Sunday, April 28, 2024
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स्वतन्त्र भारत पहली काली रात

स्वतंत्र भारत के इतिहास में मध्य रात्रि में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई थीं। पहला जब लोकतंत्र का नियति से मिलन हुआ था और दूसरा जब लोकतंत्र की हत्या हुई थी। 15 अगस्त व 16 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि में जब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लोकतंत्र का नियति से मिलन कराने के लिए बड़ी मुश्किल से इंसानों के सिरों के कालीन पर पैर रखते हुए मंच तक पहुंचे थे। कमेंट्री कर रहे बीबीसी हिंदी के संवाददाता ने कहा था कि इतनी भीड़ या कुंभ मेला में देखा था या आज देख रहा है।
फिलिप टालबोट ने अपनी पुस्तक एन अमेरिकन विटनेस मे लिखते हैं कि भीड़ को रोकने के लिए बांधी गईं बिल्लियां, बैंड वालों के लिए बनाए गए मंच, विशेष अतिथियों के लिए बनाए गए दर्शक दीर्घा हर चीज लोगों की प्रबल धारा में बह गई। अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंट बेटन की 17 वर्षीय बेटी पामेला माउंट बेटन भी 2 लोगों के साथ वहां पहुंची थी।
नेहरू ने देखा और जोर से चिल्लाया और कहा कि लोगों के ऊपर से फानते हुए मंच पर आ जाओ। पामेला ने कहा कि ऐसे मौके पर मैं सोच भी कैसे सकती हूं। पामेला ने अपनी किताब इंडिया रिमेंबर में लिखती हैं। मैंने नेहरू जी से कहा कि मेरी ऊंची एड़ी की सैंडिल लोगों को चुभेगी। नेहरू ने कहा कि बेवकूफ लड़की सैंडिल को हाथ में लो और लोगों के सिर पर से पैर रखते हुए मंच पर आओ। पामेला माउंट बेटन ने नेहरू जी की देखा—देखी सेंडिल को हाथ में लेकर ऐसा ही किया। नेहरू ने सही कहा था कि किसी ने इसका बुरा नहीं माना, बल्कि जब फ्लैग ऊपर गया तो लोगों की आंखों में खुशी के आंसू थे। यह नजारा इंदिरा गांधी के बाल्यावस्था देखा था। तब किसी को क्या मालूम था कि वही इंदिरा सत्ता में बने रहने की लालच एवं सत्ता पर किसी और का वर्चस्व न हो जाय, की डर से ठीक 28 साल बाद 25 जून व 26 जून 1975 की मध्य रात्रि में श्रीमती इंदिरा गांधी राजनीतिक पैरों से लोकतंत्र को कुचल दिया।
इमरजेंसी की नींव 12 जून 1975 को ही रख दी गई थी। जब पक्के समाजवाद के महान नेता एवं मसखरो के राजकुमार के नाम से मशहूर लोक नायक जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी पर आरोप लगाए थे कि 1981 के लोकसभा चुनाव में अपने चुनाव क्षेत्र में पद का दुरुपयोग की हैं। इंदिरा पर 7 आरोप लगे थे जिसमें केवल दो आरोप सिद्ध हुए। पहला आरोप इंदिरा गांधी ने यशपाल कपूर को चुनावी एजेंट बनाया जो वे अभी भी सरकारी सेवा में थे। दूसरा आरोप प्रचार के दौरान चुनावी मंच और लाउडस्पीकर लगाने के लिए पीडब्ल्यूडी के कर्मचारियों का इस्तेमाल किया है। जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा के निर्वाचन को खारिज कर दिया और 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। लोक नायक राजनारायण के वकील थे। शांति भूषण जो बाद में कानून मंत्री बने, शायद उनको इसका ईनाम मिला हो। हाईकोर्ट के फैसले के बाद इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ता।
