Monday, April 29, 2024
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तम्बाकू एक ”मीठा जहर“ है

धूम्रपान की लत के बढ़ने से देश में फेफड़ों (लंग्स) के कैंसर के रोगियों में तेजी से वृद्धि हो रही है। देश में तम्बाकू के सेवन से हर वर्ष विभिन्न रोगों से चार लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है विभिन्न रूपों में तम्बाकू चबाने से सबसे ज्यादा मुॅह व गले का कैंसर होता है। मुख्यतया फेफड़ों में दो प्राकर के कैंसर होते है। पहला, प्राइमरी जिसकी शुरूआत फेफड़ों से होती है और दूसरा, सेकेण्डरी जो शरीर के किसी अन्य भाग में विकसित होने के बाद फेफड़ों को प्रभावित करता है।
लक्षण- खांसी का लगातार बने रहना। सांस फूलना व छाती में दर्द होना। खांसी में खून आना और हल्का बुखार रहना। वजन में लगातार कमी होना। कभी-कभी मरीज में लक्षणों के बिना या बहुत कम लक्षणों के साथ इस रोग की शुरूआत हो सकती है। रोग का पता देर से चलने पर मरीज के गले में गांठें निकलना या फेफड़े में पानी आना या मिर्गी की तरह के अन्य लक्षण भी प्रकट हो सकते है।
संबंधित जांचें- फेफड़े के कैंसर की जांच हेतु चिकित्सक सर्वप्रथम फेफड़े का एक्स रे लेते है और इसके बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि अमुक मरीज का सी0टी0 स्कैन, ब्रॉकोस्कोपी या थोरैकोस्कोपी द्वारा जांच के लिये बायोप्सी ली जाये। ऐसी सोच एक भ्रान्ति है कि फेफड़े के कैंसर में बायोप्सी या एफ.एन.ए.सी. जांच करने से बिमारी बढ़ जाती है। मरीज के तीमारदारों को बायोप्सी करने से मना नहीं करना चाहिये, क्योंकि इसके बिना इलाज सम्भव नहीं है।
बचाव- फेफड़े के कैंसर का मुख्य कारण धूम्रपान है। यदि कोई व्यक्ति तम्बाकू का इस्तेमाल किसी भी रूप में नहीं करता है तो उसे फेफड़े का कैंसर होने की सम्भावना न्यूनतम होती है। केवल धूम्रपान ही नही, बल्कि साथ में रहने वाले लोगों के धूम्रपान से भी उतना ही खतरा रहता है जितना स्वयं धूम्रपान करने से होता है।
इलाज- फेफडे़ का कैंसर अब लाइलाज नहीं है लेकिन इस बात पर निर्भर करता है कि बिमारी का पता किस अवस्था में चला है। अगर शुरूआती दौर में इस मर्ज का पता चल जाय तो इसका उपचार सम्भव है। इस मर्ज मे तीन प्रकार की पद्धतियों से इलाज किया जा सकता है- 1- सल्य चिकित्सा, 2- माडीफाइड कीमोथेरैपी, 3- रेडियोथेरैपी द्वारा फेफड़े के कैंसर का इलाज किया जाता है।
इस प्रकार तम्बाकू सेवन व धूम्रपान से विश्व भर में हर साल करीब 30 लाख लोग मरते है जबकि हमारे देश में तम्बाकू के सेवन से हर वर्ष विभिन्न रोगों से लगभग 4 लाख लोगों की मौत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार अगर तम्बाकू की खपत इसी तरह जारी रही तो सन् 2025 तक तम्बाकू खाने या पीने के कारण होने वाली बीमारियों से विश्व में हर साल 1 करोड़ लोग मौत के मुंह में चले जायेंगे और इनमें से 70 लाख लोग विकासशील देशों के होंगे। तम्बाकू सेवन और धूम्रपान का यह सिलसिला आने वाले समय में विश्व की आबादी के 8 प्रतिशत से भी अधिक लोगो को मौत की नींद सुला देगा।
