टोपी क्यों उछाल देते हैं?
मन में कुछ बचपना जागा…..
बाजार से मैंने खरीद ली…टोपी..
और शाम में….अकेले ही…
कुर्ता-धोती पर टोपी डाल…
एक महफिल में जो हुआ शामिल
मुझे देखते ही….!
टकला होगा,
चाँद छुपा रहा है,
सफेद बालों पर पर्दा डाल रखा है,
बुढ़ापे में पगला गया है….
इस तरह की टिप्पणी देने लगे,
कुछ काबिल लोग…….!
इन कटूक्तियों से मैं हैरान था,
और औपचारिकता निभाकर,
महफ़िल से निकल जाने को
तैयार था….कि…उसी समय…
दोस्तों की आई टोली….!
शुरू की उन्होंने हँसी-ठिठोली,
टोपी मेरे माथे से उठा ली…
इसी बहाने….मेरी ख़बर ली…
मित्रों…ना मेरा दिख रहा चाँद था,
ना ही कहीं से मैदान साफ था…
ना बालों की हुई डाई थी,
ना दिख रही कोई बेहआई थी,
अब तो महफ़िल में,
आनन्द का माहौल था….
हाथ में टोपी लिए मैं…दोस्तों का..
शुक्रिया अदा कर रहा था…
जो उन काबिल लोगों के मुँह पर,
भरपूर तमाचा था…..
जिनके लिए कुछ देर पहले,
मैं अनायास ही तमाशा था…..
यद्यपि अब तो….!
सब कुछ अनुकूल था….
पर मेरे लिए…..
यह सोचने का विषय था कि…
जाने किस आनन्द के लिए,
अकारण ही…लोग….
कहीं भी…!..किसी की भी…!
टोपी क्यों उछाल देते हैं….?
टोपी क्यों उछाल देते हैं….?
रचनाकार——जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद कासगंज