Monday, April 29, 2024
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गांधी सरनेम कांग्रेस की जरूरी और मजबूरी दोनों

संजय सक्सेना
कांग्रेसियों के लिए गांधी सरनेम कितना महत्व रखता है। यह बात एक बार फिर गुजरात की सूरत कोर्ट में राहुल गांधी के खिलाफ एक मानहानि केस में उन्हें दो साल की सजा सुनाए जाने के फैसले के बाद साबित हो गई है। सेशन कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेसी राहुल की वफादारी में हर संवैधानिक संस्था की विश्वसनीयता को तार-तार करने में लगे हैं। यहां तक कि मनमोहन सरकार के समय में बने कानून की भी धज्जियां उड़ाने में पीछे नहीं हैं। 2013 में कांग्रेस की गठबंधन वाली मनमोहन सरकार सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद एक अध्यादेश लाई थी जिसे बाद में राहुल गांधी के दबाव में आकर कानूनी रूप नहीं दिया दिया जा सका था लेकिन आज उसी की आग में जब राहुल गांधी स्वयं झुलसने लगे तो उसके लिए भी उन्होंने मोदी सरकार की तो बात ही दूसरी है। अदालतों तक को कोसना काटना शुरू कर दिया हैं।
बता दें कि कांग्रेस की मनमोहन सरकार के समय कानून बना रही कि था। यदि किसी नेता को कोर्ट से 5 साल से कम की सजा सुनाई जाती है तो उसकी लोकसभा या विधानसभा के सदस्या समाप्त नहीं होगी लेकिन राहुल गांधी का चेहरा चमकाने के लिए मनमोहन सरकार ने इसे रद्द कर दिया था जिस कारण दो साल की सजा पर सदस्यता समाप्त होने का प्रावधान जारी रहा। आज जब यह इस कानून की जद में राहुल गांधी आए तो कांग्रेसियों ने चाटुकारिता की सारी हदें पार करते हुए देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी पीछे छोड़ दिया। हर तरफ हो-हल्ला किया जा रहा है। दिल्ली से लेकर लखनऊ और अन्य राज्यों में भी बेवजह का हंगाम खड़ा किया जा रहा है।
कुल मिलाकर जो राजनैतिक हालात बन रहे हैं, उससे लगता है कि कांग्रेस को 2024 का ही नहीं 2029 लोकसभा चुनाव भी राहुल गांधी विहीन होकर लड़ना पड़ सकता है। इससे कांग्रेस बच सकती थी यदि राहुल गांधी मानहानि केस में माफी मांग लेते लेकिन उनके सलाहकारो ने उन्होंने ऐसा करने नहीं दिया। संभवत: राहुल गांधी को कोट पर जनेऊ पहनाने वाले उनके करीबी कथित हिंदुओं को इस बात का एहसास ही नहीं होगा कि हिंदू समाज और सनातन धर्म में माफी मांगना कोई बुराई नहीं है, बल्कि इससे व्यक्ति की महानता ही नजर आती है। कई बार कई मौकों पर देश के बड़े-बड़े नेता भी किसी ना किसी बात पर माफी मांग चुके हैं फिर यहां तो एक समुदाय के अपमान का मामला राहुल गांधी के बयान से जुड़ा हुआ था। राहुल गांधी को सजा के बाद कांग्रेस हाय तौबा मचा रही है और यह सिलसिला थमने वाला भी नहीं लगता है लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि उनके साथ वह नेता भी खड़े हो गए जो कल तक राहुल के विरोध में उतरे हुए थे। हो सकता है कि इनमें से कई नेताओं की अपनी राजनीतिक मजबूरी हो, क्योंकि राहुल के साथ खड़े कई गैरकांग्रेसी नेताओं पर भी भ्रष्टाचार के चलते गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। संभवत: ऐसे ही नेता राहुल गांधी के कंधे पर अपनी ‘बंदूक’ रखकर मोदी सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपना सियासी हिसाब किताब बराबर कर लेना चाहते हों।
हाल यह है कि गांधी परिवार के चाटुकारों ने गांधी परिवार का महिमामंडन के चक्कर में देश को भी पीछे छोड़ दिया है। जवाहर लाल नेहरु के बाद इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी के कर्मों पर कांग्रेसी पर्दा डालने में लगे हैं। उससे तो यही लगता है कि कथित गांधी परिवार कांग्रेसियों के लिए जरूरी भी है और मजबूरी में है। जो कांग्रेसी नेता ऐसा नहीं कर पाये, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने में भी गुरेज नहीं किया जाता है। आज गांधी परिवार के साथ खड़े नजर आ रहे शरद पवार इसकी जिंदा मिसाल हैं लेकिन यह बात और है कि आज वह राहुल के साथ खड़े हुए हैं।
