शुद्धीकरण के सूत्र
क्षमा प्रार्थना का यह तात्पर्य नहीं है,
कि हम गलत हैं और दूसरा सही है,
हम रिश्ते का ह्रदय से सम्मान करते हैं,
सही मायने में किसी का मान करते हैं।
सारे जहाँ में हम किसी से कम नहीं,
हमें भी नैसर्गिक प्रकृति की चाहत है,
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा,
हम बुलबुलें इसकी ये गुलिस्ताँ हमारा॥
ज्ञान कहीं से आता नहीं, वह है हमारे
आस-पास, हमारे जीवन अनुभवों में;
बस उसे जानने में, समझने में ही वह,
निहित है पाने की इच्छा शक्ति में।
शरीर स्नान व योग से शुद्ध होता है,
श्वसन तंत्र प्राणायाम से शुद्ध होता है,
मस्तिष्क ध्यान करने से शुद्ध होता है,
बौद्धिक स्तर अध्यात्म से शुद्ध होता है।
याददाश्त मनन, चिंतन से, अहंकार
सेवा से,मौन से स्वयं की शुद्धि होती है,
भोजन तभी शुद्ध बनता है जब पकाते
वक़्त सकारात्मक सोच बनी रहती है।
दान पुण्य से धनधान्य शुद्ध होता है,
भावना प्रेमसमर्पण से शुद्ध होती हैं,
आदित्य इस सकारात्मकता से चारों
ओर निरंतर अच्छाइयाँ बिखरती हैं।
कर्नल
आदि शंकर मिश्र
लखनऊ