आध्यात्मिक यात्रा
जिस क्षण, टूट जाता है अहंकार,
प्रार्थना का उसी क्षण, होता जनम।
सद्गुर की कृपा, तब तक न मिले,
जबतक अहंभाव में, लहरे परचम।।
शरीर में रहते, हों विकार मुक्त,
आत्मा का हुआ, समझो नियंत्रण।
मोक्ष की स्थिति, अब दूर नहीं,
जिस लिए आत्मा ली, जन्म मरण।।
आभामंडल, आध्यात्मिक पहचान,
आत्मिकता का होता, इससे भान।
विचारों के अनुरूप, बदलते रहता,
शरीर के चहुओर, रहे प्रकाशमान।।
आभामंडल, हर एक व्यक्ति का,
होता है बिल्कुल, अलग-अलग।
उंगलियों की छाप,जैसे होती भिन्न,
इसमें आत्मिक, स्थित की झलक।।
ध्यान करने से, आभामंडल निखरे,
धीरे-धीरे हर एक, क्षेत्र सुधरे।
मिल जाए, सहज ही आत्मीयता,
आभामंडल सुरक्षा, कवच बने।।
अर्पण समर्पण, और समरसता,
तीनों मिले, जब हो गुरु कृपा।
आत्मा बनकर, शुद्ध इक्षा करें,
तब ही मिले, गुरू से समरसता।।
समर्पण, सब कुछ देना है नहीं,
समर्पण करिए, सिर्फ मैं का भाव।
पल-पल ही करना, उस स्तर ,
बन जाए ओ, अपना स्वभाव।।
अपने दैनंदिन, कार्यों से,
गुरु को तो जोड़ के देखो जरा।
खोटे सिक्के हो तो भी चल पड़ोगे,
गुरु चरण देगा, ऐसी शक्ति सदा।।
——आत्मिक श्रीधर