Sunday, April 28, 2024
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“प्रेरणाओं के इन्द्रधनुष” वास्तव में पठनीय एवं प्रेरणादायक है…

लेखक: डाॅ. दीनदयाल मुरारका
समीक्षा: सुभाष काबरा
डाॅ. दीन दयाल मुरारका द्वारा लिखित एवं संकलित दो सौ प्रेरक कथाओं से लबरेज “प्रेरणाओं के इन्द्रधनुष ” पढ़ने का अवसर मिला। अपने पढ़ने के शौक के तहत ढ़ेर सारा प्रेरक साहित्य आत्मसात कर चुके दीनदयाल मुरारका की एक स्वाभाविक इच्छा हुई कि प्रेरणा के ये मोती जन सागर तक भी पहुंचे। इसी भाव के साथ उन्होंने दो सौ महत्वपूर्ण हस्तियों की ऐसी प्रेरक कथाएं चुनीं जो निराशा, अवसाद या अनिर्णय की स्थिति में पथ प्रदर्शक भी बन सकें और सीधी सरल भाषा में जनमानस के हृदय तक भी पहुंचे, कहना होगा कि ये प्रयास सफल रहा है और पाठक इससे सतत रुप से लाभान्वित हुए हैं और हो रहे हैं।

मनोविज्ञान कहता है कि जब हम महान व्यक्तित्वों के प्रसंग पढ़ते हैं तो महसूस करते हैं कि जीवन अनेकों उतार-चढ़ाव और संभावनाओं से भरा हुआ है। सही समय पर सही मार्गदर्शन मिल जाए तो कठिन डगर भी सरल हो जाती है। इसी एक सूत्र को पकड़कर मुरारका जी ने सरल, सहज और स्वीकार्य भाषा में दो सौ शब्दचित्र उकेरे हैं। सबकी अलग अलग खुश्बू है,अलग अलग महत्व है और रोचकता तो है ही जो पाठकों को बाँधे रखती है।
कथाओं का आकाश बड़ा विस्तृत है तथा समाज का कोई भी हिस्सा इनसे अछूता नहीं है।

इनमें राष्ट्र नायक भी हैं, खिलाड़ी भी, विचारक भी है, उद्योगपति भी, कवि भी हैं, कलाकार भी, इंजीनियर भी हैं, प्रोफेसर भी, वैज्ञानिक भी हैं तो किसान और मजदूर भी। इन सभी के योगदान से ही तो समाज,शहर और राष्ट्र बनता है। प्रेरक प्रसंग तो कहीं से भी प्रेरणा बनकर एक धरोहर की तरह हमारे जीवन में प्रवेश कर सकते हैं।जो कि इस किताब का बहुजन हिताय: बहुजन सुखाय लक्ष्य भी है। आत्मप्रशंसा के इस दौर में ये किताब इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये सबके हित की बात करती है। सबके जीवन में काम आने और जीवन को बेहतर बनाने के संदेश देती है। हम रोज एक या दो प्रसंग भी पढ़ते रहें तो वैचारिक रुप से समृद्ध होते हैं। एक हजार रुपए के लागत वाली इस किताब का मूल्य मात्र पांच सौ रुपया रखा गया है ताकि अधिकतम पाठक इसका लाभ ले सकें।

दीन दयाल मुरारका एक उद्योगपति होने के साथ साथ समाजसेवा के क्षेत्र में भी मुंबई का एक जाना पहचाना नाम है और अपनी संस्था दीनदयाल मुरारका फाउंडेशन के माध्यम से न केवल समाज सेवा के विभिन्न उपक्रमों से जुड़े हुए हैं बल्कि बहुत सारे आयोजनों में विभिन्न संस्थाओं को सक्रिय सहयोग दे कर आयोजन की मुख्य धुरी भी बन जाते हैं। किताब आने के बाद से हुए कुछ आयोजनों के बाद पाठकों से बात करने पर सभी की सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिली और ये निर्णय भी हुआ कि जनहितकारी समाज सेवी संस्थाओं को यह किताब निशुल्क भिजवाने की व्यवस्था भी दीनदयाल मुरारका फाउंडेशन करेगा, ताकि अधिक से अधिक पाठक लाभान्वित हों।आज के दौर में ऐसी प्रेरक और पठनीय किताब का आना अत्यंत शुभ है। विभिन्न वर्गों द्वारा इसका स्वागत हो रहा है तथा प्रतिसाद को देखते हुए दूसरा संस्करण भी जल्दी ही आ रहा है। विश्वास है कि प्रेरणाओं के इन्द्रधनुष के सभी रंग, पाठकों, समीक्षकों एवम आलोचकों के स्नेह के भागी बनेंगे।

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