Monday, April 29, 2024
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बेमौसम बारिश और किसान

बेमौसम बारिश और किसान
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नभ के मुसाफिर ना आओ इधर,
पक खड़ी खेत में है फसल अबकी बार।
खाद पानी दिया साल भर है जिसे,
घर में लाने को उसको हम हैं बेकरार।

पक के सरसों मटर की हैं फलियॉं दिखे,
पक के अरहर खड़ी है फसल शानदार।
गेहूँ अलसी, चना और मसूर पके,
और सपने सजे हैं सुघर अबकी बार।

घर जो आएगा खेतों से अन्न मेरे,
पढ़ने जाएगा पिंकू शहर अबकी बार।
साहूकारों के पैसे चुका देंगे हम,
बैंक का न रहेगा कर्ज़ अबकी बार।

ओले लिए यदि बरस जाओगे,
होंगे सपने हमारे सपन अबकी बार।
साल भर की है पूजी जो अंबर तले,
बेमौसम ना बरसो इधर अबकी बार।

फूट जाएंगी फलियॉं खड़ी फसलों की,
तो बरसेगा मानो कहर अबकी बार।
मिट ना पाएगा कर्जा जो लिए थे उधर,
गिरवी रखने पड़ेगे कि घर अबकी बार।

इसलिए हे जलद तुम ना आना इधर,
गगन में ही जाओ ठहर अबकी बार।
दो हफ्ते या बारिश में जब आओगे,
तब खुशियों की फैले लहर अबकी बार।।

रचनाकार- सर्वेश कांत वर्मा ‘सरल’
शिक्षक रामरती इण्टर कॉलेज
द्वारिकागंज, सुलतानपुर।

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