सियासत
सभी ताजा कभी बासी, कभी सूखी चबाते हैं,
कभी मोटी कभी पतली, कभी तलकर भी खाते हैं।
सियासत में जहां जायज निवाला छीनकर खाना
गरीबों की चिताओं पर, वही रोटी पकाते हैं।।
कभी जिंदा कभी मुर्दा कभी तिल तिल जलाते हैं,
कभी फितरत कभी दंगा कभी गोली चलाते हैं।
सियासत में जहां हो आम, गोटी अपनी फिट करना,
वही बेखौफ मुर्दों का कफन भी बेच आते हैं।।
घोटाले घूस तिकड़म से करोड़ों में कमाते हैं,
वो मज़हब जाति के झगड़े लगा हमको लड़ाते हैं।
डकैती रेप के मुजरिम है जो बीसों मुकदमो में,
पहनकर गांधी चोला मंचों से भाषण पिलाते हैं।।
डा प्रमोद वाचस्पति
“सलिल जौनपुरी”