उधर 25 जून 1975 को रामलीला मैदान में लोक नायक जय प्रकाश नारायण सभा का संबोधन राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता से शुरू की। उठते हैं तूफान, बवंडर भी उठते हैं, जनता जब कोपाकुल हो भृकुटी चढ़ाती है। दो राह समय के रथ कि घर्घंर नाद सुनो सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। लोक नायक जय प्रकाश नारायण मंच पर ही लोक संघर्ष समिति बना दी। मोरार जी देसाई को चेयरमैन, नाना देशमुख को महासचिव और अशोक मेहता को कोषाध्यक्ष बनाया गया। लोक नायक ने कहा कि हमला चाहे जैसा भी हो, हाथ नहीं उठेगा। इधर इंदिरा सारे विपक्ष को एकजुट देख घबरा गईं और अपनी सत्ता जाते देख उन्होंने अपने आधिकारिक आवास 1 सफदरगंज रोड पर एक आपात बैठक बुलाई। इंदिरा गांधी सभी नेताओं से सलाह मांगीं। अब क्या करना चाहिए? इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया का नारा लगाने वाले कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष डीके बरुआ यानी देवकांत बरुआ ने इंदिरा को सलाह दिया अंतिम फैसला आने तक वे कांग्रेस के अध्यक्ष बन जायं। प्रधानमंत्री बन जाएंगे तभी संजय गांधी की एंट्री होती है जो अपनी मां को कमरे के कोने में ले गये। उन्होंने कहा कि इतने सालों के मेहनत के बाद किसी और पर भरोसा नहीं किया जा सकता। संजय गांधी के सलाह के बाद इंदिरा गांधी हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ 23 जून को सुप्रीम कोर्ट में अपील कीं।
सुप्रीम कोर्ट में अवकाश पीठ के जज जस्टिस वी.आर. कृष्णा अय्यर ने अगले दिन यानी 24 जून 1975 को इस पर सुनवाई करते हुए कहा कि वे इस पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाएंगे। कोर्ट ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति दे दी लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी सांसद के रूप में मतदान नहीं कर सकतीं। 25 जून 1975 को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे को इंदिरा के निजी विशेष सचिव आरके धवन ने इंदिरा के ऑफिस में तलब किये जो उस समय बंग भवन दिल्ली में ही थे। जब सिद्धार्थ शंकर रे इंदिरा की स्टडी रूम में प्रवेश किया तो इंदिरा गांधी के सामने खुफिया रिपोर्टों का ढेर लगा हुआ था। इंदिरा देश की स्थिति पर बात कर रही थीं। इंदिरा का कहना था कि देश में अराजकता फैली हुई है। बिहार और गुजरात की विधानसभाएं भंग की जा चुकी हैं। इस तरह विपक्ष की मांगों का कोई अंत ही नहीं। इंदिरा ने कहा कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के हिट लिस्ट में सबसे ऊपर हैं। उनको डर है कि कहीं सीआईए की मदद से चिली के राष्ट्रपति साल्वाडोर आइंदे की तरह उनका भी तख्तापलट न कर दिया जाय।
