Monday, April 29, 2024
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योगी राज में विधायिका पर भारी कार्यपालिका

अजय कुमार
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ न केवल सख्त शासक हैं। उनकी छवि काफी साथ-सुथरी है। करीब साढ़े छहः साल के शासनकाल में योगी सरकार पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा है। यह एक अच्छी बात है। जनता भी ऐसी ही सरकार चाहती है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि योगी को छोड़कर यूपी के अन्य सभी राजनेता बेईमान और भ्रष्टाचारी हैं। सभी दलों में अच्छे-बुरे दोनों किस्म के नेता मौजूद हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का भी यही ‘मिजाज’ है। यहां भी अन्य दलों की तरह दोनों किस्म के नेता देखने को मिलते हैं, मगर बीजेपी आलाकमान को अपने किसी भी नेता पर भरोसा नहीं है। यहां तक की योगी सरकार के मंत्री भी सरकारी मशीनरी के सामने ‘पंख कटे’ नजर आते हैं। इसकी वजह है कि बीजेपी में सभी नेताओं को एक ही तराजू में तौला जा रहा हैं।

कहने को तो उसके तमाम नेता जनप्रतिनिधि होने का भी रूतबा रखते हैं लेकिन इन्हें पूरी तरह से दंतविहीन बना दिया गया है। यह न कभी अपने क्षेत्र में पुलिस उत्पीड़न के शिकार लोगों के पक्ष में थाने जा सकते हैं। न शासन-प्रशासन में बैठे अधिकारी उनकी सुनते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकारी मशीनरी को आदेश दे रखा है कि यदि कोई बीजेपी नेता उनके पास किसी की सिफारिश लेकर आये तो उसकी बात सुनने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि अधिकारी अपने विवेक से सही गलत का फैसला लें। यह सब बातें किसी फाइल में तो नहीं कोड की गई हैं परंतु राजनीति के गलियारों में यह चर्चा आम है कि जिस तरह से समाजवादी पार्टी की सरकार के समय उसके (सपा) सांसद/मंत्री/विधायक आदि

जनप्रतिनिधि पुलिस और सरकारी मशीनरी पर दबाव बना लेते थे। वैसा दबाव बीजेपी के जनप्रतिनिधि नहीं बना पाते हैं। होता यह है कि जब भी बीजेपी का कोई नेता किसी सरकारी अधिकारी या पुलिस के पास पहुंचता है तो उसे सीएम योगी का फरमान याद दिला दिया जाता है या यूं कहे कि उन्हें अपमानित करके वापस भेज दिया जाता है।
हालात यह है कि यूपी सरकार के अधिकारी बीजेपी के किसी भी जनप्रतिनिधि को भाव नहीं देते हैं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास भी ऐसे नेताओं से मिलने का टाइम नहीं रहता है। इसको लेकर योगी के पिछले शासन में बीजेपी के जनप्रतिनिधियों ने विधानसभा के अंदर प्रदर्शन भी किया था लेकिन सीएम योगी आदित्यनाथ की अपने ही

जनप्रतिनिधियों से दूरी हमेशा चर्चा में रहती है। यहां तक की दिल्ली भी इस मामले में कुछ नहीं कर पा रहा है, क्योंकि आज की तारीख में पार्टी के अंदर योगी का कद काफी बढ़ा हुआ है, इसलिए उन्हें कहीं से चुनौती भी नहीं मिलती है। इसी के चलते पीड़ितों व आम लोगों से पुलिसकर्मियों के दुर्रव्यवहार के मामले तो आए दिन सामने आते रहते हैं। पुलिस अधिकारियों व कर्मियों द्वारा माननीयों से भी अच्छा व्यवहार न किए जाने की शिकायतें बढ़ रही हैं। कहने को तो सीएम योगी आदित्यनाथ अक्सर कहते मिल जाते हैं कि जनप्रतिनिधियों का पूरा सम्मान किया जाय। इस बार भी योगी द्वारा माननीयों के प्रति शिष्टाचार व अनुमन्य प्रोटोकाल का अनुपालन सुनिश्चित कराए जाने के कड़े निर्देश दिए गए हैं लेकिन इसका असर होते नहीं दिख रहा है।