अभी कांग्रेस परिवार के सदस्य और सांसद राहुल राहुल गांधी के लंदन में भारत विरोधी दिए गए बयान पर माफी मांगने का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था। अब 4 साल पुराने मानहानि के एक मामले में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को गुजरात की सूरत जिला अदालत ने सजा सुना दी है। यह मामला मोदी सरनेम पर की गई विवादित टिप्पणी का है। दरअसल 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने कर्नाटक के कोलार में एक रैली के दौरान कहा था, ‘नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी का सरनेम एक ही क्यों है? सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है? राहुल की इस टिप्पणी को लेकर भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने शिकायत दर्ज कराई थी। राहुल के खिलाफ आपराधिक मान—हानि का मुकदमा दर्ज हुआ। बीजेपी नेता का कहना था कि राहुल गांधी ने इस टिप्पणी से पूरे मोदी समुदाय को बदनाम किया। सूरत कोर्ट ने पहले राहुल से पूछा कि क्या वह मांफी मांगेंगे तो उन्होंने कह दिया कि यह मामला माफी मांगने का नहीं है। इसके बाद कोर्ट ने राहुल को दोषी करार देते हुए उन्हें दो साल की सजा सुना दी। हालांकि अदालत से उन्हें जमानत भी मिल गई है। अदालत ने राहुल को आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत दोषी करार दिया था लेकिन उनको ऊपरी अदालत में अपील के लिए जमानत भी दे दी गई।
राहुल को सजा सुनाते ही यह भी तय हो गया था कि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इसको बड़ा मुद्दा बनाएगी, उस पर लोकसभा के स्पीकर ने राहुल की लोकसभा की सदस्यता खत्म करके कांग्रेस के गुस्से को और भी बढ़ा दिया है जबकि राहुल को इस मामले को सियासी जामा नहीं पहनाना होता तो राहुल कोर्ट में माफी मांग कर बच सकते थे,जैसा वह पहले कर चुके हैं लेकिन इस बार उन्होंने ऐसा नहीं किया यानी कांग्रेस ने इस फैसले को सियासी मसला बनाने का मन बना लिया है जिसकी तैयारी भी शुरू हो गई है, इसीलिए गुजरात की सूरत कोर्ट द्वारा जब राहुल गांधी को सजा सुनाई जा रही थी, तब ही कांग्रेसी राहुल के पक्ष में बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। राहुल को सजा सुनाए जाने को लेकर प्रियंका वाड्रा सहित पूरी कांग्रेस एक्टिव मूड में आ गई है। राहुल को सजा पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। प्रियंका द्वारा कहा जा रहा है कि वह डरने वाले नहीं हैं। प्रियंका के इस बयान को चोरी और उस पर सीनाजोरी की कहा जाएगा। यानी अदालत के फैसलों पर से भी कांग्रेस का विश्वास उठता जा रहा है जो एक गंभीर मसला है। सबसे खास बात यह है कि राहुल को सजा सुनाए जाने के चलते बीजेपी विरोधी वह नेता भी राहुल गांधी के साथ खड़े नजर आ रहे हैं जो हाल फिलहाल तक राहुल गांधी से दूरी बनाकर रखते थे, इसमें अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव जैसे तमाम नेता शामिल हैं।
खैर, मोदी-राहुल के बीच की रार से किसको फायदा, किसे नुकसान हुआ, इस जंग का बीजेपी ने तो खूब फायदा उठाया लेकिन कांग्रेस को इसके विपरीत परिणाम झेलने पड़े। कांग्रेस इस समय अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। उसके सांसदों की सख्या दहाई में सिमट कर रह गई है। वहीं भारतीय जनता पार्टी पूरे उत्थान पर हैं। सबसे खास बात यह है कि मोदी-राहुल की जंग में इनकी पार्टियां भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ चल रही हैं। दोनों दलों के दिग्गज नेता प्रेस काफ्रेंस और ट्विट के माध्यम से एक-दूसरे पर लगातार आरोप लगाते रहते हैं। याद कीजिए आज जिस तरह से राहुल