अजय पाण्डेय
जौनपुर। भावों की आरती और आंसू का चंदन है, मां के सगुण सपूत, तुम्हारी स्मृति का वंदन है। तुम आये तो तुमको पाकर पिता पुनीत हुए थे। माता के वत्सल अंचल के तुम नव गीत हुए थे। ऐसा लगा रामसूरत सिंह का गृह नंदन है। मां के सगुण सपूत, तुम्हारी स्मृति का वंदन है। अमर शहीद पूर्व मंत्री स्व. उमानाथ सिंह पर लिखी गयी साहित्य वाचस्पति डॉ. श्रीपाल सिंह क्षेम की यह कविता आज भी प्रासंगिक है। देवदुर्लभ सुंदर देहयष्टि, गौरवर्ण, घनी काली मूँछों के भीतर सदैव मुस्काराता चेहरा, सहज श्वेत कुर्ता-धोती का परिधान, अपने ओलंदगंज के निवास के बरामदे में चौकी पर बैठे उमानाथ, सहयोगियों-समर्थकों की भीड़ से घिरे रहते थे।
उमानाथ सिंह की चौखट आम आदमी के लिये सहज चौखट बन गयी थी जहां गरीब, दुखी आसानी से अपनी फरियाद सुनाने पहुंच जाता था और बाहरी बरामदें में चौकी पर बैठे ठा. उमानाथ सबका हालचाल पूछते और उनकी सहायता करते रहे। घर के अच्छे भले समृद्ध व्यक्ति और शहर में भी कई निजी मकानों के मालिक पर इसका घमंड उन्हें छूकर भी नहीं था। यह गोमती तट वाला मकान उनका निजी मकान है। वे सज्जनता की मूर्ति, सरलता के अवतार और सबके लिए सहज और सुलभ थे। बताते चलें कि स्व. सिंह के गुजरे हुए 29 वर्ष हो चुके हैं लेकिन आज भी उनकी प्रेरणा परिवार वालों व अन्य लोगों को मिलती रहती है।
त्याग, परोपकार, समर्पण, शालीनता, सादगी, विनम्रता, धैर्य सब कुछ उनके व्यक्तित्व में समाहित था। उनका मानना था कि सत्य की डगर कठिन होती है लेकिन अंतिम में परिणाम सत्य के पक्ष में ही जाता है। वह एक महान समाजसेवी थे। राजनीतिक क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान थी। वह गरीबों व असहायों के हितों के लिये आजीवन संघर्ष करते रहे। यहीं कारण है कि उनके गुजरे 29 वर्ष हो चुके हैं लेकिन उनकी यादें आज भी लोगों के जेहन में है। उनके व्यक्तित्व व कृतित्व से सीख लेने की जरूरत है। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से प्रभावित होकर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बीते वर्ष 24वीं पुण्यतिथि के मौके पर भाषण के दौरान उन्होंने जिले की एकमात्र मेडिकल कालेज का नाम उमानाथ सिंह के नाम करने की घोषणा की थी।
हालांकि मेडिकल कॉलेज लगभग बनकर तैयार हो गया है और उसमें ओपीडी भी शुरू हो गया है, जिसकी चर्चा चारों तरफ हो रही है। उनके अनुज स्वर्गीय अशोक सिंह भी अपने बड़े भाई उमानाथ सिंह के नाम से शिक्षण संस्थानों को स्थापित किये, वह भी अपने आप में एक मिसाल है। ठाकुर अशोक सिंह के भातृत्व प्रेम से समाज के अन्य लोगों को सीख लेने की जरुरत है।
स्व. उमानाथ सिंह ने अपने परिवार में जो संस्कार का बीज बोया वह आज भी विद्यमान है। उनका संस्कार ही उनके परिवार की धरोहर है। उसी संस्कार के रास्ते पर चलकर पुत्र व भतीजे समाजसेवा में लगे हुए हैं। वर्तमान में स्वर्गीय अशोक सिंह के पुत्र तिलकधारी महाविद्यालय के प्रबंधक राघवेंद्र प्रताप सिंह व स्वर्गीय उमानाथ सिंह के पुत्र पूर्व सांसद कृष्ण प्रताप सिंह उनके अधूरे कार्यों को पूर्ण करने में लगे हुए हैं और गरीबों व असहाय लोगों की सेवा कर रहे हैं।