मजे की बात यह है कि उस समय कानून मंत्री एच.आर. गोखले को इसकी कोई सूचना नहीं थी। सिद्धार्थ शंकर रे कानून के विशेषज्ञ माने जाते थे। उन्होंने इस पर विचार करने के लिए इंदिरा से समय मांगा। कुछ घंटे बाद जब सिद्धार्थ जी आए और इंदिरा गांधी से कहा कि आप आंतरिक गड़बड़ियों से निपटने के लिए अनुच्छेद 352 के तहत आंतरिक आपातकाल की घोषणा कर सकती हैं। इंदिरा ने रे से कहा कि वे इस मामले को कैबिनेट के सामने नहीं लाना चाहतीं। रे ने इंदिरा को सलाह दी कि वे राष्ट्रपति से कह सकती हैं कि कैबिनेट की बैठक बुलाने के लिए पर्याप्त समय नहीं था। इंदिरा गांधी ने रे से कहा कि वे इस प्रस्ताव के साथ वे राष्ट्रपति के पास जाएं। रे ने इसका यह कहते हुए विरोध किया कि वे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री हैं, प्रधानमंत्री नहीं। हां, वह उनके साथ राष्ट्रपति भवन चल सकते हैं। यह दोनों शाम 5.30 राष्ट्रपति भवन पहुंचे। सारी बात महामहिम राष्ट्रपति को समझाई गई। उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा कि आप इमरजेंसी के कागज भिजवाएं। यह दोनों 1 सफदरगंज रोड पहुंचे। इमरजेंसी के कागजात के साथ हरकारा इंदिरा गांधी के निजी सचिव आरके धवन लगभग रात्रि 12 बजे राष्ट्रपति भवन पहुंचे।
महामहिम राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इमरजेंसी के कागज पर हस्ताक्षर किये। उस समय एक कार्टून बहुत मशहूर हुआ था। बाथटब में इमरजेंसी के कागज पर हस्ताक्षर करते हुए दिखाया गया था। इंदिरा गांधी ने निर्देश दिया। मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों को सुबह 5 बजे फोन कर बताया जाय कि 6 बजे आपात बैठक बुलाई गई है। तब तक काफी रात हो चुकी थी। सिद्धार्थ शंकर रे 1 सफदरगंज रोड पर इंदिरा गांधी के साथ उस भाषण को अंतिम रूप दे रहे थे जो इंदिरा गांधी को सुबह मंत्रिमंडल की बैठक के बाद देश को रेडियो पर देने वाली थीं। उस समय 2 किचन केबिनेट काम कर रहा था। पहला था इंदिरा गांधी का जिसमें बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे, कानून मंत्री एच.आर. गोखले, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ, गृह राज्यमंत्री ओम मेहता, दूसरा किचन केबिनेट संजय गांधी का जिसमें हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसी लाल, प्रधानमंत्री ऑफिस में स्पेशल ड्यूटी यशपाल कपूर, प्रधानमंत्री के निजी सचिव आर.के. धवन, योग गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी। उधर दूसरे कमरे में संजय गांधी और ओम मेहता उन लोगों की लिस्ट बना रहे थे जिनको कल गिरफ्तार किया जाना था। संजय गांधी और ओम मेहता यह भी योजना बना रहे थे कि कैसे समाचार पत्रों की बिजली काटकर सेंसरशिप लागू की जाएगी तब तक भोर हो चुकी थी। जब सिद्धार्थ शंकर रे इंदिरा गांधी से विदा ली और चलने लगे तो वे गेट पर ओम मेहता से टकरा गये। ओम मेहता ने उनसे कहा कि कैसे सुबह प्रेस की बिजली काटने और अदालतों को बंद रखने की योजना बना ली गई है। सिद्धार्थ शंकर रे ने कहा कि यह बेतुका फैसला है। सिद्धार्थ शंकर रे वापस मुड़े और इंदिरा गांधी से यह बात बताई तो उनके होश उड़ गये।
