Monday, April 29, 2024
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‘जय भीम’ का नारा किसने दिया?

बाबू हरदास लक्ष्मण नगरकर का जन्म 6 जनवरी 1904 और मृत्यु 12 जनवरी 1939 को हुई है।
आम्बेडकर से भावनात्मक संबंध रखने वाले लोग एक दूसरे से मिलते ‘जय भीम” कहते हैं। जय भीम अभिवादन का शब्द नहीं है, बल्कि आज यह आंबेडकर आंदोलन का नारा बन गया है। अंबेडकर आंदोलन के कार्यकर्ता इस शब्द को आंदोलन की संजीवनी कहते हैं। यह सम्मान का शब्द कैसे बना, इस शब्द का सफर भी दिलचस्प है। यह नारा कैसे उत्पन्न हुआ और कैसे पूरे भारत में फैल गया? भीमराव आंबेडकर की विजय हो’ बाबा साहेब आंबेडकर का मूल नाम भीमराव रामजी आंबेडकर था। जय भीम का नारा सबसे पहले आंबेडकर आंदोलन के कार्यकर्ता सेंट्रल प्रिवेंस बरार परिषद के विधायक महार समुदाय के बाबू हरदास एल एन (लक्ष्मण नगरकर) ने 6 जनवरी 1935 में दिए थे।’ बाबू हरदास बाबा साहेब आंबेडकर आंदोलन के विचारों को पालन करने वाले एक प्रतिबद्ध कार्यकर्ता एवं’ महारटठा’ के संपादक थे। बाबू हरदास ने महार समाज: की स्थापना महिला सशक्तिकरण की महत्ता को जानते थे। उन्होंने महिलाओं के लिए शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक व शुद्धीकरण के लिए एक महिला आश्रम की स्थापना की’ बाबू हरदास एल एन (लक्ष्मण नगरकर) ने ‘महात्मय’ नामक पुस्तक लिखी। यह वह वक्त था जब अछूतों को मंदिरों में प्रवेश नहीं दिया जाता था तो बाबू हरदास धार्मिक आस्था, उपासना के पूर्ति के लिए अलग से मंदिर बनवाए व कुआं का निर्माण कराये।
सन् 1928 में बाबू हरदास पहली बार डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर से मिले जब ‘तरुण महार संघ’ ने एक अधिवेशन का आयोजन किया था। इस अधिवेशन में कमाटी में बाबा साहेब आंबेडकर का सत्कार का आयोजन किया गया। इसकी सारी जिम्मेदारी बाबू हरदास एल एन (लक्ष्मण नगरकर) ने उठाई अछूते में विद्या विभूति बाबा साहब डा. आंबेडकर को देखने के लिए लाखों लोग आये। इसी समय मध्य प्रदेश ‘बीडी महासंघ’ की स्थापना बाबू हरदास लक्ष्मी नगरकर ने की” सेवानिवृत्त न्यायाधीश और विदर्भ में दलित आंदोलन के विद्वान सुरेश घोरपड़े बताते हैं कि बाबू हरदास किशोरावस्था से ही सामाजिक कार्यों में रुचि रखते थे। उन्हें जय भीम के प्रवर्तक के नाम से जाना जाता है। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में छात्रों को आवास प्रदान किया।
बाबू हरदास मेहनत मजदूरी करने वाले छात्रों के लिए रात्रिकालीन स्कूल शुरू किए सुरेश घोरपडे आगे कहते हैं कि लक्ष्मण नगरकर ‘मढ़वे महात्मय’ नामक पुस्तक एवं वीर बालक नाटक अछूतों के लिए अलग से मंदिर और कुओं का निर्माण कराये। सन् 1931 में इंग्लैंड में होने वाले गोलमेज सम्मेलन मे एक सवाल खड़ा हुआ कि अछूतों के असली प्रतिनिधित्व कौन तब बाबू हरदास लक्ष्मण नगरकर ने गांव—गांव घूमे और लोगों को समझाया। इस बात के लिए प्रेरित किया कि इंग्लैंड के प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड को टेलीग्राफ भेजें और बाबा साहब अंबेडकर को अपना प्रतिनिधि बतायें। इस कैंपेन में कमाटी परिषद से 32 टेलीग्राम लंदन भेजे गये।