उत्तर प्रदेश में अफसरशाही के चलते केवल आम आदमी ही नहीं मंत्री सांसद और विधायक भी परेशान हैं। यह लोकसेवक लम्बे समय से कार्यपालिका के चलते होने वाली अपनी परेशानी शिकायतों के रूप में सामने रखते रहते हैं। ज्ञातव्य हो कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने इंटीग्रेटेड ग्रीवॉन्स रिड्रेसल सिस्टम लागू कर रखा है जिसे आइजीआरएस पोर्टल के रूप में जाना जाता है। इसमें कोई भी सीधे मुख्यमंत्री से शिकायत कर सकता है। इस पोर्टल पर पिछले दो वर्षो में आम जनता के अलावा येागी के कई मंत्रियों, सांसदों और विधायकों ने भी कार्यपालिका की शिकायत दर्ज कराके अपनी लाचारी

सार्वजनिक की है जिसमें काफी चौंकाने वाली बाते सामने आई है। इन माननीयों की शिकायत से पता चलता है कि प्रदेश में तमाम अफसर आमजन तो दूर मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की बात को भी तवज्जो नहीं देते हैं और उनके सुझाए गए कार्यों को बेहद लेटलतीफी करते हैं। इस बारे में नेता और विधायक कई बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के दौरान शिकायत कर चुके हैं लेकिन कभी कोई हल नहीं निकल पाया।

गौरतलब हो कि हाल ही में भी शासन व डीजीपी मुख्यालय द्वारा पुलिसकर्मियों को इसे लेकर निर्देश दिए गये हैं। प्रमुख सचिव, गृह संजय प्रसाद ने सभी पुलिस आयुक्तों, एसएसपी व एसपी को सांसदों व विधानमंडल के सदस्यों के प्रोटोकाल का अनुपालन कराए जाने को कहा। उन्होंने कहा कि शासन व संसदीय अनुश्रवण समिति के समक्ष प्रोटोकाल उल्लंघन के मामले लगातार आ रहे हैं। संजय प्रसाद द्वारा कहा गया है कि सभी अधिकारी सांसदों व विधानमंडल के सदस्यों के सीयूजी नंबर अथवा उनके द्वारा नोट कराया गया। अन्य मोबाइल नंबर अनिवार्य रूप से अपने मोबाइल में फीड करेंगे तथा काल आने पर उसे रिसीव करेंगे। किसी बैठक में होने अथवा उपलब्ध न होने की स्थिति में काल की जानकारी होने पर प्राथमिकता पर जनप्रतिनिधि को संदेश भेजने के साथ ही काल कर बात करेंगे।जनप्रतिनिधियों द्वारा फोन पर बताए गए प्रकरणों का यथाशीघ्र निस्तारण कराकर उन्हें जानकारी भी देंगे।

साथ ही जिले के अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों व कर्मियों के मोबाइल पर उनके क्षेत्र के माननीय का फोन नंबर फीड कराएंगे। संजय प्रसाद द्वारा यह भी कहा गया है कि जनप्रतिनिधि यदि किसी जनहित से जुड़े कार्यों के संबंध में उनसे (अधिकारी व कर्मचारी) से भेंट करते हैं तो उनका सीट से खड़े होकर यथोचित सम्मान किया जाय। इसके साथ ही जनप्रतिनिधियों से वार्ता में यदि उनके अनुरोध अथवा सुझाव को स्वीकार करने में असमर्थ हों तो अधिकारी उसके कारणों से जनप्रतिनिधियों को विनम्रतापूर्वक अवगत कराएंगे। किसी अनुचित आचरण अथवा जान—बूझकर की गई गलती को दुराचरण माना जाएगा और कार्रवाई होगी। जिलों में प्रोटोकाल से जुड़े मामलों के लिए हर दो माह में वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक किए जाने का निर्देश भी दिया गया है, मगर यह आदेश कितना प्रभावशाली रहेगा, इसको लेकर लोगों के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों को भी संदेह है जबकि लोकतंत्र में जरूरी है कि जनप्रतिनिधियों की आवाज को उसके सरकारी नौकर न केवल सुने, बल्कि गंभीरता से भी लें, क्योंकि हर जनप्रतिनिधि गलत नहीं होता है.जनता उसे चुनती है और उसे जनता को जबाव देना होता है। जनता की समस्याओं को सुनना और उसका समाधान जनप्रतिनिधि की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी भी है।

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