अनायास ही मौन है……!
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ईंट भट्ठे से निकलीं,
तीन तरह की ईंटे….
झाँवा, पकी और दोयम (कच्ची)
आपस में लड़ रही थीं….
अपने-अपने गुणगान कर रही थीं
झंवाँ ईंटों ने सपना देखा….
कुछ समंदर में पुल बनाने की,
धर्म ग्रंथों में अपने को सँजोने की,
फिर… मर्यादा पुरुषोत्तम के…
काम आने की… और…खुद के…
भविष्य में धाम बन जाने की…
साथ ही … समय के साथ….
किंवदंती बन जाने की…
और तो और… विज्ञान के लिए…
कुतूहल और चुनौती बन जाने की
वहीं पकी ईंटों ने….!
करी हल्ला बोल बातें…
मजबूत महल-किला बनाने की,
राजा-रानी का दरबार सजाने की,
कहीं कोई भव्य मंदिर बनाने की,
वहीं भजन संगीत गुनगुनाने की,
मनुष्य का जीवन सभ्य बनाने की
घर-मकाँ का हिस्सा बन… उसको,
जीवन जीने की कला सिखाने की
और…दीवारों के बीच….!
परिवार में उत्सव खूब मनाने की
तभी धीमे से….!
दोयम और कच्ची ईंट बोली…
सुनो भाई…. मुझे तो….!
गली-सड़क-खड़ंजा बनना है
लोगों के पैरों तले दबकर…
कंकड़ और फिर माटी बनना है
ना मंदिर-महल-किले में जाऊँगी,
ना कोई घर-मकान मैं बनाऊँगी,
ना ही किसी पुल में मैं समाऊँगी,
कंकड़ में टूटकर…. बच्चों के…
आम तोड़ने के काम आऊँगी,
जल्दी ही टूटकर..! पिसकर…!
मिट्टी में मिल जाऊँगी…
और कहीं… भगवत कृपा हुई तो..
चौरासी लाख योनियों में से…
एक का चक्र पूरा कर…
मानुष बन…! इसी धरती पर…!
पुनर्जन्म लेकर मैं आऊँगी….
पुनर्जन्म लेकर मैं आऊँगी….
* * * * * *
मित्रों इन अभिलाषाओं में….!
सही कौन है….?
यह मैं आप पर छोड़ता हूँ…
क्योंकि… इस बिंदु पर…
कुछ भी सोच पाने में,
मैं और मेरी लेखनी,
अनायास ही मौन है….!
अनायास ही मौन है….!
रचनाकार—— जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद-कासगंज