जय आत्मेश्वर
आध्यात्मिक यात्रा
जो भी मिला है, अहो भाव माने,
शरीर धर्म की महिमा को जाने।
स्वस्थ शुद्ध और पवित्र रहकर,
शरीर को माता बनकर पालें।।
माता नहीं देती, बच्चे को,
उसके लिए जो, हानिकारक हो।
तन को जो चहिए, पोषण दो,
सिर्फ ओ नहीं, जो चटखारक हो।।
तन की शक्ति, भोजन निर्भर,
भोजन तो उचित, होना चहिए।
मात्रा का चयन, उम्र के साथ हो,
अति स्वाद नहीं, मध्य में रहिए।।
अतिशय उपवास, हानिकारक है,
ठास भोजन भी, रोगकारक है।
भोजन की थाली, कम ही भरो,
सही पाचन संग, स्फूर्ति कारक है।।
समय से भोजन, समय से निद्रा,
समय—समय से हो, विसर्जन तमाम।
मोक्ष का माध्यम, ए शरीर ही है,
इसकी उपेक्षा से, न बने काम।।
आत्म नियंत्रित, होगा स्वस्थ शरीर,
तन में न रहेगी, कोई पीर।
आध्यात्मिक यात्रा, तब ही संभव,
आत्मा का साथ, देगा शरीर।।
आत्मज्ञान पाने का, प्रथम कदम,
अनुशासित रहो, हर पल हर दम।
नियंत्रित नहीं होगा, शरीर तो फिर,
आत्मबोध न होगा, लाखों जनम।।
आत्मिक श्रीधर