Monday, April 29, 2024
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इण्डिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 के आंकड़े, यूपी में न्याय पाना आसान नहीं: अजित

आईजेआर 2022 के ताज़ा आंकड़ों पर चिंता जता रहे सोसिओ-पोलिटिकल एक्टिविस्ट
आनन्द यादव
जौनपुर। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 के ताज़ा आंकड़ों पर सोसिओ-पोलिटिकल एक्टिविस्ट अजित यादव ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि आज़ादी के दशकों बाद भी अगर हम न्याय की उम्मीद छोड़ रहे हैं तो यह लोकतंत्र पर गहरा कुठाराघात है। ये आंकड़े बताते हैं कि आमजन के लिए न्याय दूर की कौड़ी है। रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि अधीनस्थ न्यायपालिका की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। उन्होंने बताया कि इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) 2022 के अनुसार देश में 20,076 जज हैं और 22 प्रतिशत आवंटित पद रिक्त हैं। उच्च न्यायालयों में ही 30 प्रतिशत पद खाली हैं। यानी हर 71,224 नागरिकों पर सहायक अदालतों में एक और 17,65,760 नागरिकों पर उच्च न्यायालयों में एक जज है। वहीं 25 राज्य मानवाधिकार आयोगों में मार्च 2021 तक 33,312 केस लंबित थे, यहां भी 44% पद खाली हैं। 4.8 करोड़ लंबित मुकदमों का बोझ अदालतों के कंधे पर है। हर 10 लाख आबादी पर महज 19 जज हैं जबकि वर्ष 1987 में विधि आयोग ने हर 10 लाख की आबादी पर 50 जजों की जरूरत बताई थी लेकिन 35 साल में भी यह अंतर खत्म नहीं हुआ।
पुलिस, जेल, न्याय पालिका और कानूनी सहायता में राज्यों के प्रदर्शन पर आधारित रैंकिंग में यूपी को 10 में से सिर्फ 3.78 अंक मिले। बीते दो साल की तरह यूपी इस बार भी आखिरी 18वें स्थान पर रहा। देश के 5 हाई कोर्ट में कोई महिला जज नहीं, सुप्रीम कोर्ट में भी सिर्फ 3 महिला जज हैं| रिपोर्ट के मुताबिक जहां देश भर की हाई कोर्ट्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व थोड़ा बढ़ा है, वहीं कुछ हाईकोर्ट में महिला जजों की संख्या कम हो गई। साल 2020 और 2022 के बीच हाईकोर्ट में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में 2 फीसदी की मामूली वृद्धि देखी गई। सिर्फ तेलंगाना में 7.1 से 27.3 फीसदी की वृद्धि हुई है। हालांकि कुछ राज्यों में हाई कोर्ट्स में महिलाओं का प्रतिशत गिर गया है।
जब उच्चतम स्तर पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात आती है तो देश की सुप्रीम कोर्ट की स्थिति भी अच्छी नहीं होती है। भले ही सुप्रीम कोर्ट में 3 महिला जज हैं लेकिन इसकी स्थापना के बाद से सुप्रीम कोर्ट में केवल 11 महिला न्यायाधीश हैं और भारत की कोई महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं है। हाई कोर्ट्स में भी 680 न्यायाधीशों में से सिर्फ 83 महिलाएं हैं। हर व्यक्ति को मुफ्त कानूनी सहायता पाने का अधिकार है। भारत की 80 फीसदी आबादी इसकी हकदार है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर व्यक्ति पर कानूनी सहायता के रूप में सालभर में मात्र 3.84 रुपये ही खर्च होते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक समय पर इंसाफ देने के मामले में कर्नाटक के बाद तमिलनाडु, तेलंगाना, गुजरात, आंध्र प्रदेश और केरल है। इस रैंकिंग में उत्तर प्रदेश सबसे नीचे 18वें नंबर पर है।

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