गाँधी, मोदी और अडाणी के बीच भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे वैसा ही आरोप 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने राफेल विमान खरीद में दलाली भ्रष्टाचार को लेकर मोदी पर लगाया था और ’चौकीदार चोर है’ का नारा दिया था। कांग्रेस ने एक तरह से 2019 का लोकसभा चुनाव राहुल गांधी की अगुवाई में चौकीदार चोर है के नारे पर ही लड़ा था लेकिन उसे चुनाव में मुंह की खानी पड़ी थी। अब अडानी के मामले में आरोप लगाया जा रहा है। इसमें राहुल को कितनी सफलता मिलेगी यह 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों से पता चलेगा। वैसे यहां यह याद दिलाना भी जरूरी है कि राहुल गांधी ने एक बार अपने विश्वास मित्रों के बीच कहा भी था कि मोदी को हराने के लिए उनकी ईमानदार नेता वाली इमेज को तोड़ दिया जाए तो कांग्रेस के लिए किसी भी चुनाव में जीत की राह आसान हो सकती है।
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी दिक्कत है कि वह बीजेपी और मोदी को अपनी ओर से तैयार की गई सियासी पिच पर बैटिंग करने को मजबूर नहीं कर पा रहे हैं। पिछले दो आम चुनावों में बीजेपी ने अपने मनमाफिक पिच तैयार की। चुनावी जंग को मोदी बनाम अन्य के रूप में बदला और इस युद्ध में विजेता बनकर उभरी। दोनों ही बार मोदी बनाम अन्य में पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष का प्रमुख चेहरा राहुल गांधी रहे। 2024 के आम चुनावों में बीजेपी एक बार फिर मोदी बनाम राहुल की पिच पर ही बैटिंग करने की कोशिश में है लेकिन विपक्षी दल बीजेपी की इस कोशिश को समझ रहे हैं।
राहुल गांधी की बात की जाए तो राहुल गांधी के सलाहकार हैं। जिस तरह की सलाहें देकर उनसे जैसे बयान उनसे दिलवा रहे हैं, उससे देश में एक संदेश जरूर जा रहा है कि राहुल परिपक्व राजनेता नहीं हैं। भारत में लोकतंत्र को कुचले जाने का बयान वह ब्रिटेन में दे ही चुके हैं। लगे हाथों वह ब्रिटेन और अमेरिका से भारत में लोकतंत्र का गला घोंटे जाने पर ध्यान देने की बात भी कर चुके हैं। इस पर उठे बवंडर के बीच उनके बड़े से बड़े समर्थक के लिए उनका बचाव कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है। पार्टी के नेताओं की भी किरकिरी हो रही है।
एक तरफ मोदी और राहुल के बीच जुबानी जंग चल रही है तो दूसरी ओर गैर कांग्रेसी दलों के बीजेपी विरोधी नेता इसे बीजेपी की सियासी साजिश बता रहे हैं। इन नेताओं को लगता है कि भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व 2024 के लोकसभा चुनाव को मोदी बनाम राहुल बना करके चुनावी बढ़त बनाने की रणनीति बना रहा है। तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो यहां तक कहती हैं कि राहुल के जरिए बीजेपी, मोदी की टीआरपी बढ़ा रही है। लोकसभा चुनाव अगर मोदी बनाम राहुल के बीच फंस जाता है तो इसका भरपूर फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिलेगी और उसकी सत्ता में पुनः वापसी हो जाएगी, क्योंकि आज की तारीख में मोदी के सामने राहुल गांधी कहीं टिकते नहीं है। राहुल का बड़बोलापन बीजेपी के लिए प्लस प्वाइंट साबित हो रहा है। राहुल गांधी जितना बोलते हैं उतना बीजेपी को फायदा होता है।
बीते दिनों तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की कोलकता में मुलाकात हुई थी। अखिलेश ने अबकी से कोलकता में समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई थी। जहां वह ममता बनर्जी से भी मिले थे और गैरकांग्रेसी-गैरबीजेपी के तीसरा मोर्चा बनान की ममता से चर्चा की थी। इसी दौरान ममता ने राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए कहा था कि अगर राहुल विपक्ष का चेहरा हैं तो फिर कोई भी नरेन्द्र मोदी को खराब नहीं कह पाएगा। उन्होंने यह भी जोड़ा कि राहुल गांधी, मोदी की सबसे बड़ी टीआरपी हैं। इन दिनों जब भाजपा इस बात पर जोर दे रही है कि राहुल गांधी लंदन वाले अपने बयान के लिए माफी मांगे तब कांग्रेस यह बताने में लगी हुई है कि ‘वह सावरकर नहीं हैं।’ सावरकर को कोसना राहुल गांधी का प्रिय शगल है लेकिन इसमें संदेह है कि वह अपने इस शगल से एक परिपक्व नेता के तौर पर अपनी छवि स्थापित करने में समर्थ हो जाएंगे। वास्तव में वह अपनी ऐसी छवि बना ही नहीं पा रहे हैं और इसीलिए वे विपक्ष की ताकत नही बन पा रहे हैं। कांग्रेस के लिए यह कहना मजबूरी हो सकती है कि राहुल भविष्य के नेता हैं लेकिन विपक्ष ऐसा कुछ कहना जरूरी नहीं समझ रहा। भारत जोड़ो यात्रा में राहुल की भागीदारी को लेकर चाहे जितनी प्रशंसा की जाए, इस यात्रा के समाप्त होने के बाद के घटनाक्रम ने उनकी छवि को वैसा ही बना दिया है, जैसी इस यात्रा के पहले थी। अपनी इस छवि के साथ वह कांग्रेस के सर्वाेच्च नेता बने रह सकते हैं लेकिन विपक्ष के नहीं बन सकते। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि एक-एक करके विपक्षी नेता इसी निष्कर्ष पर पहुंचते जा रहे हैं। ममता बनर्जी ने कहीं ना कहीं कांग्रेस को आईना दिखाया लेकिन कांग्रेस यह बात समझने की जगह ममता पर हमलावर हो गई है। बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने ममता पर पलटवार करते हुए यह कह दिया कि प्रधानमंत्री मोदी और उनके बीच राहुल को बदनाम करने के लिए समझौता हुआ है। उनकी मानें तो ममता बनर्जी स्वयं को ईडी और सीबीआइ की कार्रवाई से बचाना चाहती हैं, इसलिए कांग्रेस के खिलाफ हो गई हैं। इस आरोप-प्रत्यारोप से यदि कुछ स्पष्ट है तो यही कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस करीब नहीं आने वालीं। भले ही आज वह राहुल की लोकसभा सदस्यता जाने के मामले में कांग्रेस के साथ खड़ी नजर आ रही हों।
लब्बोलुआब यह है कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस या यूं कहे मोदी और राहुल के बीच इस समय सियासी घमासान छिड़ा हुआ है। इस घमासान की नित्य नई स्क्रिप्ट लिखी जाती है। दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का जो दौर चल रहा है वह वर्षों बाद भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। मोदी-राहुल के बीच कटाक्ष और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला 2014 के लोकसभा चुनाव के कुछ समय बाद शुरू हुआ था और दस वर्षो के बाद 2024 के चुनाव करीब आने तक जारी है। अब तो यह लड़ाई संसद तक में पहुंच चुकी है। राहुल गांधी के विदेश में दिए गए कुछ विवादित बयानों को आधार बनाकर बीजेपी उन पर न केवल हमलावर है, बल्कि राहुल से संसद में माफी की मांग करते हुए सत्ता पक्ष संसद की कार्रवाई भी नहीं चलने दे रहा है, इसके उलट कांग्रेस मोदी-अडाणी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर इसकी जांच के लिए संयुक्त संसदीय कमेटी बनाए जाने को लेकर अड़ी हुई है। यही वजह है 13 मार्च से शुरू हुए बजट सत्र कामकाज बिलकुल ठप्प पड़ा है। इस सत्र में आम बजट पर चर्चा और उसे पारित करवाने समेत कुछ अहम सरकारी काम निपटाने होते हैं। संसदीय इतिहास में संभवता कई ही ऐसे मौके आये होंगे जब विपक्ष नहीं, सत्ता पक्ष सदन नहीं चलने दे रहा है, वह भी एक सांसद से माफी की मांग को लेकर, क्योंकि इस समय कांग्रेस में राहुल गांधी की हैसियत एक सांसद से अधिक कुछ नहीं है। बीजेपी की इस चुनावी रणनीति में राहुल को सूरत कोर्ट से मिली दो साल की सजा का भी तड़का लगना तय है। बीजेपी इसके सहारे राहुल गांधी के खिलाफ लगातार हमलावर रहेगी।बीजेपी, राहुल गांधी को मिली सजा को ओबीसी समाज की विजय बता रही है और कहा जा रहा है राहुल गांधी ने पिछड़ा समाज का अपमान किया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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