उधर संजय गांधी ने हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसी लाल को फोन मिलाया। उन्होंने संजय गांधी से कहा कि वह सिद्धार्थ संकर रे को निकाल बाहर करें। वह काम बिगाड़ रहे हैं। वे अपने आपको बहुत बड़ा वकील समझते हैं। जब इंदिरा गांधी वापस आईं तो उनकी आंखें लाल थीं। उन्होंने कहा कि रे साहब बिजली रहेगी और अदालती भी खोलेंगे। सिद्धार्थ शंकर रे खुशफहमी में वापस लौटे। जब इंदिरा गांधी सोने गई तब गिरफ्तारियां शुरू हुईं। सबसे पहले आधी रात को लोक नायक जय प्रकाश नारायण को गिरफ्तार किया गया जब वे गांधी पीस फाऊंडेशन प्रतिष्ठान मे सोए हुए थे। मेंटेनेंस इंटरनल ऑफ सिक्योरिटी एक्ट के तहत सुबह होते 36000 लोग गिरफ्तार किए गए। 21 महीने की इमरजेंसी के दौरान कुल 1100000 (11 लाख) लोग गिरफ्तार किए गए। इंदिरा गांधी ने सिर्फ 3 लोगों की गिरफ्तारी का आर्डर नहीं दिया था। एक थे तमिलनाडु के नेता कामराज, दूसरे थे बिहार के गंगा सरण सिंहा और तीसरे समाजवादी नेता एस.एम. जोशी। जब भोर में जब पेपर प्रिंटिंग के लिए बहादुर शाह जफर रोड पर जा रहे थे तभी बिजली काट दी गई केवल दो समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स और स्टेटमेंट छप पाए थे, क्योंकि इनका प्रिंटिंग प्रेस बहादुर शाह जफर मार्ग पर नहीं था। सुबह जब कैबिनेट की बैठक शुरू हुई तो उन्हें आंतरिक आपातकाल की उद्घोषणा और गिरफ्तार किए हुए लोगों की लिस्ट दी गई।
इंदिरा गांधी ने बताया कि आपातकाल लगाने की जरूरत क्यों पड़ी? सिर्फ एक मंत्री ने सवाल पूछा। वे थे रक्षा मंत्री स्वर्ण सिंह। उनका सवाल था कि किस कानून के तहत गिरफ्तारियां हुई हैं। इंदिरा ने उन्हें संक्षिप्त जवाब दिया या उन्हें उनकी हैसियत बताकर चुप करा दिया। कोई मतदान नहीं, कोई मंत्रणा नहीं हुई। यह बैठक मात्र आधे घंटे तक चली। आपातकाल को किसी ने चुनौती नहीं दी। आपातकाल राष्ट्रपति के मंजूरी के बिना नहीं लगाए जा सकते। राष्ट्रपति भी यह मंजूरी संसद से आए लिखित प्रस्ताव पर ही दे सकते हैं। आपातकाल लागू होने के बाद इसे प्रत्येक सदन में रखा जाता है। अगर वहां इसका विरोध होता है तो इसे 6 महीना आगे बढ़ा दिया जाता है। 1975 में लगा आपातकाल 21 महीने चला यानी 4 बार बढ़ाए जाने की मंजूरी ऐसे ही मिलती रही। अब प्रश्न उठता है कि आपातकाल समाप्त कैसे होता है। जैसे आपातकाल की घोषणा राष्ट्रपति करते हैं। उसी तरह इसे लिखित रूप में समाप्त भी करते हैं। आपातकाल को समाप्त करने के लिए संसद की मंजूरी नहीं लेनी पड़ती। हालांकि न्याय पालिका कोर्ट द्वारा आपातकाल की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। इंदिरा गांधी ने 26 जून को आपातकाल लगाने के बाद 22 जुलाई 1975 को संविधान में 38 वा संविधान संशोधन करके यह न्यायिक समीक्षा का अधिकार इंदिरा गांधी ने कोर्ट से छीन लिया था। इसके 2 महीना बाद 39वां संविधान संशोधन किया गया। अब कोर्ट प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त व्यक्ति की जांच नहीं कर सकता। इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थीं तो आंतरिक अशांति का कारण बताया था। 1977 में मोरार जी देसाई की सरकार ने संविधान में संशोधन कर दिया जिसके अनुसार वह सारे अधिकार अदालत को दे दिए गए जो अधिकार इंदिरा गांधी ने कोर्ट से छीन लिया था। अब आंतरिक आपातकाल के प्रावधान में संशोधन करके आंतरिक विद्रोह के साथ शसस्त्र विद्रोह शब्द भी जोड़ दिया गया, ताकि सरकार इसका दुरुपयोग न कर सके।
हरी लाल यादव
सिटी स्टेशन, जौनपुर।
मो.नं. 9452215225

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