Sunday, April 28, 2024
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देश में तेजी से बढ़ रही आत्महत्या की घटनायें: डॉ. हरिनाथ यादव

  • श्री कृष्णा न्यूरो व मानसिक रोग चिकित्सालय में संगोष्ठी आयोजित

शुभांशू जायसवाल
जौनपुर। नगर के नईगंज स्थित श्री कृष्णा न्यूरो व मानसिक रोग चिकित्सालय में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. हरिनाथ यादव (न्यूरो साइकियाट्रिक) ने कहा कि दुनियाभर में आत्महत्या के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में कई लोग स्ट्रेस और डिप्रेशन जैसी बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में ज्यादातर लोग जिंदगी से हार मानकर मौत को गले लगा लेते हैं। हालांकि सुसाइड के बढ़ते केसेस को रोकने के लिये हर साल 10 सितम्बर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है।

डा. यादव ने बताया कि आजकल लोगों में हताशा और निराशा बढ़ रही है। जब कोई बहुत ज्यादा बुरी मानसिक स्थिति से गुजरता है तो एकदम अवसाद में चला जाता है। इसी अवसाद की वजह से लोग ज्यादातर आत्महत्या कर लेते हैं जिससे उनके परिवार पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। हर साल लगभग 8 लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या कर लेते हैं जबकि इससे भी अधिक संख्या में लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं। यह स्थिति बहुत डराने वाली है। इससे पता चलता है कि वर्तमान में लोगों में कितना ज्यादा मानसिक तनाव है। इस आंकड़े मुताबिक दुनिया भर में 79 फीसदी आत्महत्या विकासशील देशों के लोग करते हैं।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल के बाद में ये आंकड़ा बढ़ा जरूर है लेकिन पहले भी आत्महत्या की दर कोई कम नहीं थी। युवा वर्ग के लोग आत्महत्या जैसे घातक कदम ज्यादा उठाते हैं। इसकी कई वजह होती हैं। जैसे पढ़ाई का प्रेशर, करियर प्रॉब्लम्स और खराब होते रिश्ते भी इसकी एक मुख्य वजह है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक भारत में 2021 में कुल 164033 लोगों ने आत्महत्या की। यानी देश में हर रोज करीब 449 लोगों ने अपने हाथ से अपनी जिंदगी खत्म कर ली। ताजा आंकड़े वर्ष 2020 की तुलना में करीब 7.2 फीसद ज्यादा है। सीधा मतलब यह हैं कि आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी हैं। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2021 में शहरों में आत्महत्या की दर 16.1 फीसद रही है जो पूरे भारत में आत्महत्या की दर 12 फीसद से अधिक थी। सोचिए, बेहतरी की रेस में हम अपनी मानसिक शांति और दिखावे के चक्कर में अपने अपने रिश्ते खोते जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक करीब 33.2 फीसद मामलों में लोगों ने पारिवारिक समस्याओं के चलते अपनी जिंदगी खत्म की तो 18.6 फीसद लोगों ने बीमारी से परेशान होकर ये खौफनाक फैसला लिया। वहीं 4.8 प्रतिशत लोगों ने वैवाहिक समस्याओं के चलते ऐसा कदम उठाया और 4.6 फीसद लोगों ने प्रेम संबंधों को लेकर जान दे दी। करीब दो फीसद लोगों की आत्महत्या करने की वजह बेरोजगारी और एग्जाम में फेल होना रही। 6.4 फीसद लोगों ने ड्रग एडिक्शन के चुंगल में फंसकर अपनी जान गंवाई। 17 साल से कम के बच्चे पढ़ाई के प्रेशर के कारण आत्महत्या का कदम उठा रहे हैं। अभिभावकों से अनुरोध है कि वह बेहतरी के प्रयास में बच्चों पर अनावश्यक दवा ना डालें इससे उनकी मानसिक स्थिति पर बुरा असर पड़ता है।

डा. यादव ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान जैसे नींद न आना, मन का उदास रहना किसी काम में मन न लगना, हीन भावना होना और बार-बार मरने का विचार आना इस प्रकार का लक्षण दिखाई देने पर अति शीघ्र मनोचिकित्सक को दिखाए और उससे बाते करे और उसे अकेला न छोड़े, कभी कभी लोगों को किसी की बातों से उम्मीद की किरण दिखने लगती है। उन्होंने बताया कि सर्वप्रथम अवसाद को स्वीकार करें। यह एक मानसिक बीमारी है और यह मनोचिकित्सक की सलाह, कॉउंसलिंग व दवा लेने से पूरी तरह से ठीक हो जाती है। याद रखना चाहिये कि किसी भी समस्या का अंतिम विकल्प आत्महत्या नहीं होता और अंधेरे समय में भी उम्मीद की किरण हमेशा होती है। इस अवसर पर डॉ. सुशील यादव, लालजी यादव, आशुतोष सिंह, सूरज, अवनीश, विकास एवं मरीज के अभिभावक और अस्पताल के समस्त स्टाफ उपस्थित रहे।

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