इस कार्य के लिए बाबू हरदास से डा. आंबेडकर बहुत प्रभावित हुए सन् l1933 में वर्धा (महाराष्ट्र) से बाबू हरदास ने डॉ आंबेडक के जन्मदिन मनाने की शुरुआत’ संतरा मार्केट’ नागपुर से बाबू हरदास ने शुरुआत की। 6 जनवरी 1935 से समता दल के सैनिक जय भीम का उच्चारण करने लगे” लेखक नरेंद्र जाधव बताते हैं’ कि बाबा साहेब का पूरा नाम भीमराव रामजी आंबेडकर था। उनके नाम को संक्षिप्त रूप मे जपने के प्रथा शुरू में महाराष्ट्र में आम थी और धीरे-धीरे पूरे भारत में जय भीम कहा जाने लगा। रामचंद्र छीर सागर की पुस्तक “दलित मूवमेंट इन इंडिया एंड इट्स लीडर’ में दर्द है। जय भीम का नारा सबसे पहले बाबू हरदास लक्ष्मण नगरकर ने दिया था। जय भीम का नारा कैसे अस्तित्व में आया, इस सवाल के जवाब में “दलित पैंथर” के सह संपादक जीपी पवार कहते हैं।
बाबू हरदास ने कमाटी और नागपुर क्षेत्र से कार्यकर्ताओं के संगठन बनाया। उन्होंने इस दल के स्वयंसेवकों को नमस्कार राम-राम “जोहार मायाबाप” की जगह जय भीम कहकर एक दूसरे का अभिनंदन करने और जवाब देने के लिए कहा था और उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि जय भीम के जवाब में बाल भीग कहा जाना चाहिए। जैसे मुसलमान सलाम वालेकुम के जवाब देते समय वालेकुम सलाम कहते हैं। पवार ने राजा ढाले नामदेव धसाल के साथ काम किया है और दलित पैंथर पर उनकी किताब भी प्रकाशित हुई है। आंबेडकर के जीवन काल में जय भीम का अभिवादन शुरू हुआ। नरेंद्र जाधव बताते हैं डा. अंबेडकर का पूरा नाम डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर था। उनके नाम को संक्षिप्त रूप से जपने की प्रथा महाराष्ट्र में में आम थी। धीरे-धीरे यह पूरे भारत में जय भीम कहा जाने लगा। डा. नरेंद्र जाधव ने ‘आंबेडकर इंडिया सोशल अवेकनीक कानसेंसीयस’ नामक किताब लिखी। इस किताब को आंबेडकर का वैचारिक चरित्र कहा जाता है।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक उत्तम कामले कहते हैं कि जय भीम सिर्फ अभिवादन नहीं, बल्कि एक समग्र पहचान बन गया है। पहचान के विभिन्न स्तर है। जय भीम संघर्ष का प्रतीक बना यह एक सांस्कृतिक एक राजनीतिक पहचान बन गया है। साथ ही जय भीम आंदोलन का भी प्रतीक बन गया है। वरिष्ठ पत्रकार मधु कामले को जय भीम शब्द अंबेडकर आंदोलन में तत्परता का प्रतीक लगता है। जय भीम कहना सिर्फ नमस्कार नमस्ते की तरह नहीं है। यह आसान नहीं है, बल्कि इसका मतलब है। यह अंबेडकरवादी आंदोलन के करीब है। यह शब्द बताता है जहां भी लड़ने की जरूरत होगी, लड़ने के लिए तैयार हूं। जय भीम का नारा हिंदी भाषी राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार में आसानी से सुना जा सकता है। आंबेडकर के विचार पंजाब में भी फैले हुए हैं। उत्तर प्रदेश में युवा दलित नेता चंद्रशेखर आजाद रावण ने अपने संगठन का नाम’ जय भीम आर्मी’ रखा है। जब दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून यानी सी.ए.ए. के खिलाफ प्रदर्शन हुआ तो मुस्लिम समुदाय के प्रदर्शनकारियों ने डॉ भीमराव आंबेडकर की तस्वीरें लहराई यह संकेत है कि जय भीम का नारा किसी एक समुदाय और भौगोलिक सीमाओं तक सीमित नहीं है।
हरी लाल यादव
सिटी स्टेशन, जौनपुर
मो.नं. 9452215225

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