Sunday, April 28, 2024
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नशा मुक्ति के लिये पंचकर्म थेरेपी कारगर: प्रो. ओपी

नशा मुक्ति के जनजागरूकता पखवाड़ा कार्यक्रम में हुआ वेबिनार
अजय विश्वकर्मा/विरेन्द्र यादव
सिद्दीकपुर, जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में नव स्थापित नशा मुक्त एवं पुनर्वास केंद्र द्वारा ‘मिशन ड्रग फ्री कैंपस एंड सोसाइटी’ के तहत नशा मुक्ति हेतु मनाए जाने वाले जन जागरूकता पखवाड़ा कार्यक्रम के अंतर्गत शुक्रवार को एक ई-कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसका विषय ‘मादक पदार्थों एवं द्रव्यों के दुष्परिणाम से बचने एवं रोकथाम में परंपरागत चिकित्सा पद्धति (होम्योपैथी एवं आयुर्वेद) की भूमिका’ थी।
कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि व वक्ता काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के आयुर्वेद विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. ओ.पी. सिंह ने कहा कि नशे की मुक्ति संकल्प से होती है। अलग-अलग तरह के नशीले पदार्थों के सेवन और उसके दुष्परिणाम के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस तरह के व्यसन से निजाद पाने में पंचकर्म थेरपी सबसे कारगर है जिसमें विरेचन प्रक्रिया, सात्विक आहार, गौ आधारिक खाद सामग्रियों का प्रयोग शामिल है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के आयुर्वेदिक औषधियों और आयुर्वेदिक इलाज एवं रोकथाम के बारे में जानकारी प्रदान की। कार्यशाला के द्वितीय वक्ता के रूप में नशा से ग्रसित लोगों के उपचार में विभिन्न तरह के होम्योपैथी चिकित्सा विधियों का वर्णन किया तथा अपने अनुभवों को साझा किया।
कार्यशाला के योग सत्र में आर्ट ऑफ लिविंग के योग प्रशिक्षक राजेंद्र प्रताप सिंह ने कुछ नई योग क्रियाओं का अभ्यास कराया जिसमें शीतली प्रणायाम, जो हमारे दिमाग और शरीर को ठंडा रखता, तनाव, चिंता, एवं अवसाद को दूर भगाने में रामवाण की तरह काम करता है। द्वितीय योग आसन के रूप में भस्त्रिका प्राणायाम, जो हमारे तीन दोष (वात, पित्त और कफ) से राहत दिलाने में बहुत फायदेमंद है। इसके अतिरिक्त यह हमारे ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने, हृदय के लिए लाभदायक, वजन घटाने में सहायक, तनाव को कम करने, श्वसन संबंधी समस्याओं से दिलाए राहत आदि में लाभकारी है। तीसरे योग आसन के रूप में उज्जायी सांस (लंबी गहरी सांसे) का अभ्यास कराया, को तनाव को कम करना, मन को वर्तमान में लाने, शरीर में ऊर्जा का संचार करना, क्रोध को नियंत्रित करना, प्राण ऊर्जा को बढ़ाने में कारगर है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. विक्रम देव शर्मा ने कहा कि नशा एक मानसिक रोग है जिससे बचने के लिए हमें योग, होम्योपैथ दवा और आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का इस्तेमाल करना चाहिए। नशे से लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है और इससे बचाव का तरीका अपने परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों पर विश्वास करना है। कार्यशाला का संचालन व्यवहारिक मनोविज्ञान की छात्रा हिदायत फातिमा और धन्यवाद ज्ञापन समन्वयक डॉ. मनोज पाण्डेय ने किया। कार्यशाला में प्रतिभागियों के रूप में डॉ मनोज मिश्र, डॉ जान्हवी श्रीवास्तव, डॉ अवधेश श्रीवास्तव, डॉ धीरेंद्र चौधरी, विवेक, आराधना, रिया, प्रिया, दिव्या, सोनाली, श्रुति, राजेंद्र, सत्य प्रकाश चौहान आदि मौजूद रहे।

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