चन्दन अग्रहरि
शाहगंज, जौनपुर। इस्लाम धर्म में रमज़ान माह एक पवित्र माह है जिसमें अल्लाह की रहमतें, बरकतें और उसके बंदों की हर मुरादें पूरी होती हैं। उक्त बातें ज़ेडएमएम फाउंडेशन के प्रदेश अध्यक्ष ज़ीशान अहमद खान ने कही।
उन्होंने कहा कि रमज़ान माह में रोजे रखने का मतलब सिर्फ भूखा रहना ही नहीं होता, बल्कि इस दौरान नफ्ज (इन्द्रियों) पर नियंत्रण रखने की सलाह भी दी जाती है। ऐसे में अगर किसी को कोई ऐसी लत है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तो रमजान के महीने में वो आसानी से छूट सकती है।
उन्होंने कहा कि रोजा रखने से पित्त और लीवर की बीमारी दूर होती है। ऐसा वैज्ञानिक शोधों से भी प्रमाणित हो चुका है। ज़ीशान अहमद खान का कहना है कि चाहे हिंदू धर्म हो या इस्लाम सबमें ऐसे पर्व-त्योहार हैं जिनके वैज्ञानिक पक्ष भी हैं। प्राचीन काल में पहा़ड़ों की गुफाओं और कंदराओं में फकीर और संत तपस्या करते थे।
रमज़ान माह में एक रात शबे कद्र है जो हजार महीनों से बेहतर है। रमजान में इब्लीस और दूसरे शैतानों को जंजीरों में जकड़ दिया जाता है (जो लोग इसके बावजूद भी जो गुनाह करते हैं वह नफ्से अमारा की वजह से करते हैं) रमजान में नफिल का सवाब फर्ज के बराबर और फर्ज का सवाब 70 गुना मिलता है।