तुलसी जीवन वृत्त
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(मानस माहात्म्य भाग-09)
बानी प्रेम रस सानी प्रीति प्रभु मनु देखि
सर्वव्यापी भक्त हित हरि जू प्रगट भये।
कंज नील नीलमणि नीलमेघ नीर श्याम
रूप कमनीय कोटि मदन लजा गये।।
सरद मयंक ज्योति छबि मुख हरि जू की
ललित कपोल कांति कण्ठ शंख द्युति लये।
अधर अरून नव नलिन विलोचन सो
बंक चितवनि जासु तीहूं लोक बस भये।।
कुंडल शोभित ताज शिरोमणि शुभ्र ललाटहुं चन्दन सोहै।
कुंचित केश कलाप शिलीमुख कांति चराचर को मन मोहै।
बाहु बिभूषन शोभित भूषन पाणि सरासन सायक सो है।
दाड़िम लाजत अम्बर पीत मनोहरता कवि वरनै को है।।
बसहिं दिवस निशि मुनि मन मधुप सो
प्रभु पद कमल बरनि नहिं जात है।
बाम भाग सोभै सुख पालन सृजन हेतु
सिया जी रचति जग भृकुटि विलास हैं।
छबि सिंधु हरि जू की लोकरीति सुख परे
एकटक निरखत मनु सतरूप हैं।।
देह सुधि नाहिं रूप छबि में विभोर दोउ
पद गहि प्रभु दोउ भूमि परि जात हैं।।
सिर परसि निज कर कंज करुनापुंज प्रभु निरखत भये।
उर प्रीति देखत दम्पतिहिं गहि भेंटि प्रभु गदगद हिये।
सुखधाम मायातीत कारन भगत हित दर्शन दिये।
अति हरषि प्रभु तब कहेउ मांगहु जानु मोहिं दानी धिये।।
प्रीति अलौकिक देखि प्रभु हरषेउ वाम समेत।
सब पूरन मम काज अब दर्शन कृपा निकेत।।
रचनाकार—— डाॅ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार