आध्यात्मिक यात्रा
मै सनातनी, हमारे पुरखों ने,
देखा वसुधैव कुटुंब सपना।
अबतक ओ, पूरा नहीं हुआ,
हम लड़ रहे, श्रेष्ठ भगवान अपना।।
उपासना पद्धति, थोप करके भी,
विश्व में शान्ति, नहीं आसकती।
धर्म परिवर्तन है, कपड़ा बदलना,
इससे सद्भावना, नहीं आसकती।।
परमात्मा का कोई, ऐसा रूप नहीं,
जिसको माने, सारे जग में सभी।
नहीं ऐसा धरम, उपासना पद्धति,
विश्व बंधुत्व रह गया, सपना ही।।
धर्म तो एक ही है, मानव धर्म,
पुजा पद्धति, बदलना है भरमा।
धर्म परिवर्तन से, नहीं बात बने,
विश्व बन्धुत्व भाव, न लेगा जनम।।
आपका लिंग, जाति भाषा धरम,
और देश भी हो, चाहे अलग अलग।
परमात्मा सबमें, समान बैठा,
आत्मा के रूप है, उसकी झलक।।
आत्मिक श्रीधर