यालय से इन्हें से शोध की उपाधि प्रदान की गयी।
डाॅ0 सलाउद्दीन बताते हैं कि विश्वविद्यालय में दीक्षान्त समारोह के अवसर पर डाॅ0 मुरली मनोहर जोशी तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री भारत सरकार ने कुलपति प्रो0 नरेश चन्द्र गौतम से कहा कि जौनपुर ऐतिहासिक शहर है। यहाँ का इतिहास, ईरान, ईराक सहित अन्य मुस्लिम देशों में पढ़ाया जाता है लेकिन आश्चर्य की बात है कि जौनपुर की यूनिवर्सिटी में जौनपुर का इतिहास नहीं पढ़ाया जाता। प्रो0 जोशी ने कहा कि कोशिश किया जाएं कि जौनपुर के इतिहास पर यू0जी0सी0 के मानक अनुसार पुस्तकें तैयार कराकर जौनपुर के इतिहास को विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएं। उस समय तत्कालीन कुलपति प्रो0 नरेश चन्द्र गौतम ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह लड़का अर्श से उठकर फर्श तक पहुँचा है। इसका शोध भी शर्की कालीन स्थापत्य कला पर पूरा हुआ है, इसलिए जौनपुर के इतिहास की पुस्तक को लिखने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गयी।
उन्होंने बताया कि मैंने सबसे पहले अपने शोध प्रबन्ध ‘‘शर्की कालीन स्थापत्य कला’ को प्रकाशित करवाया। इसके बाद दूसरी किताब ‘शर्की राज्य जौनपुर का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास’ लिखा। उक्त दोनों किताबें पाठ्यक्रम के अनुसार प्रकाशित हुईं। शर्की सल्लतन जौनपुर के पाठ्यक्रम को अध्ययन परिषद और विद्यापरिषद की स्वीकृति के पश्चात वर्ष 2004 से एम0ए0 (इतिहास) की कक्षाओं में शर्की सल्तनत जौनपुर के इतिहास का पाठन-पाठन शुरू हुआ। जौनपुर के इतिहास से लगाव के बारे में डाॅ0 सलाउद्दीन ने बताया कि जिस घर में हमारे माता-पिता रहते थे। उस घर के पिछले दरवाजे से देखने पर शाही किला जौनपुर की बुर्जियां नज़र आती थीं जिसको मैं घण्टों देखा करता था। बाल्यावस्था में जब माता जीवित थीं तो उन्होंने अरबी की शिक्षा ग्रहण करने के लिए शाही आटाला मस्जिद में मेरा दाखिला करवा दिया जहाँ मैंने मौलाना अज़मत अली (अज्जू) से कुरान मजीद का नाजरा और उर्दू की प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण किया। उन्होंने बताया कि अरबी पढ़ाई के दौरान मैं अक्सर अटाला मस्जिद की बुलन्द बनावट और उसकी खूबसूरत नक्काशियों को निहारता रहता था। इस दौरान सबक पर ध्यान कम देता था जिसकी वजह से यदा-कदा मेरी पिटाई भी हुआ करती थी।
उनके अनुसार इस प्रकार बचपन से ही मुझे तुगलक, शर्की और मुगल शासकों द्वारा निर्मित कराये गये स्मारकों को देखकर उनका इतिहास पढ़ने का शौक हुआ। मेरे दादा-दादी का सपना था कि मेरा पौत्र डाक्टर बनकर देश और समाज की सेवा करे। इसी उद्देश्य के साथ मेरे दादा ने हाईस्कूल में साइंस साइट से मेरा दाखिला करा दिया लेकिन मुझे मेडिकल लाइन के पेशे से कोई लगाव नहीं था, इसलिए मैंने साइंस छोड़कर आर्ट साइट से प्रवेश ले लिया। मध्यकालीन इतिहास विषय से एम0ए0 की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मुझे शर्की कालीन स्थापत्य कला पर शोध करने का अवसर मिला जिसको मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ।
डाॅ0 सलाउद्दीन को शैक्षिक एवं सामाजिक क्षेत्र में किये गये उत्कृष्ट कार्यों के लिए विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया जिसमें मानवाधिकार संगठन जौनपुर की तरफ से ‘जौनपुर रत्न’, डाॅ0के0एन0 सिंह पूर्व संकायाध्यक्ष कला संकाय वीर बहादुर सिंह पूर्वान्चल विश्वविद्यालय जौनपुर की तरफ से ‘आँचलिक इतिहासकार’ तथा वीर बहादुर सिंह पूर्वान्चल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो0 निर्मला एस0 मौर्य द्वारा इन्हें ‘बेस्ट वर्कर’ के सम्मान से सम्मानित किया गया। डाॅ0 सलाउद्दीन अपनी योग्यता और संघर्ष की वजह से वर्तमान समय में वीर बहादुर सिंह पूर्वान्चल विश्वविद्यालय में वरिष्ठ सहायक के पद पर कार्यरत हैं। जीवन में संघर्ष की कहानी को समाज के पटल पर रखने व उसके उद्देश्य के बारे में बताया कि समाज से आह्वान करते हुए कहा कि समाज को चाहिए कि वह अपने बच्चों को उच्च शिक्षा, प्रतियोगी परीक्षाओं, रोजगारपरक शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा ग्रहण करवायें।
उन्होंने बताया कि बच्चा हो या बच्ची जब पैदा हों तभी से उनकी सफलता के लिए सपने देखते रहें और कोशिश करें कि बच्चे भी सपने देखने वाले बने। बच्चों को पढ़ा—लिखा कर किस क्षेत्र में भेजना है, उसको उसी दिशा के तरफ ले जाने के लिए खाका तैयार कर लें और उसी हिसाब से उस दिशा में मेहनत कराएं। आगे चलकर आर्थिक समस्याओं के बारे में बताते हुए कहा कि बच्चे के पैदा होते ही कुछ धनराशि उनके खाते में जमा कर फिक्सडिपाजिट करा दें, ताकि प्रतियोगी परीक्षा के तैयारी हेतु अच्छे संस्थान में दाखिला लेते समय पैसों की समस्या न पैदा हो। समाज को चाहिए कि वह अपने बच्चों को सिविल सर्विसेज के तैयारी के लिए संकल्प लें, क्योंकि इन्हीं पदों में सत्ता की शक्ति निहित है। सत्ता और प्रशासन में हिस्सेदारी के बगैर हम तरक्की का सपना नहीं देख सकते।
उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि जिस समाज के लिए सबसे पहला हुक्म ‘पढ़ने’ का दिया गया हो, आज वही समाज पढ़ाई से दूर होती जा रही है। जौनपुर के पुरातात्विक स्वरूप को विकसित करने के लिए एक प्रोजेक्ट तैयार किया गया है जिसमें शर्की सुल्तानों के महलों के खण्डहर, ‘खास हौज’ के स्वरूप को विकसित कर ‘गार्डेन’, ‘पार्क’, खास हौज के पश्चिमी में पर्यटकों को ठहरने के लिए पत्थरों की आकृति का ‘शाही पैलेस’ तथा शर्की के आधुनिक डिजाइन का ‘टूरिस्ट-हट’ तथा एक ‘चिड़िया-घर’ एवं खास-हौज के बीचो-बीच वृत्ताकार में हाईपावर फव्वारा लगाया जाएं और इसकी डिजााइनिंग इस प्रकार की होगी कि पर्यटकों को इसे देखकर झील का झर-झर करता हुआ पानी जैसा आनन्द महसूस होगा। खास हौज में पर्यटकों, बच्चों एवं दर्शकों के लिए ‘छोटे-छोटे हाउस-बोट’ चलाये जाएं जिसमें बैठकर लोग खास-हौज (प्रमुख तालाब) की ‘रंग बिरंगी मछलियों एवं जलीय पक्षियों’ कलरव को देख प्रफुल्लित हो सके। साथ ही जौनपुर की ऐतिहासिक मस्जिदें, मंदिरें, सरोवर व तालाबों की साफ-सफाई, बैरेकेटिंग, रंगाई-पोताई तथा परिचय पट्टिका आदि लगायी जाएं जिससे पर्यटक जौनपुर के पर्यटन स्थल की ऐतिहासिक जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। यदि सरकार या जनप्रतिनिधि इस बात पर जरा सा भी ध्यान दे तो यकीनन पर्यटक जौनपुर के ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों को देखने के लिए आकर्षित होंगे। इससे जौनपुर का इतिहास जनमानस पटल पर सुलभ होगा और लोग इससे लाभान्वित भी होंगे। आज की युवा पीढ़ी डॉ. सलाहुद्दीन के जीवन संघर्ष और सोच से प्रेरणा लेकर सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ सकती है।

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