Sunday, April 28, 2024
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सबका जीवन तू मधुबन बना

 

ऐ! मालिक तेरे बन्दे हम,
महंगाई को कर दे तू कम,
भूखा न सोए, आँसू न पिए,
न तड़पते हुए निकले दम।
ऐ! मालिक तेरे बन्दे हम।

क्यों उड़ा आदमी का वो रंग,
निशदिन लडता है जैसे वो जंग।
रोजी-रोटी नहीं, वो लँगोटी नहीं,
बस आबादी ही कर दे तू कम।
ऐ! मालिक तेरे बन्दे हम,
महंगाई को कर दे तू कम,
भूखा न सोए, आँसू न पिए,
न तड़पते हुए निकले दम।
ऐ! मालिक तेरे बन्दे हम।

अब वो हँसी-ठिठोली नहीं,
अब वो होली-दिवाली नहीं।
दब चुका है गला, कर दे सबका भला,
पाई-पाई तरसते हैं हम।
ऐ! मालिक तेरे बन्दे हम,
महंगाई को कर दे तू कम,
भूखा न सोए, आँसू न पिए,
न तड़पते हुए निकले दम।
ऐ! मालिक तेरे बन्दे हम।

देख, जनता के दिल का छाला,
नित्य रहता है प्यासा-प्याला।
कौन कुर्सी तोड़े, कौन कुर्सी जोड़े,
उनके कानों को कर तू गरम।
ऐ! मालिक तेरे बन्दे हम,
महंगाई को कर दे तू कम,
भूखा न सोए, आँसू न पिए,
न तड़पते हुए निकले दम।
ऐ! मालिक तेरे बन्दे हम।

क्या खाऊँ, क्या ओढूँ बता?
इसमें जनता की क्या है खता?
नींद आती नहीं, भूख जाती नहीं,
ख़त्म कर दे तू जुल्मो-सितम।
ऐ! मालिक तेरे बन्दे हम,
महंगाई को कर दे तू कम,
भूखा न सोए, आँसू न पिए,
न तड़पते हुए निकले दम।
ऐ! मालिक तेरे बन्दे हम।

सबका जीवन तू मधुबन बना,
अति सुख-दुःख से सबको बचा।
कोई ओझल न हो, कोई बोझिल न हो,
कर दे उज्ज्वल करम औ धरम।
ऐ! मालिक तेरे बन्दे हम,
महंगाई को कर दे तू कम,
भूखा न सोए, आँसू न पिए,
न तड़पते हुए निकले दम।
ऐ! मालिक तेरे बन्दे हम।
रामकेश एम. यादव
मुम्बई।

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