गणित की भाषा में…!
बचपन की पाठशाला में….!
गणित के गुरु ने,
हमें सबसे पहले सिखाया,
शायद…गिनती और पहाड़ा….
मित्रों…समाज में अब हम सभी,
अपनी तरक्की की सीढ़ियाँ,
रोज ही गिन रहे हैं,
लोगों को पहाड़ा पढ़ा-पढ़ाकर…..
फिर किसी गुरु ने हमको पढ़ाया
जोड़ और घटाना….
तो किसी ने पढ़ाया,
गुणा और भाग….
गौर कीजिए मित्रों….!
समाज का हर व्यक्ति,
जोड़ने-घटाने मे…या फिर…
परस्पर गुणा-भाग में ही,
अपना जीवन जी रहा है…
संबंध निभाने में हमेशा…!
गुणा-गणित लगाए पड़ा है…
नातेदारी-रिश्तेदारी हो…या हो…
यारी दोस्ती…आज तो…!
सब का आधार है…गुणा-गणित
राजनीति की तो रीढ़ की हड्डी है…
इसी कारण ही वहाँ अखाड़े में…!
रोज-रोज होती….कबड्डी है….
इस कड़ी में वे गुरु धन्य हैं जिनने,
‘चूँकि’ और ‘इसलिए’ पढ़ाया…!
सच बताऊँ मित्रों…
‘अगर-मगर’ और लेकिन’ के बाद
इसे ही अव्वल दर्जा प्राप्त है,
समाज को बनाने और बिगाड़ने में
‘दशमलव’ और ‘प्रतिशत’ का…
पाठ पढ़ाने वाले गुरुदेव को,
शत-शत प्रणाम….नमन….
जिससे समाज की वस्तुस्थिति का
शुद्धता का और पूर्णता का,
पैमाना आज भी कायम है…
अंत में ‘लाभ-हानि’ और ‘ब्याज’,
पढ़ाने वाले गुरु के चरणों में,
शरणागत होकर…..!
मैं आशीष लेना चाहूँगा….
जिसके कारण अपने समाज में…
अर्थव्यवस्था आज भी बहाल है..
…और….चलायमान है….!
मित्रों खुद ही देख लो…
गणित से ही है…जीवन शुरू,
गणित से ही है…जीवन का अंत,
गणित की महिमा है…अनन्त…!
ख्याति इसकी है…दिग-दिगंत..!!
रचनाकार: जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद-कासगंज।