धर्मग्रन्थ ही नहीं, बल्कि मानव जीवन की आचार संहिता है
विवेक सिंह
सिरकोनी, जौनपुर। काशी से पधारे मानस कोविद डा. मदन मोहन मिश्र ने कहा कि श्रीरामचरित मानस केवल धर्मग्रंथ ही नहीं, बल्कि मानव जीवन की आचार संहिता है।
वह शुक्रवार को मशऊदपुर, कबूलपुर में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हम जटायु से सीख सकते हैं कि कैसे जीना चाहिए। कागभुसुंडि से जान सकते हैं कि कैसे जीना चाहिए। भगवान श्री राम केवट से नाव मांगते हैं इंद्र से रथ नहीं मांगते। इसका तात्पर्य है कि बड़ों का अहंकार और छोटों की दीनता जब समाप्त हो जाएगी तभी रामराज्य का प्रारंभ होगा। रावण का राज डर पर जबकि श्री राम का प्रेम पर आधारित है। श्रीराम कहते हैं कि गुरु के चरणों की कृपा से ही मैंने राक्षसों का संहार किया।
उन्होंने कहा कि दशरथ का शासन वशिष्ठ के अनुशासन में, अशोक का शासन बुद्ध के अनुशासन में, चंद्रगुप्त का शासन चाणक्य के अनुशासन में, शिवाजी का शासन समर्थ स्वामी रामदास के अनुशासन में रहा। प्रभु श्री राम ने भक्ति और ज्ञान के वर्णन में कहा कि भक्ति करने वाला कोई भी प्राणी हमको बहुत प्रिय है। सबसे बड़ा सुख सत्संग है व सबसे बड़ा दुख दरिद्रता है। मनुष्य सबसे दुर्लभ शरीर है जिससे भवसागर को पार करके परमात्मा को आसानी से पाया जा सकता है।
इसके पहले नवनिर्मित हनुमान मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के निमित्त विजय शंकर पाठक के आचार्यात्व में विधिविधान से पूजन कार्य संपन्न हुआ। आयोजक इंद्रसेन सिंह चौहान ने आभार जताया। इस अवसर पर योगेश श्रीवास्तव, रोमी श्रीवास्तव, अमर सिंह चौहान, कैरो सिंह चौहान, राजदेव चौहान, अंकित श्रीवास्तव, पिंटू श्रीवास्तव, बैरागी चौहान सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।