Sunday, April 28, 2024
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जलेबी!

जलेबी!

हुस्न-ओ-शबाब से कसी है जलेबी,
गर्म आँच पे खूब तपी है जलेबी।
तुर्को ने लाया भारत में देखो,
लज्जत जिन्दगी की बढ़ाती जलेबी।

व्यंग्य से भरी है इसकी कहानी,
फीकी न पड़ती इसकी जवानी।
खुशबू है अंदर, खुशबू है बाहर,
खुद को मिटाकर चमकी जलेबी।
हुस्न-ओ-शबाब से कसी है जलेबी,
गर्म आँच पे खूब तपी है जलेबी।
तुर्को ने लाया भारत में देखो,
लज्जत जिन्दगी की बढ़ाती जलेबी।

जिन्दगी-जलेबी दोनों में झाँको,
खट्टी-मीठी बातें लोगों में बाँटो।
राष्ट्रीय मिठाई का पाई है तमगा,
हूर के जैसी ये दिखती जलेबी।
हुस्न-ओ-शबाब से कसी है जलेबी,
गर्म आँच पे खूब तपी है जलेबी।
तुर्को ने लाया भारत में देखो,
लज्जत जिन्दगी की बढ़ाती जलेबी।

लड्डू, इमरती से ज्यादा है बिकती,
बर्फी औ पेड़ा से देखो है सस्ती।
गरीबों का आँसू सदा से है पोंछी,
हर उम्र वालों को भाती जलेबी।
हुस्न-ओ-शबाब से कसी है जलेबी,
गर्म आँच पे खूब तपी है जलेबी।
तुर्को ने लाया भारत में देखो,
लज्जत जिन्दगी की बढ़ाती जलेबी।
रामकेश एम. यादव, मुम्बई
(रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक)

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