प्राचीन काल में समाज कबीले रूप में संगठित था। कबीले या जन का प्रशासन कबीले का मुखिया करता था। कबीले के लोग राजा को स्वेच्छा से कर देते थे जिसे बलि कहा जाता था। परिवार, कुल, विषय जन, जनपद, महाजनपद इस तरह से राष्ट्र की अवधारणा धीरे—धीरे विकसित हो रही थी। छठीं शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय एवं जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। यह 16 महाजनपद उत्तर प्रदेश में 8 बिहार में तीन, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश एवं दक्षिण भारत में एक-एक और भारत से बाहर 2 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। उत्तर प्रदेश में काशी राजधानी, वाराणसी कौशल इसकी राजधानी दो थी। उत्तर में श्रावस्ती दक्षिण में साकेत मल्ल राजधानी कुशीनगर (देवरिया) वत्स, राजधानी कौशांबी कुरु राजधानी इंद्रप्रस्थ, पांचाल राजधानी अहिछत्र, शूरसेन राजधानी मथुरा, चेदी राजधानी सूक्तमती, बिहार में तीन, मगध राजधानी राजगीर या राजगृह, अंग राजधानी चंपा, बॉजी राजधानी वैशाली, अवंती (मध्य प्रदेश) राजधानी उज्जैन और महिष्मति, वत्स (राजस्थान) राजधानी बिराटनगर, दक्षिण में अस्मक (आंध्र प्रदेश) राजधानी पोतन या पोतलीस भारत से बाहर, कंबोज राजधानी राजपुर या हाटक, गांधार राजधानी तक्षशिलास जौनपुर, काशी महाजनपद में आता था।
जौनपुर परशुराम के पिता जमदग्नि के नाम पर जमदग्निपुरी था। जौनपुर को देवनागरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां की मुख्य भाषा हिन्दी, अवधी और उर्दू है। जौनपुर 40 गुणे 8 वर्गमीटर में फैला हुआ है। 2011 की जनगणना के अनुसार जौनपुर की आबादी 44 लाख से ऊपर है। जौनपुर प्रदेश में सबसे ज्यादा लिंगानुपात वाला जिला है। 1000 लड़कों पर 1024 लड़कियाँ जन्म लेती हैं। सल्तनत काल में जौनपुर के शासकों ने सुल्तान उशर्कसरवर की उपाधि धारण की जौनपुर शहर की स्थापना तुगलक वंश के शासक फिरोज शाह तुगलक ने अपने भाई जूना खान (मोहम्मद बिन तुगलक) की स्मृति में की थी। फिरोज तुगलक का मकबरा सिपाह चौराहे के बगल स्थित है। तुगलक वंश के शासनकाल में ही नासिरुद्दीन महमूद ने अपने एक सरवर मलिक उस सरवर को मलिक उस शर्की की उपाधि देकर उसे जौनपुर का प्रांतपति बनाया। 1798 में तैमूर के आक्रमण से दिल्ली में फैली अस्थिरता का लाभ उठाकर उसने जौनपुर स्वतंत्र राज्य की स्थापना की और शर्की की उपाधि के कारण ही इसके द्वारा स्थापित राज्य शर्की राजवंश कहलाया।
उल्लेखनीय है कि मलिक सरवर का एक अन्य नाम ख्वाजा जहां भी था। यह नाम नासिरुद्दीन महमूद ने ही दिया था। मलिक सरवर की मृत्यु 1&99 के बाद उसके दत्तक पुत्र मलिक करनफुल ने उसका स्थान तथा मुबारक शाह की उपाधि से जौनपुर साम्राज की गद्दी पर बैठा। मुबारक शाह शर्की बंश का प्रथम शासक था जिसने सुल्तान की उपाधि धारण की और अपने नाम के सिक्के जारी किया तथा खुतबा भी पढ़वाया। इब्राहिम शाह शर्की वंश का महान शासक था जिनके शासनकाल में जौनपुर मुस्लिम विद्या का महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। उसने स्वयं सिराज—ए—हिंद की उपाधि धारण की हुसैन शाह शर्की वंश का अंतिम शासक था। उसके शासनकाल में बहलोल लोदी ने जौनपुर पर आक्रमण करके जौनपुर को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। जौनपुर के कुछ सुल्तान ने संगीत को पर्याप्त संरक्षण प्रदान किया था। उनके काल में संगीतज्ञों एवं कलाकारों को संरक्षण प्राप्त था जिसमें सन 1974-75 में लिखी गई प्रसिद्ध रचना गुन्यात उल गुन्या प्रसिद्ध थी।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण जौनपुर के शर्की सुल्तानों ने करवाया था लेकिन इस पर विवाद है। अटाला मस्जिद शर्की स्थापत्य का सुंदर इमारत है। इसका निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने 1&77 में आरंभ करवाया था जो 1408 में शर्की सुल्तान इब्राहिम शाह शर्की ने पूर्ण करवाया था। अयोध्या की बाबरी मस्जिद जौनपुर सल्तनत की बनावट शैली पर आधारित थी और अटाला मस्जिद को पश्चिम से देखने पर बाबरी मस्जिद सी दिखती है। फैजाबाद से जौनपुर के बीच ऐसी कई मस्जिदें उस जमाने की मिलेंगी जिसमें भीतर जाने के लिए एक छोटा दरवाजा होता था और पीछे के हिस्से से कोई भी रास्ता है नहीं बनवाया जाता था।
शहर के बीचों—बीच बहने वाली गोमती नदी पर बने शाही पुल को मुगल पुल और अकबरी पुल भी कहते हैं। शाही पुल को जौनपुर प्रांत के गवर्नर मुनीम खान ने अकबर के शासनकाल बनवाया था। इसकी डिजाइन अफगानी वास्तुकार अफजल अली ने तैयार की थी। जामा मस्जिद, जामी मस्जिद, जुमा मस्जिद को फिरोजशाह तुगलक ने 15वीं शताब्दी में बनवाया था। अगर जौनपुर के राजा हवेली का जिक्र न करें तो जौनपुर का इतिहास पूरा नहीं होगा। यह हवेली 3 नवंबर 1797 में शिवलाल दत्त दुबे के समय बनी थी। 224 साल पुरानी हवेली को 12वें राजा अवनीद्र दत्त दुबे सजोए हुए हैं। लाल दरवाजा का निर्माण 1447 में सुल्तान महमूद शाह शर्की की बेगम बीबी राजी ने कराया था। शीतला माता मंदिर जिसे चौकिया धाम भी कहते हैं, बहुत ही प्राचीन धाम है। मां शीतला के दर्शन के बगैर विंध्याचल और मैहर देवी का दर्शन नहीं करने जाते। धाम के पीछे बहुत ही सुंदर तालाब है जो पर्यटक स्थल का केंद्र बना हुआ है। चौकियां धाम की हमें कोई लिखित प्रमाण नहीं मिला है लेकिन एक मान्यता के अनुसार यह धाम मौर्य काल की मानी जाती है। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय की नींव 1987 में रखी गई थी। इसका जिक्र किए बिना जौनपुर का इतिहास अधूरा रहेगा। यह विश्वविद्यालय 171 एकड़ भूमि में फैला है।
हरी लाल यादव
सिटी स्टेशन, जौनपुर।
मो.नं. 9452215225