तम्बाकू या तम्बाकूयुक्त पदार्थों में 32 से भी अधिक विषाक्त पाये जाते हैं जिनमें अमोनिया, रेडियम, आर्सेनिक, कार्बन डाईआक्साईड, हाइड्रोसाइनिक एसिड, कार्बन मोनोक्साइड और फिनाल के अलावा निकोटीन, टार भी शामिल है। अकेला निकोटीन ही इतना खतरनाक है कि 2 बूंद से कुत्ता और 8 बूंद से घोड़ा मर सकता है और इसकी 40 मिलीग्राम मात्रा ही मनुष्य के लिये घातक हो सकती है।
विश्व भर में तम्बाकू सेवन से प्रति वर्ष होने वाली मौतों में से एक तिहाई लोग विकासशील देशों के होते है। तम्बाकू सेवन की अगर यही स्थिति रही तो अगले 25 वर्षों में पूरे विश्व में होने वाली मौतों में आधे से अधिक विकासशील देशों में होगी। विश्व में तम्बाकू सेवन से होने वाली प्रति 100 मौतों में से विकसित देशों की संख्या 20 है। देश में तम्बाकू सेवन से होने वाले दुष्परिणामों की ढेरों चेतावनियां देने के बाद भी आज 12 लाख लोग हर साल तम्बाकू के शिकार होकर मर जाते है। 65 साल से कम उम्र के लोगों में 40 प्रतिशत कैंसर, 75 प्रतिशत दमा और 25 प्रतिशत हार्ट अटैक से हुई मौतें धूम्रपान के कारण होती है।
ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग 33 करोड़ लोग तम्बाकू का सेवन करते है और रोजाना 55 करोड़ व हर साल 20 हजार करोड़ सिगरेटों की बिक्री केवल भारत में होती है। भारत में पुरूषों में आधे से अधिक और महिलाओं में एक चौथाई कैंसर का कारण सिर्फ तम्बाकू है। इसके प्रयोग से हृदय रोग, ब्रोकाइटिस व क्षय रोग होने की सम्भावना अधिक होती है। विभिन्न रूपों में तम्बाकू चबाने से सबसे ज्यादा मुंह व गले का कैंसर होता है। तम्बाकू मिश्रित मंजन भी बहुत नूकसानदेह है तम्बाकू के सेवन से नुकसान के शुरूआत मुंह में सफेद दाग-धब्बे से होती है। मुंह में न ठीक होने वाला छाला हो जाता है। मुंह सिकुड़ता जाता है जिसे ओरल फाइब्रोसिस कहते है।
तम्बाकू से मुंह के अन्दर कई प्रकार के घाव बन जाते हैं जैसे- 1- रूब्राप्लेकिया जो मुंह के अन्दर लाल, भूरे व नीले दाग होते हैं। 2- ल्यूकोप्लेकिया जो मुंह के अन्दर सफेद दाग हो जाता है। धूम्रपान या तम्बाकू के लत से छूटकारा पाना मुश्किल तो जरूर है लेकिन असंभव नहीं धूम्रपान छोड़ने का निश्चय करने वाले लोग चाय-काफी का सेवन कम करें क्योकि इसमें कैफीन नामक ऐसा तत्व होता है जो सिगरेट या तम्बाकू की लत को बढ़ाता है।
अतः तम्बाकू से परहेज ही पहला इलाज है, इसलिये अपने मनोबल से तम्बाकू की लत छोड़ दें। वैसे निकोटीन की लत को छुड़ाने वाली च्यूइंगम व अन्य दवायें भी उपलब्ध हो चूकी है जिनका सेवन डाक्टर के परामर्श से करें। इसी तरह नशा मुक्त केन्द्र की मदद भी ली जा सकती है। कैंसर होने पर उसका विशेषज्ञ चिकित्सक से इलाज कराकर सुखमय जीवन व्यतीत करें।
नशा नहीं, खुशी अपनाइये।
रामसेवक सिंह यादव
क्षेत्रीय मद्य निषेध एवं समाजोत्थान अधिकारी
वाराणसी क्षेत्र।

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